जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे papa श्विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (salization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक रूप से श्रम-विभाजन व्यापार की वृद्धि, सम्पूर्ण आउटपुट की वृद्धि, पूंजीवाद का उदय तथा औद्योगीकरण की जटिलता में वृद्धि से जुड़ा रहा है। परिष्कृत होकर धीरे-धीरे श्रम-विभाजन वैज्ञानिक प्रबन्धन के स्तर तक जा पहुँचा। मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं और कुछ लोग हलवाई करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है।
श्रम विभाजन से उत्पादकता में वृद्धि होती है; चाहे वह सूई का निर्माण हो, न्यायिक कार्य हो या स्वास्थ्य-सेवा या कुछ और हो। उत्पादकता में यह वृद्धि विविध प्रकार से आती है-
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