ऐतिहासिक भूगोल किसी स्थान अथवा क्षेत्र की भूतकालीन भौगोलिक दशाओं का या फिर समय के साथ वहाँ के बदलते भूगोल का अध्ययन है। यह अपने अध्ययन क्षेत्र के सभी मानवीय और भौतिक पहलुओं का अध्ययन किसी पिछली काल-अवाधि के सन्दर्भ में करता है या फिर समय के साथ उस क्षेत्र के भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन का अध्ययन करता है। बहुत सारे भूगोलवेत्ता किसी स्थान का इस सन्दर्भ में अध्ययन करते हैं कि कैसे वहाँ के लोगों ने अपने पर्यावरण के साथ अंतर्क्रियायें कीं और किस प्रकार इन क्रियाओं के परिणामस्वरूप उस स्थान के भूदृश्यों का उद्भव और विकास हुआ।
आज के परिप्रेक्ष्य में भूगोल की इस शाखा का जो रूप दिखाई पड़ता है उसका सर्वप्रथम प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाओं में हेरोडोटस के उन वर्णनों को माना जा सकता है जिनमें उन्होंने नील नदी के डेल्टाई क्षेत्रों के विकास का वर्णन किया है, हालाँकि तब ऐतिहासिक भूगोल जैसी कोई शब्दावली नहीं बनी थी।
आधुनिक रूप में इसका विकास जर्मनी में फिलिप क्लूवर के साथ शुरू माना जाता है जिन्होंने जर्मनी का ऐतिहासिक भूगोल लिखकर इस शाखा का प्रतिपादक बनने का श्रेय हासिल किया।
१९७५ में जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल ज्याग्रफी के पहले अंक के साथ ही इसके विषय क्षेत्र और अध्ययनकर्ताओं के समूह जो एक व्यापक विस्तार मिला। अमेरिका में इस शाखा को सबसे अधिक बल कार्ल सॉअर के सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन से मिला जिसके द्वारा उन्होंने सांस्कृतिक भूदृश्यों के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन को प्रेरित किया। हालाँकि अब वर्तमान समय में इसमें कई अन्य थीम शामिल हो चुकी हैं जिनमें पर्यावरण का ऐतिहासिक अध्ययन और पर्यावरणीय ज्ञान के ऐतिहासिक अध्ययन को भी शामिल किया जाता है। अब ऐतिहासिक भूगोल रुपी भूगोल की यह शाखा इतिहास, पर्यावरणीय इतिहास और ऐतिहासिक पारिस्थितिकी इत्यादि शाखाओं से काफ़ी करीब मानी जा सकती है।
प्राचीन यूनानी भूगोलवेत्ताओं के लेखन में भी ऐसे तत्व मिलते हैं जो भूगोल की आज की इस शाखा के समान हैं। उदाहरण के लिये प्रसिद्ध यूनानी विद्वान हेरोडोटस द्वारा नील नदी के डेल्टा के ऐतिहासिक विकास की व्याख्या करना। बुटलिन ने अपनी पुस्तक में ऐतिहासिक भूगोल के इतिहास को तीन बड़े खण्डों में बाँटा है - १७०० से १९२० ई॰ तक, १९२० से १९५० तक (आधुनिक ऐतिहासिक भूगोल की शुरूआत) और १९५० के बाद का काल (बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में ऐतिहासिक भूगोल)।
१९३२ में ब्रिटिश हिस्टोरिकल सोसायटी और ब्रिटिश ज्योग्राफिकल सोसायटी की संयुक्त बैठक में पहली बार इस प्रश्न पर विचार शुरू हुआ कि आखिरकार ऐतिहासिक भूगोल क्या है। ई डब्ल्यू गिल्बर्ट ने मत प्रकट किया कि "...इसका (ऐतिहासिक भूगोल का) असली प्रकार्य बीते समय के प्रादेशिक भूगोल की पुनर्रचना करना है", और साथ ही तत्कालीन प्रचलित चार अन्य मतों का खंडन किया कि यह राजनीतिक सीमान्तों के परिवर्तन का अध्ययन नहीं है; भौगोलिक खोजों का अध्ययन नहीं है; न ही यह भौगोलिक विचारों और विधियों के इतिहास का अध्ययन है; और न ही यह भौगोलिक पर्यावरण के इतिहास पर पड़े प्रभावों का अध्ययन है।
इसके बाद ब्रिटेन में ही एच॰ सी॰ डार्बी के नेतृत्व में इस विधा का विकास हुआ जब उन्होंने १९५० से १९७० के बीच अपनी सात खण्डों की कृति रिकंस्ट्रक्शन ऑफ़ ह्यूमन ज्याग्रफी ऑफ़ मेडिवल इंग्लैण्ड (मध्यकालीन इंग्लैण्ड के मानव भूगोल की पुनर्रचना) प्रकाशित की।
यूके में ऐतिहासिक भूगोल के अंतर्गत हुए हालिया शोध कार्यों का जायजा लेकर एक अध्ययन में इसकी कुछ प्रमुख धाराएँ चिह्नित की गयी हैं जो निम्नवत हैं:
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