भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है,और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है। राजा कार्तीवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु भगवान दत्तात्रेय के अनन्य भक्तों में से एक थे
हमारे पुराण देवी-देवताओं की चमत्कारिक घटनाओं से भरे हुए हैं। हिन्दू धर्म में असंख्य देवों का वर्णन है, इसलिए इनसे जुड़ी घटनाओं की संख्या भी बहुत अधिक है। सनातन धर्म विश्व का प्रचीन धर्म है और इसकी कालावधि की गणना लाखों वर्ष मे है।
इसी पौराणिक इतिहास में पवित्र और पतिव्रता देवी अनुसूया व उनके पति अत्रि का नाम प्रमुख तौर पर दर्ज है।
एक बार की बात है माँ अनुसूया त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़े तप में लीन हो गईं, जिससे तीनों देवों की अर्धांगिनियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को जलन होने लगी।
तीनों ने अपनी पतियों से कहा कि वे भू लोक जाएं और वहां जाकर देवी अनुसुया की परीक्षा लें। ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवनसंगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया की तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक चले गए। अनुसुया के पास जाकर संन्यासी के वेश में गए त्रिदेव ने उन्हें भिक्षा देने को कहा, लेकिन उनकी एक शर्त भी थी। अनुसुया के पतित्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव ने उनसे कहा कि वह भिक्षा मांगने आए हैं लेकिन उन्हें भिक्षा उनके सामान्य रूप में नहीं बल्कि अनुसुया की नग्न अवस्था में चाहिए। अर्थात देवी अनुसुया उन्हें तभी भिक्षा दे पाएंगी, जब वह त्रिदेव के समक्ष नग्न अवस्था में उपस्थित हों।त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा संभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला।पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए। शिशु रूप लेने के बाद अनुसुया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियां चिंतित हो गईं और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया , जिनमें दतात्रेय तीनों देवों के अवतार थे । दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है। दतात्रेय की छ: भुजाएँ और तीन शीश इसलिए हैं जिसकी कथा इस प्रकार है
एक बार ब्रह्मा ब्रह्मलोक में ध्यान में लीन थे की तभी भगवान शंकर वहां पधारे वे ब्रह्मा का ध्यान टूटने का इंतजार करने लगे किन्तु ब्रह्मदेव ने अपने नेत्र नहीं खोले भगवान शिव की शांति का बांध टूटने लगा उन्होंने अपने डमरू से भी ब्रह्मदेव को जगाने का प्रयास किया किन्तु उनका ध्यान ही नहीं टूटा भगवान ब्रह्मा की जब आखें खुली तब उन्होंने शिवजी से माफ़ी मांगी किन्तु शिवजी को शांत नहीं कर सके उन्होंने भगवान सत्यनारायण का ध्यान किया जिससे भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत किया किन्तु उनका अंश आधे से ज्यादा नष्ट हो चुका था | तब देवी अनुसूया ने जब तीनों में से दो शिशु अर्थात् चंद्रदेव और दुर्वासा को जन्म दिया ( दुर्वासा सबसे बड़े और चंद्रमा दूसरे स्थान के पुत्र थे ) जब तीसरे शिशु ( अर्थात् दतात्रेय ) का जन्म नहीं हुआ किन्तु अनुसूया को प्रसव पीड़ा होती रही तब ब्रह्मा जी और शिवजी को सारी बात समझ आ गई तब उन्होंने अपने कुछ अंश भेजे जिससे दतात्रेय के गर्भ में ही तीन सिर और छ: भुजाएँ हो गई |
दत्तात्रेय के अन्य दो भाई चंद्र देव और ऋषि दुर्वासा थे। चंद्रमा को ब्रह्मा और ऋषि दुर्वासा को शिव का रूप ही माना जाता है।
जिस दिन दत्तात्रेय का जन्म हुआ आज भी उस दिन को हिन्दू धर्म के लोग दत्तात्रेय जयंती के तौर पर मनाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा,भगवान दत्तात्रेय ने कहा : "आत्मा ही मेरा गुरु है,तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।"
उन्होंने कहा मेरे चौबीस गुरुओं के नाम है :
१) पृथ्वी
२) जल
३) वायु
४) अग्नि
५) आकाश
६) सूर्य
७) चन्द्रमा
८) समुद्र
९) अजगर
१०) कपोत
११) पतंगा
१२) मछली
१३) हिरण
१४) हाथी
१५) मधुमक्खी
१६) शहद निकालने वाला
१७) कुरर पक्षी
१८) कुमारी कन्या
१९) सर्प
२०) बालक
२१) पिंगला वैश्या
२२) बाण बनाने वाला
२३) मकड़ी
२४) भृंगी कीट
भगवान दत्तात्रेय :-
"आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।"
भावार्थ -
"जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है।" (जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य)
भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अवतार माने जाते हैं।
भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और जल्दी से फल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं।
दत्तसंप्रदाय प्रभाव महाराष्ट्र, कर्नाटक में प्रभावशाली है।
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