मेरा नाम संतोष शर्मा है। मैं भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के जाफरपुर गाँव का निवासी हूँ। मैं पेशे से पत्रकार हूँ। किन्तु मैं एक तर्कवादी और नास्तिक हूँ।
मेरा जन्म 2 जनवरी को एक हिन्दु परिवार में हुआ। मेरे पिता का नाम राम प्रवेश शर्मा और माता मिथलेश शर्मा है।
मैंने बैरकपुर स्थित महादेवानन्दा महाविद्यालय नामक कॉलेज में विज्ञान विषय में पढ़ाई की।
मैं ‘भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (साइंस एंड रेशनालिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया)’ नामक संस्था का वाइस प्रेसिडेंट भी हूँ। संस्था समाज में फैले अंधविश्वासों के खिलाफ आंदोलन करती है।
मैंने समाज में फैले ईश्वर, भूत-प्रेत, आत्मा, तंत्रमंत्र, चमत्कार, डायन, ओझा, तांत्रिक, ज्योतिषी, आदि से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ाई और खोज शुरू की। ईश्वर है कि नहीं इसे जानने के लिए मैंने गीता, रामायण, बाइलबल कुरान समेत विभिन्न धर्मग्रन्थों को बारिकी से पढ़ना शुरू किया। मैंने प्रबीर घोष द्वारा लिखित ‘अलौकिक नहीं, लौकिक, डॉ. अब्राहम कोवूर की जीवनकथा और भगत सिंह द्वारा लिखित ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ आदि पुस्तकों पढ़ी।
युक्तिवादी समिति के साथ मिलकर मैंने ओझाओं, तांत्रिकों, ज्योतिषियों, बाबाओं की पोल भी खोलना शुरू कर दिया। कई बाबाओं को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई गयी। नेशनल जिओग्राफी, जर्मन टीवी, साउथ कोरिया टीवी द्वारा युक्तिवादी समिति पर बनायी गयीं डॉक्यूमेंट्री फिल्मो भी मैंने काम किया।
तर्कवादी यह मानते हैं कि मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म ‘मानवतावाद’ है जो कि मानव अधिकारों की सुरक्षा और उपलब्धि के लिए सबसे उपयुक्त है। मैं अदालत के माध्यम से हलफनामा कर ‘मानवतावाद’ को अपना लिया हूँ।
दैनिक अखबारों में पत्रकारिता करते हुए मैं समाज में फैले डायन आदि अंधविश्वासों के खिलाफ धारावाहिक रूप ले लेख लिखा करता हूँ। युक्तिवादी समिति ने मुझे ‘लीडर ऑफ द ईयर 2010’ अवार्ड से सम्मानित किया।
मैंने युक्तिवादिदेर कोथा, प्रसंग प्रबीर घोष, आमरा युक्तिवादी जैसी कई पुस्तकों में भी लेख लिखा है। साथ ही आमरा युक्तिवादी, सरिता, सरस सलिल, सदीनामा, आनंद विचार, तर्कशील पथ, द फ्रीथिंकिंग , स्रोत जैसी पत्रिकायों में नियमित रूप से अंधविश्वास विरोधी लेख लिखा करता हूँ।
मैंने अपनी माँ की मृत्यु पश्चात उनकी मृत आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म नहीं किया।
मेरे तर्क के मुताबिक ईश्वर का वास्तब में कोई अस्तित्व ही नहीं है। ईश्वर ही इस दुनिया का सबसे बड़ा अन्धविश्वास है। इस धरती पर इंसान ही नहीं , बल्कि हर एक जीव का सिर्ङ्ग एक बार ही जन्म होता है। मृत्यु के बाद इंसान या किसी अन्य जीव का दोबार जन्म नहीं होता है। एक इंसान की मृत्यु से उसका शारीर ही नहीं, बल्कि उसकी आत्मा का भी अंत हो जाता है। मृत आत्मा का ङ्गिर जन्म नहीं होता है। पुनर्जन्म एक कल्पना मात्र है।
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