गुरु हरगोबिन्द: छठे सिक्ख गुरू

गुरू हरगोबिन्द सिखों के छठें गुरू थे। साहिब की सिक्ख इतिहास में गुरु अर्जुन देव जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है। गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा दीक्षा महान विद्वान् भाई गुरदास की देख-रेख में हुई। गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डाजी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा। छठे गुरु ने सिक्ख धर्म, संस्कृति एवं इसकी आचार-संहिता में अनेक ऐसे परिवर्तनों को अपनी आंखों से देखा जिनके कारण सिक्खी का महान बूटा अपनी जडे मजबूत कर रहा था। विरासत के इस महान पौधे को गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपनी दिव्य-दृष्टि से सुरक्षा प्रदान की तथा उसे फलने-फूलने का अवसर भी दिया। अपने पिता श्री गुरु अर्जुन देव की शहीदी के आदर्श को उन्होंने न केवल अपने जीवन का उद्देश्य माना, बल्कि उनके द्वारा जो महान कार्य प्रारम्भ किए गए थे, उन्हें सफलता पूर्वक सम्पूर्ण करने के लिए आजीवन अपनी प्रतिबद्धता भी दिखलाई।

गुरु हर गोबिन्द
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
गुरु हरगोबिन्द: छठे सिक्ख गुरू
जन्म जून 19, 1595
गुरू की वडाली, अमृतसर, पंजाब सूबा, मुग़ल साम्राज्य
मौत फरवरी 28, 1644
कीरतपुर साहिब, भारत
उपनाम छट्ठे बादशाह
प्रसिद्धि का कारण
  • अकाल तख़त का निर्माण
  • युद्ध में शामिल होने वाले पैहले गुरू
  • सिखों को युद्ध कलाएं साखने और सैन्य परीक्षण के लिये प्रेरित करना
  • मीरी पीरी की स्थापना
  • इन लड़ाइयों में भागिदारी:
  • रोहिला की लड़ाई
  • करतारपुर की लड़ाई
  • अमृतसर की लड़ाई (१६३४)
  • हरगोबिंदपुर की लड़ाई
  • गुरुसर की लड़ाई
  • कीरतपुर की लड़ाई
कीरतपुर साहिब की स्थापना
पूर्वाधिकारी गुरु अर्जुन देव
उत्तराधिकारी गुरु हरिराय
जीवनसाथी माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी
बच्चे बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, गुरु तेग बहादुर और बीबी बीरो
माता-पिता गुरु अर्जन देव व माता गंगा

सिख धर्म
पर एक श्रेणी का भाग

Om
सिख सतगुरु एवं भक्त
सतगुरु नानक देव · सतगुरु अंगद देव
सतगुरु अमर दास  · सतगुरु राम दास ·
सतगुरु अर्जन देव  ·सतगुरु हरि गोबिंद  ·
सतगुरु हरि राय  · सतगुरु हरि कृष्ण
सतगुरु तेग बहादुर  · सतगुरु गोबिंद सिंह
भक्त रैदास जी भक्त कबीर जी · शेख फरीद
भक्त नामदेव
धर्म ग्रंथ
आदि ग्रंथ साहिब · दसम ग्रंथ
सम्बन्धित विषय
गुरमत ·विकार ·गुरू
गुरद्वारा · चंडी ·अमृत
नितनेम · शब्दकोष
लंगर · खंडे बाटे की पाहुल


बदलते हुए हालातों के मुताबिक गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा भी ग्रहण की। वह महान योद्धा भी थे। विभिन्न प्रकार के शस्त्र चलाने का उन्हें अद्भुत अभ्यास था। गुरु हरगोबिन्दसाहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था। वह चाहते थे कि सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने। वह अध्यात्म चिन्तन को दर्शन की नई भंगिमाओं से जोडना चाहते थे। गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजीने पहनाई। यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड लेता है। गुरु हरगोबिन्दसाहिब मीरी-पीरी के संकल्प के साथ सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड देते हैं। इस प्रक्रिया में राजनीति और धर्म एक दूसरे के पूरक बने। गुरु जी की प्रेरणा से श्री अकाल तख्त साहिब का भी भव्य अस्तित्व निर्मित हुआ। देश के विभिन्न भागों की संगत ने गुरु जी को भेंट स्वरूप शस्त्र एवं घोडे देने प्रारम्भ किए। अकाल तख्त पर कवि और ढाडियोंने गुरु-यश व वीर योद्धाओं की गाथाएं गानी प्रारम्भ की। लोगों में मुगल सल्तनत के प्रति विद्रोह जागृत होने लगा। गुरु हरगोबिन्दसाहिब नानक राज स्थापित करने में सफलता की ओर बढने लगे। जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। इस किले में और भी कई राजा, जो मुगल सल्तनत के विरोधी थे, पहले से ही कारावास भोग रहे थे। गुरु हरगोबिन्दसाहिब लगभग तीन वर्ष ग्वालियर के किले में बन्दी रहे। महान सूफी फकीर मीयांमीर गुरु घर के श्रद्धालु थे। जहांगीर की पत्‍‌नी नूरजहांमीयांमीर की सेविका थी। इन लोगों ने भी जहांगीर को गुरु जी की महानता और प्रतिभा से परिचित करवाया। बाबा बुड्डा व भाई गुरदास ने भी गुरु साहिब को बन्दी बनाने का विरोध किया। जहांगीर ने केवल गुरु जी को ही ग्वालियर के किले से आजाद नहीं किया, बल्कि उन्हें यह स्वतन्त्रता भी दी कि वे 52राजाओं को भी अपने साथ लेकर जा सकते हैं। इसीलिए सिख इतिहास में गुरु जी को बन्दी छोड़ दाता कहा जाता है। ग्वालियर में इस घटना का साक्षी गुरुद्वारा दाता बन्दी छोड़ है। अपने जीवन मूल्यों पर दृढ रहते गुरु जी ने शाहजहां के साथ चार बार टक्कर ली। वे युद्ध के दौरान सदैव शान्त, अभय एवं अडोल रहते थे। उनके पास इतनी बडी सैन्य शक्ति थी कि मुगल सिपाही प्राय: भयभीत रहते थे। गुरु जी ने मुगल सेना को कई बार कड़ी पराजय दी। गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने अपने व्यक्तित्व और कृत्तित्वसे एक ऐसी अदम्य लहर पैदा की, जिसने आगे चलकर सिख संगत में भक्ति और शक्ति की नई चेतना पैदा की। गुरु जी ने अपनी सूझ-बूझ से गुरु घर के श्रद्धालुओं को सुगठित भी किया और सिख-समाज को नई दिशा भी प्रदान की। अकाल तख्त साहिब सिख समाज के लिए ऐसी सर्वोच्च संस्था के रूप में उभरा, जिसने भविष्य में सिख शक्ति को केन्द्रित किया तथा उसे अलग सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान प्रदान की। इसका श्रेय गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ही जाता है।

गुरु हरगोबिन्दसाहिब जी बहुत परोपकारी योद्धा थे। उनका जीवन दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुडा हुआ था। यही कारण है कि उनके समय में गुरमतिदर्शन राष्ट्र के कोने-कोने तक पहुंचा। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के महान संदेश ने गुरु-परम्परा के उन कार्यो को भी प्रकाशमान बनाया जिसके कारण भविष्य में मानवता का महा कल्याण होने जा रहा था।

गुरु जी के इन अथक प्रयत्‍‌नों के कारण सिख परम्परा नया रूप भी ले रही थी तथा अपनी विरासत की गरिमा को पुन:नए सन्दर्भो में परिभाषित भी कर रही थी। गुरु हरगोबिन्दसाहिब की चिन्तन की दिशा को नए व्यावहारिक अर्थ दे रहे थे। वास्तव में यह उनकी आभा और शक्ति का प्रभाव था। गुरु जी के व्यक्तित्व और कृत्तित्वका गहरा प्रभाव पूरे परिवेश पर भी पडने लगा था। गुरु हरगोबिन्दसाहिब जी ने अपनी सारी शक्ति हरमन्दिरसाहिब व अकाल तख्त साहिब के आदर्श स्थापित करने में लगाई। गुरु हरगोबिन्दसाहिब प्राय: पंजाब से बाहर भी सिख धर्म के प्रचार हेतु अपने शिष्यों को भेजा करते थे।

गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने सिक्ख जीवन दर्शन को सम-सामयिक समस्याओं से केवल जोडा ही नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवन दृष्टि का निर्माण भी किया जो गौरव पूर्ण समाधानों की संभावना को भी उजागर करता था। सिख लहर को प्रभावशाली बनाने में गुरु जी का अद्वितीय योगदान रहा।

गुरु जी कीरतपुर साहिब में ज्योति-जोत समाए। गुरुद्वारा पातालपुरीगुरु जी की याद में आज भी हजारों व्यक्तियों को शान्ति का संदेश देता है। भाई गुरुदास ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब की गौरव गाथा का इन शब्दों में उल्लेख किया है: पंज पिआलेपंजपीर छटम्पीर बैठा गुर भारी, अर्जुन काया पलट के मूरत हरगोबिन्दसवारी,

चली पीढीसोढियांरूप दिखावनवारो-वारी,

दल भंजन गुर सूरमा वडयोद्धा बहु-परउपकारी॥ सिखों के दस गुरू हैं।

"दाता बन्दी छोड़"

गुरु हरगोबिंद साहिब जी जब कश्मीर की यात्रा पर थे तब उनकी मुलाकात माता भाग्भरी से हुई थी जिन्होंने पहली मुलाकात पर उनसे पूछा कि क्या आप गुरु नानक देव जी हैं क्योंकि उन्होंने गुरु नानक देव जी को नहीं देखा था। उन्होंने गुरु नानक देव जी के लिए एक बड़ा सा चोला (एक पहनने का वस्त्र) बनाया था जिसमे 52 कलियाँ थी ये चोला उन्होंने उनके बारे में सुनकर कि उनका शरीर थोडा भारी है ये वस्त्र थोडा बड़ा बनाया था। माता की भावनाओं को देखते हुए गुरु साहिब ने ये चोला उनसे लेकर पहन लिया। गुरु साहिब जब ग्वालियर के किले से मुक्त किये गए तो उन्होंने यही चोला पहन रखा था जिसकी ५२ कलियों को पकड़ कर किले की जेल में बंद सारे ५२ राजा एक एक कर बाहर आ गए, तभी से गुरु हरगोबिन्द साहिब जी "दाता बन्दी छोड़" कहलाये।

संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ


पूर्वाधिकारी:
गुरु अर्जन देव
(१५ अप्रैल १५६३ - ९ जून १६०६)
गुरु हरगोबिंद उत्तराधिकारी:
गुरु हर राय
(८ मार्च १६३० - ९ जून १६६१)
 
सिख धर्म के ग्यारह गुरु

गुरु नानक देव  · गुरु अंगद देव  · गुरु अमर दास  · गुरु राम दास  · गुरु अर्जुन देव  · गुरु हरगोबिन्द  · गुरु हर राय  · गुरु हर किशन  · गुरु तेग बहादुर  · गुरु गोबिंद सिंह (तत्पश्चात् गुरु ग्रंथ साहिब, चिरस्थायी गुरु हैं।)


Tags:

गुरु अर्जुन देवभाई गुरदाससिख

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाममानव भूगोलअंजीरपरिवारश्रम आंदोलनज्योतिष एवं योनिफलचम्पारण सत्याग्रहकलाअसहयोग आन्दोलनप्रयोजनमूलक हिन्दीजनता दल (यूनाइटेड)भारत के गवर्नर जनरलों की सूचीतारक मेहता का उल्टा चश्मामहिपाल लोमरोरदैनिक जागरणशाहरुख़ ख़ानशास्त्रीय नृत्यमौर्य राजवंशकैबिनेट मिशनबैंकआत्महत्या के तरीकेभारत की नदी प्रणालियाँजयशंकर प्रसादहिन्दूगलसुआलक्ष्मीमुखपृष्ठहाथीभारत की जनगणनादयानन्द सरस्वतीदशरथदांडी मार्चगणेशप्रदूषणपंचायतसर्वेक्षणभारतीय संविधान का इतिहासभारतीय मसालों की सूचीमुहम्मद बिन तुग़लक़दिल चाहता हैलेडी गोडिवाहरिवंश राय बच्चनहिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्यरामसामाजीकरणआरती सिंहहर हर महादेव (2022 फिल्म)कंगना राणावतमानव दाँतनई दिल्लीप्रधानमंत्री आवास योजनाग्रहअरस्तु का अनुकरण सिद्धांतसुभाष चन्द्र बोसराजनीतिहरियाणा के मुख्यमंत्रियों की सूचीराज्यरूसदिव्या भारतीसातवाहनसंस्कृत भाषास्मृति ईरानीतेरे नामएडेन मार्करामभुवनेश्वर कुमारभारत का भूगोलमिया खलीफ़ाभारत निर्वाचन आयोगसमाजकल्किअखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानसमुद्रगुप्तख़रबूज़ापरामर्शराम मंदिर, अयोध्याराष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सदस्यों की सूचीनिर्वाचन आयोगवर्णमालासाम्यवाद🡆 More