अकादमी

अकादमी, मूलतः प्राचीन यूनान में एथेंस नगर में स्थित एक स्थानीय वीर 'अकादेमस' के व्यक्तिगत उद्यान का नाम था। कालांतर में यह वहाँ के नागरिकों को जनोद्यान के रूप में भेंट कर दिया गया था और उनेक लिए खेल, व्यायाम, शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र बन गया था। प्रसिद्ध दार्शनिक अफलातून (प्लेटो) ने इसी जनोद्यान में एथेंस के प्रथम दर्शन विद्यापीठ की स्थापना की। आगे चलकर इस विद्यापीठ को ही अकादमी कहा जाने लगा। एथेंस की यह एक ही ऐसी संस्था थी जिसमें नगरवासियों के अतिरिक्त बाहर के लोग भी सम्मिलित हो सकते थे।

अकादमी
राफेल (1509–1510), द्वारा चित्रित 'एथेंस का स्कूल'

परिचय

इसमें विद्या देवियों (म्यूज़ेज़) का एक मंदिर था। प्रति मास यहाँ एक सहभोज हुआ करता था। इसमें संगमरमर की एक अर्धवृताकार शिला थी। कदाचित् इसी पर से अफलातून और उनके उत्तराधिकारी अपने सिद्धांतों और विचारों का प्रसार किया करते थे। गंभीर संवाद एवं विचार विनिमय की शैली में वहाँ दर्शन, नीति, शिक्षा और धर्म की मूल धारणाओं का विश्लेषण होता था। एक, अनेक, संख्या, असीमता, सीमाबद्धता, प्रत्यक्ष, बुद्धि, ज्ञान, संशय, ज्ञेय, अज्ञेय, शुभ, कल्याण, सुखस आनंद, ईश्वर, अमरत्व, सौर मंडल, निस्सरण, सत्य और संभाव्य, ये उदाहरणतः कुछ प्रमुख विषय हैं जिनकी वहाँ व्याख्या होती थी। यह संस्था नौ सौ वर्षों तक जीवित रही और पहले धारणावाद का, फिर संशयवाद का और उसके पश्चात् समन्वयवाद का संदेश देती रही। इसका क्षेत्र भी धीरे-धीरे विस्तृत होता गया और इतिहास, राजनीति आदि सभी विद्याओं और सभी कलाओं का पोषण इसमें होने लगा। परंतु साहसपूर्ण मौलिक रचनात्मक चिंतन का प्रवाह लुप्त सा होता गया। 529 ई. में सम्राट जुस्तिनियन ने अकादमी को बंद कर दिया और इसकी संपत्ति जब्त कर ली।

फिर भी कुछ काल पहले से ही यूरोप में इसी के नमूने पर दूसरी अकादमियाँ बनने लग गई थीं। इनमें कुछ नवीनता थी; ये विद्वानों के संघों अथवा संगठनों के रूप में बनीं। इनका उद्देश्य साहित्य, दर्शन, विज्ञान अथवा कला की शुद्ध हेतुरहित अभिवृद्धि था। इनकी सदस्यता थोड़े से चुने हुए विद्वानों तक सीमित होती थी। ये विद्वान बड़े पैमाने पर ज्ञान अथवा कला के किसी संपूर्ण क्षेत्र पर, अर्थात् संपूर्ण प्राकृतिक विज्ञान, संपूर्ण साहित्य, संपूर्ण दर्शन, संपूर्ण इतिहास, संपूर्ण कला क्षेत्र आदि पर दृष्टि रखते थे। प्रायः यह भी समझा जाने लगा कि प्रत्येक अकादमी को राज्य की ओर से यथासंभव संस्थापन, पूर्ण अथवा आंशिक आर्थिक सहायता, एवं संरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त होनी ही चाहिए। कुछ यह भी विश्वास रहा है कि विद्या के क्षेत्रों में उच्च स्तर की योग्यता बहुत थोड़े व्यक्तियों में हो सकती है और इसका समाज के धनी और वैभवशाली अंगों से मेल बना रहना स्वाभाविक तथा आवश्यक भी है। पिछले दो सहस्र वर्षों में बहुत से देशों में इन नवीन विचारों के अनुसार बनी हुई कई-कई अकादमियाँ रही हैं। अधिकांश अकादमियाँ विज्ञान, साहित्य, दर्शन, इतिहास, चिकित्सा अथवा ललित कला में से किसी एक विशेष क्षेत्र में सेवा करती रही हैं। कुछ की सेवाएँ इनमें से कई क्षेत्रों में फैली रही हैं।

लोकतंत्रवादी विचारों और भावनाओं की प्रगति से अकादमी की इस धारणा में वर्तमान काल में एक नया परिवर्तन आरंभ हुआ है। आज की कुछ अकादमियाँ जनजीवन के निकट रहने का प्रयत्न करने लगी हैं, जनता की रुचियों, विचारधाराओं और कलाओं को अपनाने लगी हैं और अन्य प्रकार से जनप्रिय बनने का प्रयास करने लगी हैं। भारत में राष्ट्रीय संस्कृति ट्रस्ट द्वारा स्थापित ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी इस परिवर्तन की प्रतीक हैं।

बाहरी कड़ियाँ

प्लेटो की अकादमी

आधुनिक संस्थाएँ

Tags:

अकादमी परिचयअकादमी बाहरी कड़ियाँअकादमीउद्यानएथेंसखेलचिकित्साप्लेटोयूनानव्यायामशिक्षा

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों की सूचीधर्मप्राकृतिक संसाधनअर्जुन वृक्षऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीनयुगप्रियंका चोपड़ासांवरिया जी मंदिरकंप्यूटरसूर्यस्वदेशी आन्दोलनगर्भाशयसिकंदरहेमा मालिनीनिबन्धजातिजिजीविषाहिन्दी साहित्य का आधुनिक कालअर्शदीप सिंह (क्रिकेटर)चौरी चौरा कांडत्र्यम्बकेश्वर मन्दिरधर्मेन्द्रछायावादरोहित शर्माभारतखाटूश्यामजीवीर्यएलोरा गुफाएंमोटू पतलूकरचमारबौद्ध धर्मभारत का विभाजनहरभजन सिंहइरफ़ान ख़ानबुटाटी धामसामाजीकरणचंद्रशेखर आज़ाद रावणसदर बाजार, दिल्लीभारत में धर्ममुनमुन सेननेस वाडियामानव कंकालजंतर मंतर, दिल्लीफ्लिपकार्टसम्भोगसाइमन कमीशनतरबूज़बीबी का मक़बराबाजीराव प्रथमशुक्राणुदिल सेकुरुक्षेत्र युद्धनैनीतालआदिवासी (भारतीय)खेल द्वारा शिक्षाकोशिकासुभद्रा कुमारी चौहानध्रुव जुरेलधनंजय यशवंत चंद्रचूड़रामकामसूत्रअक्षय कुमारमैहरगाँजाअसहयोग आन्दोलनमहाधिवक्ताअनुवादरंजीत गुहारामभद्राचार्यहरे कृष्ण (मंत्र)चेन्नई सुपर किंग्सराष्ट्रकूट राजवंशज्ञानपीठ पुरस्कारजीमेलमौसमज़िन्दगी न मिलेगी दोबाराधीरेंद्र कृष्ण शास्त्री🡆 More