मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी किला शिवपुरी से 127 किमी की दूरी पर और ललितपुर से 37 किमी और ईसागढ़ से लगभग 45 किमी और मुंगौली से 38 किमी की दूरी पर स्थित है और यह बेतवा नदी के दक्षिण पश्चिम में एक पहाड़ी पर स्थित है। चंदेरी पहाड़ियों, झीलों और जंगलों से घिरा हुआ है और खंगार राजपूतों और मालवा के सुल्तानों के कई स्मारक हैं। चंदेरी का उल्लेख महाभारत में मिलता है। शिशुपाल महाभारत काल का राजा था।
इतिहास प्रसिद्ध चंदेरी का युद्ध 1528 ई. को मुग़ल शासक बाबर एवं राजपूतों के मध्य लड़ा गया था। उस समय यह दुर्ग मेदिनी राय खंगार अधिकार में था, जिस पर काफी समय से बाबर की नजर थी। खानवा युद्ध के बाद बाबर इसकी तरफ बढ़ा। कहा जाता है यह दुर्ग बाबर के लिए अत्यन्त महत्व का था इसलिए उसने चंदेरी के तत्कालीन राजा से यह किला माँगा। बदले में उसने अपने जीते हुए कई किलों में से कोई भी किला राजा को देने की पेशकश भी की, परन्तु राजा चंदेरी का किला देने के लिए राजी ना हुआ। तब बाबर ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी दी। बाबर कई प्रस्तावों के बाद भी मेदनीराय ने संधि करने से मना कर दिया। खानवा में बाबर की सेना का सामना कर चुके मेदनी राय खंगार और उनके वीरों ने मुगलों के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया। बाबर के प्रलोभनों को नकार कर मेदनी ने बाबर से युद्ध करना स्वीकार किया।
नगर के सामने २३० फुट ऊंची चट्टान पर यह दुर्ग बना हुआ था। यह स्थान मालवा तथा बुंदेलखंड की सीमाओं पर स्थित होने के कारण से महत्वपूर्ण था। दुर्ग आसपास की पहाड़ियों से घिरा हुआ था इसलिए ये ये बेहद सुरक्षित किला माना जाता था।
गुस्से से बोखलाए बाबर ने किले का घेरा जारी रखा। दरअसल बाबर की सेना में हाथी तोपें और भारी हथियार थे जिन्हें लेकर उन पहाड़ियों के पार जाना बेहद दुष्कर था और पहाड़ियों से नीचे उतरते ही चंदेरी के राजा की फौज का सामना हो जाता। कहा जाता है की बाबर निश्चय पर दृढ था और उसने एक ही रात में अपनी सेना से पहाडी को काट डालने को कहा।
कहा जाता है कि बाबर की सेना ने एक ही रात में एक पहाड़ी को ऊपर से नीचे तक काट कर एक ऐसी दरार बना डाली जिससे हो कर उसकी पूरी सेना और हाथी और तोपें ठीक किले के सामने पहुँच गयी (आज भी वह रास्ता टूटे किले की बुर्जों से दिखता है जिसे बाबर ने एक ही रात में पहाडी को कटवा कर बनाया था तथा उसे 'कटा पहाड़' या 'कटी घाटी' के नाम से जाना जाता है)। (चंदेरी नगर के दक्षिण के पहाड़ को काटकर कटी घाटी प्रवेशद्वार द्वार का निर्माण किया गया 80 फीट ऊंची 39 फीट चौड़ी और 192 फीट लंबाई में घाटी को काटकर इस घाटी का निर्माण किया गया है इस घाटी के बीच में ही पहाड़ को काटकर मेहराबदार प्रवेश द्वार को बनाया गया है जिसके दोनों ओर दो बुर्ज बनाए गए हैं, कटी घाटी के उत्तर दिशा में चट्टान को काटकर सीढ़ी मार्ग बनाया गया है जिससे द्वार के ऊपरी भाग में पहुंचा जा सकता है द्वार पर लगे दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस घाटी एवं द्वार का निर्माण सन 1490 ईस्वी में मालवा के सुल्तान गयासशाह के शासनकाल में गया था उत्खनन के दौरान या एक सीडी नुमा रास्ता प्रकाश में आया है। संभवत कटी घाटी का निर्माण के पूर्व का है जिसका उपयोग शायद पहाड़ी को पार करने के लिए किया जाता रहा होगा।) मेदनीराय ने जब सुबह अपने किले के सामने पूरी सेना को देखा तो दंग रह गया। लेकिन राजपूत राजा ने बिना घबराए अपने सिपाहियों के साथ बाबर की विशाल सेना का सामना करने का निर्णय किया। बोखलाए बाबर ने किले पर चारों ओर से आक्रमण किया। राजपूत केसरिया बाना पहन मैदान में कूद पड़े और वीरता पूर्वक लड़कर सब के सब वीरगति को प्राप्त हुए। किले पर बाबर का अधिकार हो गया। तब किले में सुरक्षित क्षत्राणियों ने स्वयं को आक्रमणकारी सेना से अपमानित होने की बजाय अपनी जीवनलीला समाप्त करने का निर्णय लिया। एक विशाल चिता का निर्माण किया और सभी स्त्रियों ने सुहागनों का श्रृंगार धारण कर के स्वयं को उस चिता के हवाले कर दिया। मध्ययुगीन इतिहास में चंदेरी का जौहर अब तक के इतिहास का सबसे विशाल जौहर माना जाता है। जब बाबर की सेना किले के अन्दर पहुँची तो उसके हाथ कुछ ना आया। राजपूतों का शौर्य और क्षत्राणियों के जौहर के इस अविश्वसनीय कृत्य वह इतना बौखलाया की उसने खुद के लिए इतने महत्त्वपूर्ण किले का सम्पूर्ण विध्वंस करवा दिया तथा कभी उस का उपयोग नहीं किया। बाबर के वंशज मुगलोंं को हराकर पूरनमल जाट ने इसे जीता। शेरशाह सूरी ने पूरणमल जाट के समय चंदेरी के दुर्ग ओर आक्रमण किया था लेकिन शेरशाह सूरी इस दुर्ग को जीत पाने में असमर्थ सिद्ध हुआ तो शेरशाह सूरी ने धोखे से संधि वार्ता के बहाने छल से पूरणमल जाट की हत्या कर दी।
29 जनवरी 1528 ईo को मेदनी राय एवं बाबर के बिच चंदेरी का युद्द हुआ जिसमे विजयी हुआ.
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