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प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र (Managerial economics) अर्थशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा है विवेकपूर्ण प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक होता है। यह आर्थिक सिद्धान्तों एवं व्यावसायिक व्यवहारों का ऐसा एकीकरण है जो प्रबन्धकों को निर्णय लेने और भावी योजनाऐं बनाने में सुविधा प्रदान करता है। इसे 'व्यावसायिक अर्थशास्त्र' या 'फर्मों का अर्थशास्त्र' भी कहा जाता है। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र उन आर्थिक सिद्धान्तों, प्रविधियों एवं तर्कों का अध्ययन है जिनका उपयोग व्यवसाय की व्यावहारिक समस्याओं के हल के लिए किया जाता है। अतः प्रबंधकीय अर्थशास्त्र, आर्थिक विज्ञान का वह भाग है जिसका व्यवसाय-जगत की समस्याओं के विश्लेषण तथा विवेकपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेने में उपयोग किया जाता है। R आधुनिक विश्व की बढ़ती जटिलताओं और विषम आर्थिक समस्याओं के समाधान में अर्थशास्त्र के निरपेक्ष सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग निरन्तर लोकप्रिय होता जा रहा है। जहां पहले व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रबन्धकीय समस्याओं के विश्लेषण और समाधान में आर्थिक सिद्धान्तों का प्रयोग सीमित था वहां अब अर्थशास्त्र की नवीन अवधारणाओं, वैज्ञानिक विधियों और आर्थिक विश्लेषण की गणितीय पद्धतियों के विकास से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का जन्म हुआ है। प्रबन्धकों को व्यावसायिक जटिल समस्याओं के समाधान का व्यावहारिक हल प्रदान कर उनकी आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति करता है।
आर्थिक सिद्धान्त दो या दो से अधिक आर्थिक चरों के फलनात्मक सम्बन्ध व्यक्त करतें है, जो कुछ दी हुई शर्तों पर आधारित होते हैं। व्यवसाय की समस्याओं में व्यावसायिक निर्णयन में सम्बन्धित आर्थिक सिद्धान्तों का उपयोग तीन प्रकार से सहायता करते हैं -
इस प्रकार आर्थिक सिद्धान्तों के उपयोग से व्यावसायिक समस्याओं में मार्गदर्शन तो प्राप्त होता ही है, इससे निर्णयन प्रक्रिया मजबूत एवं सही बनती है जिससे सही निर्णयन संभव होते हैं।
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र परम्परागत अर्थशास्त्र की ही एक विशिष्ट शाखा है, किन्तु फिर भी यह परम्परागत अर्थशास्त्र से अनेक दृष्टिकोण से भिन्न है। परम्परागत अर्थशास्त्र एक व्यापक विषय है, प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र परम्परागत अर्थशास्त्र की एक शाखा मात्र है, अतः प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का क्षेत्र सीमित है। परम्परागत अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों का केवल विवचेन किया जाता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों का व्यावसायिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह से परम्परागत अर्थशास्त्र सैद्धान्तिक है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र व्यावहारिक है। परम्परागत अर्थशास्त्र में मांग व पूर्ति का विश्लेषण सम्पूर्ण अर्थशास्त्र के अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में किया जाता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में मांग व पूर्ति का विश्लेषण केवल एक फर्म अथवा संगठन के सम्बन्ध में होता है।
परम्परागत अर्थशास्त्र एक पुराना विषय है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एक नवीन विषय है। परम्परागत अर्थशास्त्र की मान्यताएं काल्पनिक होती है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र की मान्यताएं व्यावहारिक होती है। परम्परागत अर्थशास्त्र में लगान, ब्याज, राष्ट्रीय आय तथा व्यापार चक्र का अध्ययन किया जाता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन नहीं किया जाता है। परम्परागत अर्थशास्त्र में व्यक्ति, समाज, फर्म तथा राष्ट्र के आर्थिक क्रियाकलापों का अध्ययन किया जाता है जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में केवल फर्म की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
परम्परागत अर्थशास्त्र में व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र दोनों का अध्ययन किया जाता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन किया जाता है तथा समष्टि अर्थशास्त्र के उस भाग का ही अध्ययन किया जाता है जो फर्म को प्रभावित करता है। परम्परागत अर्थशास्त्र वर्णनात्मक विषय से अधिक सम्बन्धित है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र निर्देशात्मक विषय अधिक होता है।
परम्परागत अर्थशास्त्र में सिद्धान्तों का केवल विश्लेषण किया जाता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों के विश्लेषण के साथ-साथ, उनका फर्म की समस्याओं के समाधान, फर्म के नियोजन एवं निर्णयन में प्रयोग किया जाता है। परम्परागत अर्थशास्त्र में वितरण के सभी सिद्धान्त तथा लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ का अध्ययन होता है, जबकि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में वितरण के केवल एक सिद्धान्त यथा लाभ का अध्ययन किया जाता है।
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र एक ऐसा नवीन विकासमान विषय है जिसका पूर्णता प्रदान करने के लिए अनेक विषयों का सहयोग लिया जाता है, जिससे विशुद्ध आर्थिक सिद्धान्तों को फर्म के व्यावहारिक जीवन में प्रयुक्त किया जा सके। ये विषय व्यष्टि अर्थशास्त्र, समष्टि अर्थशास्त्र, गणित, सांख्यिकी, संक्रिया विज्ञान, लेखाशास्त्र, प्रबन्ध शास्त्र आदि हैं। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का अन्य विषयों से सम्बन्ध संक्षेप में इस प्रकार है-
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र प्रबन्धक के प्रयोग के लिए ही होता है, अतः प्रबन्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में व्यापक प्रयोग किया जाता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र ही प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का मुख्य आधार है। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में मूल्य सिद्धान्त एवं फर्म के सिद्धान्त ही अध्ययन का विषय हैं जो कि व्यष्टि अर्थशास्त्र से लिया गया है। व्यष्टि अर्थशास्त्र के निम्न विषयों का अध्ययन प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में कुछ आवश्यक समायोजनों के पश्चात् किया जाता है -
समष्टि अर्थशास्त्र का प्रयोग फर्म पर बाह्म परिस्थितियों के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण, अध्ययन एवं समायोजन करने में उपयोगी सिद्ध होता है। समष्टि अर्थशास्त्र के निम्न घटकों का प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में व्यापक प्रयोग किया जाता है-
वर्तमान युग में सरकार फर्म के क्रियाकलापों को बहुत अधिक प्रभावित करती है और यह हस्तक्षेप दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी हस्तक्षेप का फर्म पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसके लिए प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में सार्वजनिक वित्त के सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है। ये सार्वजनिक वित्त के सिद्धान्त अग्र हैं -
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र के निष्कर्षो को अधिक शुद्ध बनाने में गणित का प्रयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। गणित के सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र, आर्थिक सम्बन्धों को अधिक शुद्धता से माप सकता है एवं पूर्वानुमान अधिक शुद्ध हो सकते हैं। नियोजन सत्यता के अधिक निकट होगा तथा निर्णय सही होने की संभावना बढ़ जायेगी। मांग पूर्वानुमान, आदा-प्रदा विश्लेषण, उत्पादन फलन क्षेत्रों में गणित का प्रयोग बढ़ता जा रहा है।
सांख्यिकी का प्रयोग प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में बढ़ता जा रहा है। सांख्यिकी का सम्भाव्यता सिद्धान्त, महांक जड़ता नियम (Law of Inertia of large numbers), सह-सम्बन्ध, प्रतीपगमन आदि प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में बहुत अधिक प्रयोग में लिये जाते है। सांख्यिकी के सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र के निर्णय अधिक व्यावहारिक एवं उपयोगी होते हैं। सांख्यिकी विधियों की सहायता से लगाये गये पूर्वानुमान अधिक शुद्ध होते हैं।
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में निर्णय लेते समय संक्रिया विज्ञान का खूब उपयोग होता है। प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में फर्म के 'अनुकूलतम आकार' का निर्धारण, साधनों के चयन की समस्या, वैकल्पिक उत्पादन विधियों, लागत न्यूनीकरण एवं लाभ अधिकतम करने के लिए निम्नलिखित संक्रिया विज्ञान की तकनीकों का प्रयोग किया जाता है -
लेखाशास्त्र के द्वारा ही प्रबन्धकीय अर्थशास्त्री को फर्म के विभिन्न क्रियाकलापों की संख्यात्मक जानकारी मिलती है, जिसको वह नियोजन (प्लानिंग), निर्णय तथा नियंत्रण के लिए प्रयुक्त करता है। लेखाशास्त्र के माध्यम से ही उसे फर्म के विक्रय, मांग, पूर्ति, उत्पादन तथा लागत के समंक उपलब्ध होते हैं।
प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र में लागत लेखों का बहुत अधिक प्रयोग होता है। लागत लेखों की सहायता से प्रबन्धकीय अर्थशास्त्री लागतों का विश्लेषण कर उसको न्यूनतम रखने का प्रयास करता है।
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