ब्रांडी (Brandy) एक मद्य है जो सामान्यत: फलों के किण्वित रसों का आसवन करके से प्राप्त किया जाता है। इसमें 35 से 60% तक अल्कोहल होता है। इसे प्रायः रात्रि के भोजन के बाद ग्रहण किया जाता है।
यदि किसी अन्य फल का उल्लेख न हो, तो ब्रांडी का आशय अंगूर के रस से प्राप्त आसुत से होता है। ब्रांडी में उस फलविशेष की विशेषताएँ, जिसके रस से वह तैयार की गई हो, बहुत कुछ विद्यमान रहती हैं, परंतु आसवन की क्रिया में सुवास (flavour) नष्ट हो जाती हैं। किसी अन्य फल के किण्वित रस से प्राप्त आसुत में ब्रांडी के साथ उस फलविशेष का नाम जोड़ दिया जाता है, जैसे 'सेब की ब्रांडी' (apple brandy), 'अखरोट की ब्रांडी' (apricot brandy) आदि। इसके अतिरिक्त कभी कभी भौगोलिक क्षेत्र से प्राप्त अंगूर के आधार पर भी ब्रांडी का नाम रखा जाता है, जैसे फ्रांस के प्रांतविशेष में उत्पन्न होनेवाली अंगूर से प्राप्त ब्रांडी, 'कोन्येक ब्रांडी' (cognac brandy) के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रांडी में ऐल्कोहल की मात्रा आयतन के अनुसार 85% से कम होती है।
आसुत मदिरा में अंगूर की ब्रांडी, अथवा केवल ब्रांडी, संभवत: प्राचीनतम है। आदिकाल में अंगूर के किण्वित रस का प्रयोग ऐल्कोहॉलीय मदिरा के रूप में होता था, परंतु दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में आसवन के द्वारा इससे जीवन-जल (water of life) की प्राप्ति हुई, जो ब्रांडी के वांछनीय गुणों का आधार बना। ब्रांडी की उत्पत्ति फ्रांस में मानी जाती है, परंतु आजकल प्रत्येक देश में, जहाँ अंगूर उत्पन्न होता है, ब्रांडी बनाई जाती है। संसार की सर्वाधिक प्रसिद्ध ब्रांडी फ्रांस के शारांत (Charente) तथा हौटे शारांत (Haute charente) नामक दो प्रांतों से प्राप्त होती है। इन क्षेत्रों से उत्पन्न ब्रांडी के लिए कोन्येक ब्रांडी शब्द सुरक्षित रखा गया है। कोन्येक नगर शारांत प्रांत की राजधानी है। फ्रांस के इस क्षेत्र की जलवायु खाने योग्य अंगूर के उत्पादन के लिए अनुरूप नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र में जिस किस्म का अंगूर उपजता है उसमें अम्ल की मात्रा अधिक रहती है, जिससे अंगूर बहुत खट्टा होता है। अंगूर का यह अम्ल किण्वन की क्रिया में एक विशेष प्रकार के तीव्र सुवासित एस्टर को उत्पन्न करता है। आसवन से यह एस्टर भी आसुत में आ जाता है और प्राप्त ब्रांडी इस एस्टर से सुवासित होती है, जो कोन्येक ब्रांडी की विशेषता है।
ब्रांडी का आसवन घट भभकों (pot still) में दो या तीन क्रमबद्ध आसवन में होता है। अच्छी आसुत ब्रांडी को ओक वृक्षों की लकड़ी से बने पीपों में रखा जाता है। नए पीपों का प्रयोग ताजी आसुत ब्रांडी के लिए किया जाता है तथा नए पीपों में रखी गई ब्रांडी का पुन: आसवन करके, पुराने पीपों में रखा जाता है। इस प्रकार के पीपों में कई वर्ष तक रखने के बाद अच्छी ब्रांडी प्राप्त होती है।
अन्य फलों के रस से प्राप्त ब्रांडी में उन फलों का विशेष महत्व है जो पर्वतों पर अथवा ऊँचाई के स्थानों पर उपजते हैं तथा जिनमें तीव्र सुबास होती है। इस प्रकार की ब्रांडी में स्विट्सरलैंड तथा जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट क्षेत्र से प्राप्त चेरी-ब्रांडी (cheery-brandy) कर्शवासेर (kirschwasser) के नाम से तथा यूगोस्लाविया की बादाम ब्रांडी (prune brandy) स्लिवोविक्स (slivovicks) नाम से प्रसिद्ध है। परिणाम में ब्रांडी का उत्पादन संसार में मदिरा उत्पादन में दूसरे स्थान पर आता है। ह्विस्की को छोड़कर अन्य ऐल्कोहॉलीय पेय में इसका उत्पादन सर्वाधिक है तथा यह लोकप्रिय पेय मदिरा के रूप में ही नहीं वरन् जीवनजल के रूप में घायल तथा बीमारों की रक्षा में भी प्रयुक्त होता है।
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