एलो करीब चार सौ रसीले पुष्पित पौधों की प्रजातियों का एक वर्ग है। इनमें जो सबसे आम और सुविख्यात है वह घृतकुमारी या ट्रु ऐलो है।
Aloe. | |
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Aloe succotrina | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
अश्रेणीत: | Angiosperms |
अश्रेणीत: | Monocots |
गण: | Asparagales |
कुल: | Asphodelaceae |
वंश: | Aloe L. |
Species | |
See Species |
अफ्रीका मूल का यह वर्ग है और दक्षिण अफ्रीका के केप प्रॉविन्स, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के पहाड़ों, तथा मेडागास्कर जैसे पड़ोसी क्षेत्र, अरब प्रायद्वीप और अफ्रीका के द्वीपों में बहुत आम है।
APG II प्रणाली (2003) ने इस वर्ग को एस्फोडेलैसिया परिवार में रखा। पहले इसे ऐलोसिया और लिलिसिया या लिली परिवार में भी रखा गया था। इस वर्ग के नजदीकी रूप से संबंद्ध सदस्य जस्टेरिया, हावॉर्थिया और क्निपोफिया है, जिनके विकास की प्रणाली एक समान हैं, भी ज्यादातर मुसब्बर के नाम से जानी जाती हैं। ध्यान रहे कि ये पौधे कभी-कभी अमेरिकी एलो (एगेव अमेरिकाना) भी कहलाती हैं एगेवासिया से संबंधित है, एक दूसरे परिवार की हैं।
ज्यादातर मुसब्बर प्रजातियों के पत्ते बड़े, मोटे, गुद्देदार गुलाब की पंखुडि़यों की तरह सजावट वाले होते हैं। ये पत्ते अक्सर नुकीले शीर्ष के साथ बर्छे की आकार के होते हैं और किनारा कांटेदार होता है। मुसब्बर फूल नलीदार होते हैं, ज्यादातर पीले, गुलाबी या लाल के होते हैं और उद्गम में घने गुच्छेदार, साधारण या पत्ताविहीन तना शाखेदार होता है।
मुसब्बर की कई प्रजातियां तनाविहीन होती है, निचले स्तर से एकदम सीधे गुलाब की तरह विकसित होती है, दूसरी प्रकार की प्रजातियों में शाखादार या शाखाविहीन तना हो सकती हैं, जिनसे गुद्देदार पत्ते निकलते हैं। ये धूसर से चटकीले हरे रंग के होते हैं और कभी-कभी धारीदार या चितकबरे होते हैं। दक्षिण अफ्रीका की कुछ देसी मुसब्बर आकार में वृक्ष के समान होते हैं।
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अगरू प्रजातियां अक्सर सजावटी पौधे के रूप में बगीचे और गमले दोनों में उगाये जाते है। अगरू की बहुत सारी प्रजातियां बहुत ही उम्दा सजावटी होती है और गुदा के संग्राहकों के लिए ये बहुत ही कीमती होते हैं। घृतकुमारी का उपयोग इनसानों पर आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूप में होता है और इसके चिकित्सकीय प्रभाव का भी दावा किया जाता है, जिसका अनुमोदन वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान द्वारा भी किया जाता है। इसकी पत्तियों के चिपचिपे रस से मुलायम क्रीम बनती है जो धूप की कालिमा जैसे जलने में गुणकारी है। इनसे बहुत खास प्रकार के साबुन भी बन सकते हैं।
विभिन्न तरह की मुसब्बर की प्रजातियों के मानव द्वारा ऐतिहासिक उपयोग के दस्तावेज मिलते हैं। चिकित्सीय प्रभावकारिता का दस्तावेज उपलब्ध है, हालांकि अपेक्षाकृत सीमित है।
मुसब्बर की 300 प्रजातियों में से, कुछ का ही पारंपरिक रूप से एक हर्बल औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, चिकित्सीय हार्बल औषधि में मुसब्बर के बहुत ही आम संस्करण घृतकुमारी का उपयोग किया जा रहा है। एलो पैरी (उत्तर-पूर्व अफ्रीका में पाया जाता है) और एलो फेरॉक्स (दक्षिण अफ्रीका में पाया जाता है) भी इसमें शामिल है। घावों का इलाज करने में यूनानी और रोमन घृत कुमारी का उपयोग करते थे। मध्ययुग में, इसकी पत्तियों में पाया जानेवाला पीले रंग के तरल को रेचक के रूप में पसंद किया जाता था।[उद्धरण चाहिए] यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि परिष्कृत मुसब्बर, जिसमें एलॉइन होता है, आमतौर पर विरेचक के रूप इस्तेमाल होता है, जबकि परिष्कृत घृतकुमारी रस में महत्वपूर्ण एलॉइन आमतौर पर नहीं होता है।
कुछ प्रजातियां, विशेष रूप से घृतकुमारी वैकल्पिक चिकित्सा में इस्तेमाल होता है और घर पर प्राथमिक चिकित्सा में. मुसब्बर पौधे से निकाला जानेवाला स्वच्छ गूदा और पीला एलॉइन दोनों का उपयोग त्वचा की तकलीफ में ऊपर से राहत के लिए होता है। हार्बल औषधि के रूप में, घृतकुमारी के रस का उपयोग आमतौर पर पाचन में गड़बड़ी को दूर करने के लिए भीतरी तौर पर भी किया जाता है।"aloe for heartburn". मूल से 12 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2010."aloe alt med". मूल से 4 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2010."Aloe IBS study". मूल से 17 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2010. कुछ आधुनिक अनुसंधान कहता है कि चिकित्सा के सामान्य प्रोटोकॉल की तुलना में घृतकुमारी उल्लेखनीय रूप से धीमी गति से घाव को भर सकती है। अनियमित और नियंत्रित चिकित्सकीय परीक्षण की दूसरी समीक्षाओं में ऐसा प्रमाण नहीं मिला है कि घृतकुमारी में दमदार औषधीय प्रभाव है।
आज इंसानों में बाहरी और भीतरी दोनों ही तौर पर घृतकुमारी का इस्तेमाल किया जाता है। पत्तियों में पाया जानेवाले जेल का उपयोग मामूली जलने, घाव और त्वचा की विभिन्न तकलीफों जैसे एक्जिमा और दाद में आराम देने के लिए किया जाता है। घृतकुमारी पौधे से निकाले गए घृतकुमारी रस का उपयोग भीतरी तौर पर विभिन्न तरह की पाचन की गड़बडि़यों में किया जाता है। हार्बल औषधि का इस्तेमाल कई पश्चिमी देशों में 1950 के दशक में इस लोकप्रिय हुआ था। जेल का प्रभाव लगभग तत्काल होता है, कहते हैं इसे घाव पर एक परत के रूप में इसलिए लगाया जाता है ताकि किसी प्रकार की संक्रमण की संभावना को कम हो।
अपेक्षाकृत कुछ अध्ययन मुसब्बर जेल को भीतरी तौर पर लेने के बारे में भी आए हैं। मुसब्बर के संघटक रसौली को विकसित होने से रोकते हैं। पशुओं के मॉडल पर भी कुछ अध्ययन किए गए हैं, जो बताते हैं कि मुसब्बर के अर्क में उल्लेखनीय एंटी-हाइपरग्लिसेमिक प्रभाव है और यह मधुमेह II के इलाज में उपयोगी हो सकता है। इन अध्ययनों की पुष्टि मानव में नहीं की गई है।
9 मई 2002 में, U.S. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अलॉइन और विरेचक संघटक के रूप में मुसब्बर पौधे के पीले रस का उपयोग के उपयोग पर अंतिम प्रतिबंध नियम लागू कर दिया, ड्रग उत्पादों को रोक दिया गया. आज मुसब्बर के ज्यादातर रसों में उल्लेखनीय अलॉइन नहीं होता है।
डब्ल्यू. ए. शेनस्टोन के अनुसार, मुसब्बर के दो वर्ग मान्यता प्राप्त हैं: (1) नैटलॉइन, जो नाइट्रिक एसिड के साथ पिक्रिक और ऑक्सेलिक एसिड उत्पन्न करता है और नाइट्रिक एसिड के साथ लाल रंगाई नहीं देता है; और (2) बार्बैलॉइन, जो नाइट्रिक एसिड के साथ ऐलोटिक एसिड (C7H2N3O5), क्राईसेमिक एसिड (C7H2N2O6), पिक्रिक एसिड और ऑक्सेलिक एसिड उत्पन्न करता है, जो एसिड द्वारा लाल हो जाता है। इस दूसरे समूह को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है; ए-बार्बैलॉइन, जो बार्बाडोस मुसब्बर से प्राप्त होता है, जो और ठण्ड में लाल हो जाता है और बी-बार्बैलॉइन, जो सोकोट्राइन और जंजीबार मुसब्बर से प्राप्त होता है, जो गर्म होने पर साधारण नाइट्रिक एसिड द्वारा या ठंड में भाप एसिड द्वारा लाल हो जाता है। नैटलॉइन (2C17H13O7·H2O) बहुत ही चटकीला पीला होता है। बार्बालॉइन (C17H18O7) प्रिज्म सदृश्य स्फटिक होता है। मुसब्बर प्रजातियों में वोलाटाइल तैल भी होता है, जिसके कारण इसमें एक गंध होता है।[उद्धरण चाहिए]
एलो रब्रोलुटी हेरलड्री प्रभारी के रूप में होता है, जैसा कि नामिबिया के सिविक हेरलड्री में होता है।
मुसब्बर वर्ग की लगभग 400 प्रजातियां हैं। एपूरी सूची के लिए मुसब्बर वर्ग की प्रजातियों की सूची देखें. प्रजातियों में शामिल हैं:
दक्षिण काकेशस क्षेत्र में जार्जिया के अर्द्ध-स्वायत्त क्षेत्र बाटम द्वारा 1919 में जारी किए गए एक डाक टिकट पर मुसब्बर वृक्ष दिखाई दिया।
Aloe से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
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