चंद्रपात (अंग्रेजी: Lunar Node) चन्द्रमा की कक्षा पर वे दो बिंदु हैं जिन पर चन्द्रमा की कक्षा क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ को काटती है। साधारणतः किसी भी खगोलीय पिण्ड के लिए ऐसे बिन्दुओं के नाम कक्षीय पात हैं , चन्द्रमा के कक्षीय पातों को विशेष नाम चन्द्रपात दिया गया है । आरोही (या उत्तर ) चंद्रपात वह बिंदु है जहाँ पर चंद्रमा क्रांतिवृत्त को काटते हुए उत्तरी खगोलीय गोलार्ध की और जाता है, जबकि अवरोही (या दक्षिण ) चंद्रपात वह बिंदु है जहाँ पर चंद्रमा क्रांतिवृत्त को काटते हुए दक्षिणी खगोलीय गोलार्द्ध की और जाता है। भारतीय ज्योतिष में आरोही चन्द्रपात को राहु कहा जाता है और अवरोही चन्द्रपात को केतु कहा जाता है।
वस्तुतः जिस तल पर पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती , पृथ्वी से देखने वाले के लिए सूर्य उसी तल पर पृथ्वी का चक्कर लगता प्रतीत होता है। इसको क्रांतिवृत्त का नाम दिया गया है। यदि चन्द्रमा की कक्षा का तल भी पृथ्वी की कक्षा के तल पर ही होता तो चन्द्रमा की कक्षा भी क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ पर ही दिखाई देती। यदि चन्द्रमा की कक्षा का तल भी पृथ्वी की कक्षा के तल पर ही होता तब हर चंद्रमास में दो ग्रहण होते , हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण और हर पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण। सभी सूर्य ग्रहण भी एक जैसे ही होते और सभी चंद्र ग्रहण भी एक जैसे ही होते। चन्द्रमा और पृथ्वी की कक्षाएँ एक तल में नहीं हैं , चन्द्रमा की कक्षा क्रांतिवृत्त से अलग दिखाई देती है , और केवल दो बिन्दुओ पर ही काटती है। ग्रहण उन्ही बिन्दुओ पर सम्भव जहाँ पर क्रान्तिवृत्त और चन्द्रमा की कक्षाएँ एक दूसरे को काटती हैं। ग्रहण होने के लिए चन्द्रपातों का पृथ्वी और सूर्य को मिलाने वाली रेखा पर के निकट आवश्यक है और ऐसा वर्ष में केवल दो हो बार हो पाता है जब सूर्य चन्द्रपातों के आसपास हो। चंद्र ग्रहण तभी हो सकता है जब पूर्णिमा का चंद्रमा किसी एक चंद्रपात के पास हो (11° 38' के भीतर) , जबकि सूर्य ग्रहण तभी हो सकता है जब अमावस्या का चन्द्रमा किसी एक चंद्रपात के पास हो (17° 25' के भीतर)।
चूंकि चंद्रमा की कक्षा आंतरिक्ष में अयन करती है, इसलिए चंद्रपात भी अयन करते है। चन्द्रपातों के अयन का अर्थ है इनको मिलाने वाली रेखा का सूर्य और पृथ्वी को मिलाने वाली रेखा या तारामंडल के सापेक्ष घूमना। चन्द्रपातों का अयन 18.612958 वर्षों (या 6,798.383 दिनों ) में पूरा होता है, यह अवधि ग्रहण युग से अलग है जो 6585.3211 दिनों का होता है। यदि चंद्रपातों के अयन को तारामंडल के सापेक्ष मापा जाए तो ये 18.599525 वर्ष आती है।
जुलाई 2000 (दिनांक 1 और 31 ) के दोनों सूर्य ग्रहण उस समय के आसपास हुए जब चंद्रमा अपने आरोही चन्द्रपात पर था। आरोही-चन्द्रपात वाले ग्रहण औसतन एक ग्रहण वर्ष बाद पुनरावृत्ति करते हैं, जो लगभग 0.94901 ग्रेगोरियन वर्ष है, ठीक ऐसा ही अवरोही-चन्द्रपात वाले ग्रहण भी करते हैं।
चन्द्रपातों को दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।
हिंदू ज्योतिष में, नौ नवग्रहों में से सात ग्रहों के साथ चन्द्रपातों को भी जोड़ा जाता है; आरोही चन्द्रपात को राहु कहा जाता है और अवरोही चन्द्रपात को केतु कहा जाता है। तिब्बती ज्योतिष में (आंशिक रूप से कालचक्र तंत्र पर आधारित) इन चन्द्रपातों को क्रमशः राहु और कालाग्नि नाम दिया गया है।
मध्ययुगीन ग्रंथों में, चन्द्रपातों को अरबी में रास वा धनव अल-तिन्निन कहा जाता है। रोश हा-टेली यू-ज़ेनावो हिब्रू में, और कैपुट ड्रेकोनिस (ड्रैगन का सिर) या कौडा ड्रेकोनिस (ड्रैगन की पूंछ) लैटिन में । आरोही चन्द्रपात को खगोलीय या ज्योतिषीय प्रतीक के साथ ड्रैगन के सिर के रूप में जाना जाता है और अवरोही नोड को प्रतीक के साथ ड्रैगन की पूंछ के रूप में जाना जाता है।
चंद्रमा की कक्षा वृत्ताकार की ओर लगभग 5.14° झुकी हुई है ; इसलिए, चंद्रमा क्रांतिवृत्त के लगभग 5° उत्तर या दक्षिण में हो सकता है। क्रांतिवृत्त का झुकाव खगोलीय विषुवत वृत्त से लगभग 23.44° है, खगोलीय विषुवत वृत्त का तल पृथ्वी के अक्ष से लंबवत है। नतीजतन, 18.6 साल के चन्द्रपात वर्ष के दौरान एक बार ऐसी स्थिति आती है कि जब चंद्रमा की कक्षा का आरोही चन्द्रपात वसंत विषुव के साथ में होता है तब चंद्रमा की कक्षा के झुकाव अपने चरम अर्थात आकाशीय मध्य रेखा से लगभग 28.6 डिग्री तक पहुंच जाता है । इसलिए, चंद्रोदय या चंद्रास्त के बिंदु क्षितिज पर अपने उत्तरी और दक्षिणी चरम होते हैं ; उदय से अस्त होने तक (आकाशीय मध्यान्तर से गमन करते हुए ) चंद्रमा अपने न्यूनतम और उच्चतम बिंदु पर जाता है ; और अमावस्या के बाद पहली बार चन्द्रमा दिखाई पड़ने का अन्तराल भी संभवतः अधिकतम होता है। इसके अलावा कृत्तिका तारा समूह , जो क्रांतिवृत्त के 4 डिग्री से थोड़ा अधिक उत्तर में है, के पास से चन्द्रमा का गुजरना हर चन्द्रपात वर्ष में एक बार होता हैं।
पात शब्द का प्रयोग सिद्धांत ग्रंथो में हुआ है। पात शब्द का अर्थ दो कक्षाओं के काटने के स्थान को माना गया है। चन्द्रपात शब्द का प्रयोग भी सिद्धांत ग्रंथो में हुआ है। हिंदी शब्दकोष शब्दसागर ने पात शब्द को राहु के बिंदु के लिए प्रयोग किया है। वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दवाली आयोग के शब्द संग्रह ने पात शब्द को node के अनुवाद के रूप में दिया है।
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