कूर्म अवतार: भगवान विष्णुजी का कछुआ अवतार

भगवान विष्णु के दस अवतारों में द्वितीय कुर्मी/ कूर्म अवतार वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।(कुर्मी) कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकी नामक नाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।

कूर्म
दृढ़ता के देवता, समुद्र मंथन में मथनी के रूप में
कूर्म अवतार: कथा, इन्हें भी देखें, सन्दर्भ
कूर्म नारायण
संबंध विष्णु का अवतार, दशावतार, परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, भगवान
निवासस्थान वैकुंठ
मंत्र ओम् कुरमाय नमः
अस्त्र सुदर्शन चक्र
शास्त्र भागवत पुराण, विष्णु पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण
कूर्म अवतार: कथा, इन्हें भी देखें, सन्दर्भ
कूर्म अवतार


नरसिंहपुराण के अनुसार कूर्मावतार द्वितीय अवतार है जबकि भागवतपुराण (१.३.१६) के अनुसार ग्यारहवाँ अवतार। शतपथ ब्राह्मण (७.५.१.५-१०), महाभारत (आदि पर्व, १६) तथा पद्मपुराण (उत्तराखंड, २५९) में उल्लेख है कि संतति प्रजनन हेतु प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करता है। लिंगपुराण (९४) के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छपरूप में अवतार लिया। उक्त कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था। पद्मपुराण (ब्रह्मखड, ८) में वर्णन हैं कि इंद्र ने दुर्वासा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया तो कुपित होकर दुर्वासा ने शाप दिया, तुम्हारा वैभव नष्ट होगा। परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। पश्चात् विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा असुरों ने लक्ष्मी को पुन: प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकी की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देवता और असुरों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित १४ रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत् वैभव संपादित किया। एकादशी का उपवास लोक में कच्छपावतार के बाद ही प्रचलित हुआ। कूर्मपुराण में विष्णु ने अपने कच्छपावतार में ऋषियों से जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) की वर्णन किया था। ==कुर्मवंशी कुर्मी क्षत्रिय जाति है भारत वो कूर्म के वंशज हैं।

कथा

देवराज इंद्र के शौर्य को देख ऋषि दुर्वासा नें उन्हें पारिजात पुष्प की माला भेंट की परंतु इंद्र नें इसे ग्रहण न करते हुए ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत नें उसे भूमि पर फेंक दिया, दुर्वासा ने इससे क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दे दिया, इनके देवताओं पर अभिशाप के कारण, देवताओं ने अपनी शक्ति खो दी। इससे अत्यंत निराश होकर वे ब्रह्मा के पास मार्गदर्शन के लिए पहुँचे। उन्होंने देवताओं को भगवान विष्णु से संपर्क करने को कहा। विष्णु ने उन्हें यह सलाह दी कि वे क्षीर समुद्र का मंथन करें जिससे अमृत मिलेगी। इस अमृत को पीने से देवों की शक्ती वापस आ जाएगी अौर वे सदा के लिए अमर हो जाएँगे। इस विशाल कार्य को मन्दर पर्वत और नागराजवासुकी(नागराज शेषनाग के छोटे भाई) के सहारे से ही किया जा सकता था, जहाँ पर्वत को मथिनी का डंडा और वासुकी को रस्सी के समान उपयोग किया गया। इस कार्य के लिए असुरों का भी सहारा अवश्यक था और इसके कारण सभी देवता आतंकित हो गए। लेकिन विष्णु ने उनको समझाया और असुर देवों के पूछ्ने पर उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गए, अमृत के लालच में।

कूर्म अवतार: कथा, इन्हें भी देखें, सन्दर्भ 
पीतल के रथ पर कूर्म अवतार, सियरसोल राजबाड़ी, पश्चिम बंगाल, भारत
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भगवान विष्णु का कूर्म अवतार, वासुकी नाग मन्दर पर्वत के चारो ओर लिपटा हुआ। समुद्र मंथन का चित्र सन् 1870

वे समुद्र का मंथन करने लगे, जहाँ एक तरफ असुर थे और दूसरी तरफ देव थे। लेकिन इस मंथन करने से एक घातक जहर निकलने लगी जिससे घुटन होने लगी और सारी दुनिया पर खतरा आ गया। लेकिन भगवान महादेव बचाव के लिए आए और उस ज़हर का सेवन किया और अपने कंठ में उसे बरकरार रखा जिससे उनका नीलकंठ नाम पड़ा। मंथन जारी रहा लेकिन धीरे धीरे पर्वत डूबने लगा। तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (कछुआ) में अवतीर्ण हुए एक विशाल कछुए का अवतार लिया ताकि अपने पीठ कर पहाड़ को उठा सकें। उस कछुए के पीठ का व्यास 100,000 योजन था। कामधेनु जैसे अन्य पुरस्कार समुद्र से प्रकट हुए औरे धन्वतरि अपने हाथो में अमृत कलश के साथ प्रकट हुए। इस प्रकार से भगवान का कूर्म अवतार हुआ।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाह्य सुत्र

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