ऑल इंडिया फार्वर्ड ब्लाक भारत का एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है। इस दल की स्थापना 1939 में हुई थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस नें इस दल की स्थापना की।
इस दल के महासचिव देवव्रत विश्वास हैं। इस दल का युवा संगठन अखिल भारतीय युवक लीग (All India Youth League) है। २००४ के संसदीय चुनाव में इस दल को १ ३६५ ०५५ मत (०.२%, ३ सीटें) मिलीं।
सन् 1939 के प्रारंभ में यह स्पष्ट हो गया था कि हिटलर के यूरोप विजय के स्वप्न के कारण विश्व महायुद्ध की सम्भावना निकट आती जा रही है। भारत में महात्मा गांधी तथा कांग्रेस कार्यसमिति के अनेक सदस्यों के विरोध के बावजूद सुभाषचंद्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए। इसपर कार्यसमिति के सभी सदस्यों ने, जिनमें जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल भी थे, कांग्रेस कार्यसमिति से इस्तीफा दे दिया।
त्रिपुरा अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषाण में सुभाषचंद्र ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ घोषित किया कि यूरोप में शीघ्र ही साम्राज्यवादी युद्ध आरम्भ हो जाएगा और इस अवसर पर अंग्रेजों को छह मास का अल्टिमेटम दे देना चाहिए। उनके इस प्रस्ताव का वर्किंग कमेटी के पूर्वकालील सदस्यों ने विरोध किया। सुभाष बाबू ने अनुभव किया कि प्रतिकूल परिस्थियों के कारण उनका कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर रहना बेमतलब है। अतएव उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस को जनता की स्वतंत्र होने की इच्छा, लोकतंत्र और क्रांति का प्रतीक बनाने के लिए उन्होंने मई, 1939 में कांग्रेस के भीतर फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की घोषणा की। सुभाष बाबू ने बतलाया कि फारवर्ड ब्लाक की स्थापना, एक ऐतिहासिक आवश्यकता - सभी साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों के संगठन और अनिवार्य संघर्ष-की पूर्त्ति के लिए हुई है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संकट में ग्रस्त हो जाने के पूर्व कांग्रेस का आंतरिक संकट समाप्त हो जाना चाहिए। वामपंथियों का संगठन करना, कांग्रेस में बहुमत प्राप्त करना और राष्ट्रीय आंदोलन को पुनर्जीवित करना - फारवर्ड ब्लाक के संमुख ये तीन प्रश्न थे। फारवर्ड ब्लाक के प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन (मुंबई) में पूर्ण स्वतंत्रता और तत्पश्चात् समाजवादी राज्य की स्थापना का उद्देश्य स्वीकार किया गया। ब्रिटिश भारत और देशी राज्यों में साम्राज्यविरोधी संघर्ष छेड़ने के लिए देशव्यापी स्तर पर तैयारियाँ करने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हुआ, जिससे कि विश्व की परिस्थितियों और संकट का लाभ उठाकर अंग्रेजों से सत्ता छीन ली जाए।
अगस्त, 1939 में सुभाष बाबू बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता से हटाए गए। साथ ही उन्हें तीन वर्षों के लिए निर्वाचन द्वारा किसी पद को ग्रहण करने से वंचित कर दिया गया। उन्होंने निर्विकार भाव से यह निर्णय स्वीकार कर लिया। सितंबर, 1939 में हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण और फ्रांस तथा ब्रिटेन द्वारा जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा से सारे यूरोप में युद्ध की ज्वाला भड़क उठी। गवर्नर-जनरल, लार्ड लिनथिगो ने एक अध्यादेश जारी करे भारत को "युद्धरत देश" घोषित कर दिया और देश को उसके नेताओं तथा केंद्रीय और प्रांतीय विधायकों से औपचारिक परमार्श के बिना ही, साम्राज्यवादी युद्ध में झोंक दिया। अक्टूबर, 1939 में सभी कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने पदत्याग कर दिया, किंतु कांग्रेस नेतृत्व ने संघर्ष की कार्रवाई को और आगे नहीं बढ़ाया। 1939 के अक्टूबर में ही नेताजी ने नागपुर में साम्राज्यवाद विरोधी सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस तथा संपूर्ण राष्ट्र को साम्राज्य विरोधी शक्तियों के संगठन का तथा साम्राज्यवादियों के अस्तित्व के उन्मूलन के संकल्प का स्मरण दिलाया। मार्च, 1940 में फारवर्ड ब्लाक ने रामगढ़ में समझौता विरोधी सम्मेलन किया। उसमें तय किया गया कि 6 अप्रैल को, राष्ट्रीय सप्ताह के प्रथम दिन (जलियाँवाला बाग के शहीदों की स्मृति में निश्चित) युद्धप्रयासों और अंग्रेजी साम्राज्यवाद के कुटिल रूप के विरुद्ध देशव्यापी सत्याग्रह छेड़ दिया जाना चाहिए।
अप्रैल, 1940 में फारवर्ड ब्लॉक ने जनता से साम्राज्यवादी युद्ध से असहयाग करने तथा अंग्रेजी राज्य को कायम रखने के लिए भारतीय साधनों के शोषण के विरोध की अपील करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह छेड़ दिया। सैकड़ों व्यक्ति जेल में डाले गए या पीटे गए और जनता को प्रचंड दमन का शिकार होना पड़ा। दल के नागपुर अधिवेशन (1940) में सुभाष बाबू ने पुन: रामगढ़ प्रतिज्ञा पर बल दिया और संघर्ष की तीव्रता के संदर्भ में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट की। नागपुर में ही निश्चित किया गया कि फारवर्ड ब्लॉक भविष्य में मात्र एक मंच न रहकर, एक दल के रूप में कार्य करेगा। ब्लाक द्वारा प्रस्तावित और आयोजित वामपंथी संगठन समिति से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (नैशनल फ्रंट) और रैडिकल डेमाक्रेटिक पार्टी (मानवेंद्रनाथ राय) के अलग होने और यूरोप में बढ़ती हुई युद्धस्थितियों तथा अन्य महाद्वीपों के भी युत्र की लपेट में आ जाने की संभावनाओं को दृष्टि में रखकर ब्लॉक ने देश में "कार्यनिर्वाही" राष्ट्रीय सरकार, (Provisional National Government) की स्थापना और इसके अंतर्गत विदेशी आक्रमण से समुचित सुरक्षा के लिए नेशनल डिफेंस फोर्स के अविलंब निर्माण की माँग की। संपूर्ण राष्ट्र "भारतीय जनता के हाथ में सत्ता सौंपो" के उद्घोष के साथ अंतिम विजय के लिए आगे बढ़ चला। संघर्ष और सत्ता के हसतगत करने के संकल्प के साथ सम्मेलन में यह विचार भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्येक गाँव और कारखाने को पंचायत के माध्यम से स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। ये पंचायतें और स्वैच्छिक संगठन ही कार्यनिर्वाही राष्ट्रीय सरकार की माँग के आधार बनें, जिसे सारी सत्ता तुरत हस्तांतरित कर दी जाय।
ब्लॉक ने दल के रूप में कार्य करने के लिए तय किया कि वह बहुसंख्यक सदस्यता के सहित कांग्रेस के भीतर ही कार्य करेगा। ब्लॉक का उद्देश्य शीघ्रातिशीघ्र भारतीय जनता के सहयोग से राजनीतिक सत्ता पर अधिकार और समाजवादी आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण घोषित किया गया।
नागपुर अधिवेशन के तुरन्त बाद सुभाषचंद्र बोस जुलाई में गिरफ्तार कर लिए गए। दिसंबर में उनके आमरण अशन के कारण उन्हें रहा किया गया।
उसी समय गांधी जी ने भी, सुभाष और फारवर्ड ब्लॉक के आह्वान पर जनता की अनुक्रिया देखकर, अपने विचारों में परिवर्तन किया और अक्टूबर, 1940 में उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह का नारा बुलंद किया। व्यक्तिगत सत्याग्रहियों को जो शपथ लेनी पड़ती थी, वह अंश: ब्लाक की रामगढ़ घोषणा से मिलती जुलती थी।
जनवरी, 1941 में सुभाषचंद्र बोस पुलिस और खुफिया विभाग की बड़ी निगरानी के बावजूद अचानक कलकत्ता स्थित अपने निवासस्थान से निकल गए और 30 महीने बाद दक्षिण पूर्व एशिया की युद्धग्रस्त धरती पर अवतरित हुए। वहाँ वे "नेताजी" के संबोधन के साथ आजाद हिंद की कार्यनिर्वाही सरकार के अध्यक्ष तथा आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति हुए।
जून, 1942 में फारवर्ड ब्लॉक अवैध संगठन घोषित कर दिया गया। उसके सदस्य, केवल कुछ भूमिगत हो जानेवालों को छोड़कर, कारागार में डाल दिए गएद्य प्राय: सभी कांग्रेस नेता यूरोप में युद्ध की स्थिति समाप्त हो जाने पर (मई, 1945) रिहा कर दिए गए थे, किंतु ब्लॉक के सदस्य जापान के पतन (सितंबर, 1945) के पश्चात् ही मुक्त किए गए।
युद्ध के पश्चात् फारवर्ड ब्लॉक ने अपनी बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करने का प्रयास किया, किंतु दल के भीतर मतभेद पनपने के कारण यह दो गुटों-सुभाषवादी फारवर्ड ब्लॉक और मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लॉक - में बँट गया। गुटबंदी के पूर्व फारवर्ड ब्लॉक ने भारतविभाजन का तीव्र विरोध किया था। भारतविभाजन को ब्लॉक ने अंग्रेजों का भारत और पाकिस्तान को सदा के लिए शक्तिहीन कर देनेवाला षड्यंत्र बताया। स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात् ब्लॉक के दोनों गुट सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का विरोध करते रहे।
1953 में सरकार विरोधी शक्तियों को एकत्रित करने की दृष्टि से सुभाषवादी फारवर्ड ब्लॉक ने प्रजा समाजवादी दल में विलयन का निश्चय किया। मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लॉक ने अपना अलग अस्तित्व बनाए रखा। यह दल अत्यन्त छोटे रूप में अब केवल पश्चिम बंगाल में सीमित रह गया है।
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article ऑल इंडिया फार्वर्ड ब्लाक, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.