किलनी (Tick) छोटे वाह्य परजीवी जानवर हैं जो स्तनधारियों, पक्षियों और कभी-कभी सरीसृपों एवं उभयचरों के शरीर पर रहकर उनके खून चूसकर जीते हैं। इन्हें 'कुटकी' और 'चिचड़ी' भी कहते हैं। ये बहुत से रोगों के वाहक भी हैं जैसे लाइम रोग (Lyme disease), Q-ज्वर, बबेसिओसिस, आदि।
एक सुप्रबंधित डेरी फार्म पर जहां पशुओं के विचरण की आजादी हो, पर्याप्त मात्रा में अच्छा पोषण उपलब्ध हो और पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो, वहां पर जूँ और किलनी की उपस्थिति का पशुओं के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु वातावरणीय परिस्थितियां (मुख्यतया अत्यधिक ठंडी) इन बाह्य-परजीवियों की सक्रियता को अत्यधिक बढ़ा देते हैं, जिससे पशुओं में निम्नलिखित प्रतिकूल लक्षण देखे जा सकते हैं -
कम उम्र के पशुओं पर इनका प्रतिकूल प्रभाव ज्यादा होता है। इनका प्रकोप सर्दियों में आम है, जबकि जाड़े के अंत और बसंत के प्रारम्भ (फरवरी/मार्च) में इनकी संख्या अधिकतम स्तर पर देखी जाती है।
बांधकर रखे जाने वाले पशुओं में स्वतंत्र रूप से रखे जाने वाले पशुओं की तुलना में इनके संक्रमण की सम्भावना लगभग 2 गुना ज्यादा होती है।
जब पशुओं में अत्यधिक अतिक्रमण से उनके सामान्य व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है, तो रोकथाम के सार्थक प्रयास की आवश्यकता होती है।
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