काफ़िर (अरबी كافر (काफ़िर); बहुवचन كافرون काफ़िरून) इस्लाम में अरबी भाषा का बहुत विवादित शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ - अस्वीकार करने वाला या ढ़कने वाला या गैर-मुसलमान होता है। नास्तिक को दहरिया (भौतिकवादी) बुलाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, जबकि इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत थे कि एक बहुदेववादी/मुश्रिक (हिंदू, जैन, बौद्ध धर्म के पालन करने वाले) एक काफ़िर है, वे कभी-कभी इस शब्द को पुस्तक के लोगों के लिए (यहूदी और ईसाई) या गंभीर पाप करने वाले मुसलमानों के लिए लागू करने के औचित्य पर असहमत थे। मुस्लिम आक्रमणों, कहानियों और लूट पर अपने संस्मरणों में, दक्षिण एशिया के कई मुस्लिम इतिहासकारों ने हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म के पालन करने वालों के लिए काफिर शब्द का प्रयोग किया है। कुरान मुश्रिकुन (मुश्रिकों) और किताब के लोगों के बीच अंतर करता है, मूर्ति पूजा करने वालों के लिए मुश्रिक शब्द का ही प्रयोग करता है, किंतु कुछ शास्त्रीय मुसलमान टिप्पणीकारों ने ईसाई सिद्धांत को भी शिर्क का एक रूप माना है। यहूदियों और ईसाइयों को जजिया का भुगतान करने की आवश्यकता थी, जबकि चार मधबों के विभिन्न नियमों के आधार पर, अन्य (हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म) धर्म के पालन करने वालों को, इस्लाम को स्वीकार करने, जजिया का भुगतान करने, निर्वासित होने या मारे जाने की आवश्यकता हो सकती है। इस शब्द को अपमानसूचक माना जाने लगा है; इसी लिये कुछ मुस्लिम इसके स्थान पर ग़ैर-मुस्लिम शब्द का प्रयोग करने की सलाह देते हैं।
इस्लाम के मजहबी साहित्य (कुरान, हदीस, आदि) का बहुत बड़ा हिस्सा काफ़िर के बारे में और काफ़िरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाय, इसको लेकर लिखा गया है। कुरान का लगभग 64% भाग काफ़िरों से सम्बन्धित है; शिरा के 81% भाग में इसी बात का वर्णन है कि इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद काफ़िरों के साथ कैसे निपटे थे; हदीस का लगभग 32% भाग काफ़िरों या कुफ्र के बारे में है। इस प्रकार इन तीनों का औसतन 60% भाग काफ़िरों या कुफ्र के बारे में है।
प्रायः इस्लाम का पूरा सिद्धान्त उसके छः विश्वास-सूत्रों के सार रूप में बताया जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
इनमें से पहले पांच का उल्लेख कुरान में आया है। सलफी विद्वान मोहम्मद तकी-उद-दीन-अल-हिलाली के अनुसार उपरोक्त किसी भी बात पर जो कोई विश्वास नहीं रखता तो वह "कुफ्र' का दोषी है। उन्होने अनेक प्रकार के प्रमुख कुफ्र गिनाए हैं-
मामूली अविश्वास या कुफ़रान-निमाह "ईश्वर के आशीर्वाद या एहसान की कृतघ्नता" को इंगित करता है।
इसी तरह की सैकड़ों आयतों में इस्लाम या उसके सिद्धान्तों में विश्वास न करने वालों के साथ हिंसा का उपयोग करने की सलाह दी गयी है।
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