किलनी

किलनी (Tick) छोटे वाह्य परजीवी जानवर हैं जो स्तनधारियों, पक्षियों और कभी-कभी सरीसृपों एवं उभयचरों के शरीर पर रहकर उनके खून चूसकर जीते हैं। इन्हें 'कुटकी' और 'चिचड़ी' भी कहते हैं। ये बहुत से रोगों के वाहक भी हैं जैसे लाइम रोग (Lyme disease), Q-ज्वर, बबेसिओसिस, आदि।

किलनी
किलनी

सर्दियों में गायों में बाह्य परजीवी का नियंत्रण

एक सुप्रबंधित डेरी फार्म पर जहां पशुओं के विचरण की आजादी हो, पर्याप्त मात्रा में अच्छा पोषण उपलब्ध हो और पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो, वहां पर जूँ और किलनी की उपस्थिति का पशुओं के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु वातावरणीय परिस्थितियां (मुख्यतया अत्यधिक ठंडी) इन बाह्य-परजीवियों की सक्रियता को अत्यधिक बढ़ा देते हैं, जिससे पशुओं में निम्नलिखित प्रतिकूल लक्षण देखे जा सकते हैं -

  • पशुओं में खुजली एवं जलन
  • दुग्ध उत्पादन में कमी
  • भूख कम लगना
  • खाद्य रूपान्तरण दर का घटना
  • रक्ताल्पता
  • चमड़ी का खराब हो जाना एवं बालों का झड़ना
  • तनाव बढ़ना

कम उम्र के पशुओं पर इनका प्रतिकूल प्रभाव ज्यादा होता है। इनका प्रकोप सर्दियों में आम है, जबकि जाड़े के अंत और बसंत के प्रारम्भ (फरवरी/मार्च) में इनकी संख्या अधिकतम स्तर पर देखी जाती है।

बांधकर रखे जाने वाले पशुओं में स्वतंत्र रूप से रखे जाने वाले पशुओं की तुलना में इनके संक्रमण की सम्भावना लगभग 2 गुना ज्यादा होती है।

बचाव

  • पशुओं को जितना सम्भव हो धूप में रखना चाहिये।
  • पशुओं को बंद कमरों में कम से कम रखें।
  • सर्दियों में पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला आहार (मुख्यतः खनिज मिश्रण) प्रदान करें।
  • पशुओं को पर्याप्त जगह प्रदान करते हुये तनावपूर्ण वातावरण से दूर रखें।
  • नये पशुओं को पुराने पशुओं से कम से कम तीन सप्ताह तक अलग रखना।
  • संक्रमित पशुओं को सामुदायिक चारागाह में स्वस्थ पशुओं के साथ चरने से रोकना चाहिये।

रोकथाम

जब पशुओं में अत्यधिक अतिक्रमण से उनके सामान्य व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है, तो रोकथाम के सार्थक प्रयास की आवश्यकता होती है।

  • खाद्य तेल (जैसे अलसी का तेल) का एक पतला लेप लगाना चाहिये।
  • साबुन के गाढे घोल का इस्तेमाल एक सप्ताह के अंतराल पर दो बार करना चाहिये।
  • आयोडिन को शरीर के ऊपर एक सप्ताह के अंतराल पर दो बार रगड़ना चाहिये।
  • लहसुन के पाउडर का शरीर की सतह पर इस्तेमाल करें।
  • एक हिस्सा एसेन्सियल आयल और दो-तीन हिस्सा खाद्य तेल को रगड़ना चाहिये।
  • किलनी के विरूद्ध होम्योपैथिक ईलाज काफी उपयोगी होता है।
  • पाइरिथ्रम नामक वनस्पतिक कीटनाशक भी काफी उपयोगी है।
  • पशुओं की रीढ पर दो-तीन मुट्ठी सल्फर का प्रयोग करना चाहिये।
  • चूना-सल्फर के घोल का इस्तेमाल 7-10 दिन के अंतराल पर लगभग 6 बार करना चाहिये।

Tags:

परजीविताबबेसिओसिस

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

केन्द्र-शासित प्रदेशभारत में संघवादध्रुव राठी१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राममध्यकालीन भारतअमिताभ बच्चननवादा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रपृथ्वीराज सुकुमारनलोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीवैद्यनाथ मन्दिर, देवघरविटामिन डीउत्तराखण्ड में लोकसभा क्षेत्रसोनू निगमदमनइमाम अहमद रज़ामौलिक कर्तव्यलक्ष्मीराज्य सभा के वर्तमान सदस्यों की सूचीशेर शाह सूरीकार्ल मार्क्सनीम करौली बाबामानव दाँतनवीन जिन्दलराजनीतिक दलअमर सिंह चमकीलाआधार कार्डशिक्षककहानीकिशोरावस्थाॐ नमः शिवायखेलहिन्दी की गिनतीनाटकसम्प्रभुताब्रह्मचर्यरीति कालसंयुक्त राष्ट्रभारत माता की जयजयशंकर प्रसादशक्ति पीठशिवलिंगगौतम बुद्धस्त्री जननांगभारत के रेल मंत्रीएडोल्फ़ हिटलरअस्र की नमाज़समाज कार्यभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीविटामिनपृथ्वी की आतंरिक संरचनाकिशोर कुमाररोमारियो शेफर्डफुटबॉलशिक्षा का अधिकारप्यार किया तो डरना क्या (1998 फ़िल्म)गोगाजीराशियाँभारत में यूरोपीय आगमनहिन्दी साहित्य का इतिहासमीशोसमासकलानिधि मारनमेरे यार की शादी हैदीपावलीजहानाबाद लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रसंजु सैमसनएमाज़ॉन.कॉमपृथ्वीराज चौहानएनरिच नॉर्टेछत्तीसगढ़ के जिलेबुध (ग्रह)भांग का पौधाजातिमुग़ल साम्राज्यबौद्ध धर्महिन्दू वर्ण व्यवस्थाविकिपीडियागोरखनाथ🡆 More