वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
शीतला माता | |
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चेचक | |
छोटी माता शीतला देवी चेचक की देवी यह बड़ी माता परमेश्वरी देवी की छोटी बहन | |
संबंध | शक्ति अवतार |
अस्त्र | कलश, सूप, झाड़ू, नीम के पत्ते |
जीवनसाथी | शिव |
सवारी | गर्दभ |
शीतला माता का जन्म कुम्हार/प्रजापति/ब्रह्मा से संबंधित है शीतला माता का पुजारी प्रजापति/कुम्हार जाति के लोग होते हैं, इनकी पूजा एक चमत्कारी देवी तथा बच्चों की रक्षक देवी के रूप में पूजते हैं,
चेचक, छोटी माता , फोड़ा नभानी जैसी बीमारी का इलाज इनकी शक्ति, पूजा अर्चना, कुम्हार जाति के पुजारी से झाड़ा लगवाने से चमत्कारिता के साथ ठीक हो hj जाते हैं।।
शीतला माता क्षत्रिय जाति (कुम्हार, गुर्जर, जाट, यादव,राजपूत, आदि)की कुल देवी है।।
शीतला माता का सबसे बड़ा मंदिर (शील की डूंगरी चाकसू)जयपुर में स्थित है जिसका निर्माण जयपुर के नरेश राजा माधो सिंह ने करवाया था।
जयपुर के राजपूत समाज के लोग इस देवी को अपना इष्ट देवी के रूप में पूजते हैं,
जयपुर के कच्छवाहा राजपूत इस देवी को अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं।।
शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक महत्व रहा है। इनकी सात बहने है शीतला, दुर्गा, काली, चंडी, पलमति , बड़ी माता(चमरिया) और भानमती स्कंद पुराण में शीतला देवी की सबसे बड़ी बहन देवी परमेश्वरी ( चमरिया ) है। जिन्हें बड़ी माता भी कहा जाता हैं। शतला माता का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। एक मूल्यांकन ग्रंथ के अनुसार देवी शीतला की पूजा (कुम्हार) जाति का पुजारी ही कर सकता है। वह इनके चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।कुछ लोग शताक्षी देवी को भी शीतला देवी कह कर संबोधित करते हैं शीतला माता को छोटी माता कहते है। तथा छोटी चेचक का उपचार हेतू पूजा करते है। [३] इनकी बड़ी बहन देवी परमेश्वरी माता चमरिया को बड़ी माता कहा जाता है। बड़ी चेचक के उपचार हेतु पूजा करते हैं।
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
“ | वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। | „ |
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता | जय
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | जय
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता, वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता | जय
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा, सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता | जय
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता, करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता | जय
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता, भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | जय
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता, सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता | जय
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता, कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता | जय
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता, ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता | जय
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता, उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता | जय
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता, भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता | जय
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