तेल या तॆल (अंग्रेज़ी: tell या tel अरबी:تَل से) पुरातत्वशास्त्र में ऐसे टीले को कहते हैं जो किसी स्थान पर कई सदियों से मानवों के बसने और फिर छोड़ देने से बन गया हो। जब लोगों की कई पुश्तें एक ही जगह पर रहें और बार-बार वहाँ निर्माण और पुनर्निर्माण करती जाएँ तो सैंकड़ों सालों में उस जगह पर एक पहाड़ी जैसा टीला बन जाता है। इस टीले का अधिकाँश भाग मिटटी की बनी ईंटें होता है जो जल्दी ही टूटकर वापस मिटटी बन जाती हैं। अक्सर किसी टेल में ऊपर एक समतल भाग और उसके इर्द-गिर्द ढलानें होती हैं।
'टेल' शब्द कई सामी भाषाओं में मिलता है, जैसे कि अरबी भाषा का 'तॆल' (تَل) और इब्रानी भाषा में 'तेल' (תֵּל)। यह शब्द विशेष रूप से मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका की संस्कृतियों से सम्बंधित पुरातत्व-अध्ययन में ज़्यादा प्रयोग होता है।
टेलों को एहतियात से खोदने पर उसमें से बहुत सी महत्वपूर्ण वस्तुएँ और निर्माण निकल सकते हैं। अक्सर इनमें सरकारी कार्यालय, धार्मिक मंदिर, घर, सैनिक ठिकाने, वग़ैराह मिलते हैं। खुदाई की गहराई से पता चलता है कि उस सतह के निर्माणों और वस्तुओं का प्रयोग किस काल में हुआ था - जितना गहरा खोदा जाए उस गहराई में मिलने वाली चीज़ें उतनी ही पुरानी होती हैं। टेलों को खोदने में एक बुराई यह है कि जैसे-जैसे नीचे की परतों की ओर खोदा जाता है वैसे-वैसे ऊपर की परतों के निर्माण ध्वस्त होता जाता है जिस से ऐतिहासिक जानकारी हमेशा के लिए खोई जा सकती है। इसलिए भौतिकशास्त्री और भूवैज्ञानिक टेलों के अन्दर एक्स-किरणों, धरती-भेदी रेडार, चुम्बकीय मापयंत्रों और अन्य औज़ारों के साथ बिना खोदे देखने की तकनीकें विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
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