भारत कई प्रकार के मसालों का उत्पादन करता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के इन मसालों का वर्तमान उत्पादन लगभग चार अरब यू एस डॉलर मूल्य के लगभग 32 लाख टन है और विश्व मसाला उत्पादन में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न प्रकार की जलवायु के कारण - उष्णकटिबन्ध क्षेत्र से उपोष्ण कटिबन्ध तथा शीतोष्ण क्षेत्र तक - लगभग सभी तरह के मसालों का बढिया उत्पादन भारत में होता है। वास्तव में भारत के लगभग सभी राज्यों व संघ-शासित क्षेत्रों में कोई-न-कोई मसाला उत्पन्न होता है।
भारतीय मसाले भारत की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय जलवायु मसालों के लिए अच्छी है और भारत अन्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) के साथ सूचीबद्ध 109 में से 75 प्रकार के मसालों का उत्पादन करता है।
प्राचीन और मध्यकालीन युगों में भी भारतीय मसालों ने भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय मसालों का इतिहास रोम, चीन आदि की प्राचीन सभ्यताओं के साथ व्यापार की एक लम्बी कहानी बताता है। केरल, पंजाब, गुजरात, मणिपुर, मिजोरम, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्य बढ़ते मसालों के केंद्र हैं। निर्यात के अलावा, इन मसालों का उपयोग देश में खाद्य पदार्थों के स्वाद के लिए और दवाओं, दवा, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और कई अन्य उद्योगों में भी किया जा रहा है।
भारतीय मसालों का उपयोग सूखे बीज, पत्तियों, फूलों, छाल, जड़ों, फलों के रूप में किया जाता है और कुछ मसालों को पीसकर पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है।
हल्दी (हरिद्रा) गुणों का खजाना है। हल्दी कन्द है जिसे बड़ी आसानी से घर पर उगाया जा सकता है। इसका पौधा बहुवार्षिक होता है। यह गर्मी की फसल है लेकिन इसे तेज धूप पसंद नहीं है। हल्दी के पत्ते, तना और कंद सभी का प्रयोग खाने और औषधि बनाने में किया जाता है।
धनिया दाना से तैयार किए गये पाउडर का प्रयोग सम्पूर्ण भारत में होता है। यह करी, दालों, सूखी सब्जियों, और लगभग सभी अचारों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खुश्बू तेज होती है, और इसके स्थान पर किसी और मसाले का प्रयोग नही किया जा सकता है।
काली मिर्च का प्रयोग खाने में मसाले के जैसे और दवाइयों में सदियों से होता आ रहा है। काली मिर्च एक पौधे का फल है। इसके फल गुच्छों में उगते है। काली मिर्च का फल हरा होता है और पक जाने पर फल का रंग लाल हो जाता है और जब इसे तोड़कर सुखाया जाता है तो इसका रंग काला हो जाता है। काली मिर्च अन्दर से हल्की सफेद होती है।
सफेद मिर्च - सफेद मिर्च और काली मिर्च दोनों एक ही पौधे के फल हैं, बस अपने रंग के कारण उनका उपयोग अलग हो जाता है। सफेद मिर्च का प्रयोग आमतौर हल्के रंग के व्यंजनों जैसे कि सूप, सलाद, ठंडाई, बेक्ड रेसिपी इत्यादि में किया जाता है।
जीरा हर भारतीय रसोई में मिलने वाला एक आवश्यक मसाला है। जीरे का उपयोग दालों, करी, अचारों इत्यादि में होता है। जीरे को भून कर और पीस कर दही के व्यंजनों में भी डालते हैं।
भुना जीरा - भुने जीरे का प्रयोग भी भारतीय खाने में बहुतायत में होता है। जीरे को भून कर और पीस कर दही के व्यंजनों , देसी पेय, चटनी, गलका, चाट इत्यादि में भी डालते हैं।
भुना हुआ जीरा पाउडर - जीरे को भूनकर के दरदरा पिसे हुए इस मसाले का उपयोग मुख्य रूप से दही से बनने वाली डिशेज़ में किया जाता है। जीरे को भून और पीस कर डिब्बे में रख सकते हैं जिससे इसका इस्तेमाल आसान हो जाता है।
काला जीरा, रोज इस्तेमाल में आने वाले जीरे से अलग है। काला जीरा आमतौर पर उत्तर भारत में अधिक प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग गरम मसाला बनाने में भी किया जाता है।
खटाई का प्रयोग आमतौर पर उत्तर भारत में होता है। इसका प्रयोग सूखी सब्जियों को थोड़ा खट्टा स्वाद देने के लिए किया जाता है। खाने में खट्टा स्वाद लाने के लिए खटाई की जगह नीबू का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
हींग की महक बहुत तेज होती है और खाने में भी यह थोड़ी कड़वी होती है। आमतौर पर बाजार में मिलने वाली पिसी हींग में चावल का आटा मिलाया जाता है जिससे की उसकी कड़वाहट को थोड़ा कम किया जा सके। हींग को आमतौर पर तेज गरम घी / तेल में भूना जाता है। हींग बहुत लाभकारी पाचक है। छोटे बच्चों को जब पेट में हवा की शिकायत होती है तो हींग को पानी में घोल कर पेट पर बाहर से लगाने से राहत आती है। शुद्ध हींग पानी में घोलने पर सफेद हो जाती है।
हड़ एक खड़ा मसाला है और इसका प्रयोग आमतौर पर चूरन, अचार, इत्यादि में होता है। यह पेट के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है।
मेथी के दानों का प्रयोग मसाले के रूप में होता है तथा मेथी की पतियों का प्रयोग पराठा, सब्जी, करी, नाश्ते इत्यादि में होता है। मेथी का पौधा वार्षिक होता है जिसे आसानी से घर की बगिया में भी उगाया जा सकता है। यह एक औषधीय पौधा है और इसका उपयोग पेट की बीमारियों से लेकर मधूमेह तक के बचाव में होता है।
हरी इलायची को 'छोटी इलायची' भी कहते हैं। इसकी सुगन्ध बहुत मीठी सी होती है। यह एक बहुउपयोगी मसाला है और इसका प्रयोग, गरम मसाले, करी, चावल की डिश, नमकीन, देशी पेय और इसके साथ ही साथ मिठाइयों में भी होता है।
पुदीना स्वास्थ के लिए लाभकारी होता है और गर्मियों में ठंडक भी पहुँचाता है। पुदीने का पाउडर बहुत ही आसानी से घर पर बनाया जा सकता है और बोतल में लंबे समय तक रख सकते हैं। कभी जब पुदीने की ताजी पत्तियाँ घर पर नही होती हैं तब पुदीने का पाउडर बहुत काम आता है, ख़ासतौर पर दही से बनने वाली डिशेज़ में।
तेज पत्ते का प्रयोग मुख्यतः करी, और चावल के व्यंजनों मे होता है। तेज पत्ता, सीधे पत्ते के रूप में भी डाला जाता है और इसको गरम मसाले में पीसा भी जाता है। तेज पत्ते की महक बहुत अच्छी होती है और इसे छोले, राजमा इत्यादि में भी डालते हैं।
अजवाइन को एक अच्छा पाचक माना जाता है और इसका प्रयोग सदियों से आयुर्वेद में होता आ रहा है। अजवाइन के दाने बहुत खुश्बुदार होते हैं। इसका प्रयोग छौंक के अलावा, चूरन, चाट मसाला, अचार, करी और बहुत सारी चीज़ों मे किया जाता है।
चाट मसाला कई प्रकार के मसालों को मिलाकर बनाया जाता है, जैसे नमक, काला नमक, अमचूर पाउडर, अनरदाना, काली मिर्च, पुदीना, सोंठ, इत्यादि। चाट मसाले का प्रयोग फलों की चाट, अंकुरित चाट, पकोड़ी आदि का स्वाद बढ़ाने के लिए करते हैं।
गरम मसाला कई प्रकार के खड़े मसालों को मिलाकर बनाया जाता है। भारत के अलग-अलग प्रांतों में गरम मसाले को बनाने की विधि अलग-अलग हो सकती है। इस मसाले की खुश्बू बहुत अच्छी होती है और इससे खाने का स्वाद भी बढ़ जाता है।
मंगौड़ी, मारवाड़ी खाने की जान होती हैं। मंगौड़ी को मूंगदाल के पेस्ट से बनाया जाता हैं। बनाने के बाद मंगौड़ी को धूप में सुखाते हैं और फिर इसे डिब्बे में भण्डारित कर सकते हैं। मंगौड़ी से कई व्यंजन बनाए जाते हैं जैसे कि मंगौड़ी की तहरी, मंगौड़ी की कढ़ी, मंगौड़ी आलू इत्यादि।।
सरसों का पौधा बहुउपयोगी होता है। सरसों कई रंग की होती हैं, लेकिन काली सरसों आसानी से मिल जाती है। सरसों की पत्तियाँ का साग, भुजी, इत्यादि बनाए जाते है, और सरसों के दानों का प्रयोग, तड़के में, अचारों में, और बहुत सारी चीज़ों में होता है। पश्चिम में सरसों का इस्तेमाल सॉस बनाने में भी किया जाता है।
जायफल गोल या अंडाकार होता है। यह बीज है और लाल रंग की छाल से ढका रहता है जिसे 'जावित्री' के नाम से जानते हैं। जायफल और जावित्री दोनों ही मसाले हजारों वर्षों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं। गरम मसाला बनाने के लिए यह मसाला अत्यन्त आवश्यक है। इनका उपयोग आयुर्वेदिक दवाई बनाने में भी किया जाता है। भारत में घरेलू इलाज में, जायफल को ठंड लग जाने पर घिस कर दूध के साथ बच्चों को दिया जाता है।
यह अनार के दानों से तैयार किया गया मसाला है। अनार के दानों को सुखा कर पीसे गये इस मसाले का प्रयोग खाने में खट्टा स्वाद लाने की लिए किया जाता हैं। अनारदाने से नाना प्रकार के स्वादिष्ट चूरन भी बनते हैं।
केसर को 'जाफ़रान' के नाम से भी जाना जाता है। केसर शायद सबसे महंगा मसाला है लेकिन बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल करने पर भी यह खाने में बहुत स्वाद और खुश्बू देता है। इसका प्रयोग मिठाइयों, पुलाव, करी, इत्यादि में होता है। केसर के धागे दूध या पानी में भिगोने पर केसरिया रंग (पीला) देता है।
बाजार में दो प्रकार के सफेद तिल आते हैं, एक महीन छिलके के साथ जो कि हल्का गुलाबी-भूरा होता है, और एक बिना छिलके के जो एकदम सफेद होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से छिलके वाला तिल अति उत्तम है। तिल से नाना प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। जैसे कि, मिठाइयाँ, नमकीन, करी, कई प्रकार की ब्रेड बनाने में भी इनका प्रयोग होता है। तिल में कैल्शियम बहुतायत में होता है, इसके साथ ही साथ इसमें फास्फ़ोरस और कई प्रकार के विटामिन भी होते हैं।
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