पालि, उत्तर भारत, और विशेष रूप से मगध जनपद की एक प्राचीन प्राकृत है। इसे 'मागधी' भी कहते हैं। जैनों की अर्धमागधी की अपेक्षा यह संस्कृत के अधिक निकट है। जैसे संस्कृत की शकुन्तला को पालि में 'सकुन्तला' कहेंगे।
ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्य महाकच्चान ने पालि का एक व्याकरण रचा था किन्तु वह नहीं मिलता। बोधिसत्त और सब्बगुणाकर नाम के दो व्याकरण थे जो अब नहीं मिलते। आजकल सच्चान, मोग्गल्लान और सद्दनीति- इन्ही तीन व्याकरणों का अधिक प्रचार है। इन तीन व्याकरणों में कचान व्याकरण अधिक प्राचीन है जो सम्भवतः श्रीलंका में लिखा गया था। यह व्याकरण बड़े सरल ढंग से लिखा गया है। पालि व्याकरण के कुछ अन्य ग्रन्थों के नाम ये हैं-
वैदिक भाषा एवं संस्कृत की अपेक्षा मध्यकालीन भाषाओं का भेद प्रमुखता से निम्न बातों में पाया जाता है :
व्याकरण की दृष्टि से
ये विशेषताएँ मध्ययुगीन भारतीय आर्यभाषा के सामान्य लक्षण हैं और देश की उन लोकभाषाओं में पाए जाते हैं जिनका सुप्रचार उक्त अवधि से कोई दो हजार वर्ष तक रहा और जिनका बहुत-सा साहित्य भी उपलब्ध है।
नीचे कुछ प्रमुख शब्दों के तुल्य पालि शब्द दिये गये हैं-
संस्कृत | अक्षर | आर्य | भिक्षु | चक्र | धर्म | दुःख | कर्म | काम | क्षत्रिय | क्षेत्र | मार्ग | मोक्ष | निर्वाण | सर्व | सत्य |
पालि | अक्खर | अरिय | भिक्खु | चक्क | धम्म | दुक्ख | कम्म | काम | खत्तिय | खेत्त | मग्ग | मोक्ख | निब्बान | सब्ब | सच्च |
पु. (लोक "संसार") | नपुस. (यान "भारवाहक, गाड़ी")
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एक. | ! बहु. | ! एक. | ! बहु.
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कर्ता | लोको | rowspan="2"| लोका | rowspan="3"| यानं | rowspan="3"| यानानि
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संबोधन | लोक
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कर्म | लोकं | लोके
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करण | लोकेना | rowspan="2"| लोकेहि | यानेना | rowspan="2"| यानेहि
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संप्रदान | लोका (लोकम्हा, लोकस्मा; लोकतो) | याना (यानम्हा, यानस्मा; यानतो)
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अपादान | लोकस्स (लोकाय) | rowspan="2"| लोकानां | यानस्स (यानाया) | rowspan="2"| यानानां
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संबंध | लोकस्स | rowspan="2"| लोकानां | यानस्स | rowspan="2"| यानानां
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अधिकरण | लोके (लोकस्मिय) | लोकेसु | याने (यानस्मिय) | यानेसु
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स्त्री (गाथा- "कथा कहानी")
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एक. | ! बहु.
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कर्म | गाथा | rowspan="3"| गाथायो
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संबोधन | गाथे
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कर्म | गाथां
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करण | गाथाय | rowspan="2"| गाथाहि
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संप्रदान
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आपादान | गाथानां
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संबंध
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अधिकरण | गाथाय, गाथायां | गाथासु
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पु (इसि- "सीर") | नपुसक (अक्खि- "आग")
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एक | ! बहु | ! एक | ! बहु
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कर्ता | इसि | rowspan="3"| इसयो, इसी | rowspan="3"| अक्खि, अक्खिं | rowspan="3"| अक्खीनि
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संबोधन
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कर्म | इसिं
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करण | इसिना | rowspan="2"| इसीहि | अक्खिना | rowspan="2"| अक्खीहि
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संप्रदान | इसिना, इसितो | अक्खिना, अक्खितो
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अपादान | इसिनो | rowspan="2"| इसिनं | अक्खिनो | rowspan="2"| अक्खीनं
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संबंध | इसिस्स | इसिनो | अक्खिस्स | अक्खिनो
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अधिकरण | इसिस्मिं | इसीसु | अक्खिस्मिं | अक्खीसु
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पु. (भिक्खु "मठवासी") | नपुस. (चक्खु- "आँख")
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कर्ता | भिक्खु | rowspan="3"|, भिक्खू | rowspan="3"| चक्खु, चक्खुं | rowspan="3"| चक्खूनि
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संबोधन
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कर्म | भिक्खुं
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करण | भिक्खुना | rowspan="2"| भिक्खूहि | rowspan="2"| चक्खुना | rowspan="2"| चक्खूहि
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संप्रदान
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अपादान | भिक्खुनो | भिक्खूनं | चक्खुनो | चक्खूनं
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संबंध | भिक्खुस्स, भिक्खुनो | भिक्खूनं, भिक्खुन्नं | चक्खुस्स, चक्खुनो | चक्खूनं, चक्खुन्नं
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अधिकरण | भिक्खुस्मिं | भिक्खूसु | चक्खुस्मिं | चक्खूसु
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