रास बिहारी घोष (23 दिसम्बर, 1845 – 28 फरवरी 1921) भारत के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए भारत में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें ब्रिटेन पर काफ़ी भरोसा था। सन १९०६ में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने थे। इसके अगले ही वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
रास बिहारी घोष कलकत्ता विश्वविद्यालय के साथ जुड़े थे। सन 1887-1899 के बीच वह सिंडिकेट के सदस्य रहे। गोपाल कृष्ण गोखले की अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की योजना का उन्होंने समर्थन किया और स्वदेशी आन्दोलन के समय उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा के लिए इस कदम का समर्थन किया। वह नेशनल काउंसिल ऑफ़ ऐजुकेशन के पहले अध्यक्ष चुने गए। 1906 तक रास बिहारी घोष ने कभी खुद को सार्वजनिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ संबंधित नहीं रखा। राजनीति में उनकी पहली महत्वपूर्ण उपस्थिति 1905 में रही, जब उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में लॉर्ड कर्जन की आपत्तिजनक टिप्पणी के विरुद्ध कलकत्ता टाउन हॉल में आयोजित सभा की अध्यक्षता की।
सन 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। अगले वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की, जो भारी गड़बड़ी के साथ समाप्त हो गया। 1908 में उन्होंने मद्रास अधिवेशन की अध्यक्षता की।
राजनीति में एक उदारवादी के तौर पर उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन में प्रमुखता से भाग लिया, जो उनके मुताबिक "विदेशीयों से नफरत" पर नहीं बल्कि अपने देश से प्यार पर आधारित है। उनके लिए इसका मतलब था "भारतीयों के लिए भारत का विकास"। यह लक्ष्य वह संवैधानिक विरोध प्रदर्शन के जरिये पाना चाहते थे और असहिष्णु आदर्शवादी के तौर पर चरमपंथियों की निन्दा करना चाहते थे। दूसरे देशों के राष्ट्रीय आन्दोलन में भी उनकी रुचि थी। अर्थव्यवस्था के साहसी रक्षक, भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन को स्वदेशी उद्योगों के पालन-पोषण और प्रोत्साहन के रूप में देखा, जो ब्रिटिश सरकार की मुक्त उद्योग नीति को देखते हुए सीमा शुल्क द्वारा सुरक्षित होने में असफल थी। उनके अनुसार भारत सरकार को देश के औद्यौगिक विकास का लक्ष्यषय स्थापित करने के लिए एक प्रेरक बल होना चाहिए। वह सार्वजनिक सभा में भाषण के अभ्यस्त नहीं थे, पर वह एक निपुण वक्ता थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र को संबोधित किया और कई अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भी अपनी बात रखी।
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