पर्यारण शिक्षा (EE), यह सिखाने के सुनियोजित प्रयास की ओर संकेत करती है कि किस प्रकार मनुष्य चिरस्थायी अस्तित्व के लिए स्वाभाविक वातावरण की क्रियाओं और, विशेषतः अपने व्यवहार और पारिस्थितिक तंत्र में सामंजस्य स्थापित कर सकता है। इस शब्द का प्रयोग प्रायः विद्यालय प्रणाली के अंतर्गत, प्राथमिक से लेकर माध्यमिक शिक्षा के बाद तक दी जाने वाली शिक्षा की ओर संकेत करने के लिए किया जाता है। हालांकि, कभी कभी अधिक व्यापक रूप में इसका प्रयोग आम जनता और अन्य दर्शकों को शिक्षित करने के समस्त प्रयासों के लिए किया जाता है, जिसमे मुद्रित सामग्री, वेबसाइट्स, मीडिया अभियान आदि शामिल होते हैं। इससे सम्बंधित क्षेत्रों में बाह्य शिक्षा और अनुभवात्मक शिक्षा शामिल हैं।
पर्यावरण शिक्षा अधिगम की एक प्रक्रिया है जो पर्यावरण व इससे जुड़ी चुनौतियों के सम्बन्ध में लोगों की जानकारी और जागरूकता को बढ़ाती हैं, चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक कुशलताओं व प्रवीणता को विकसित करती हैं और सुविज्ञ निर्णय तथा ज़िम्मेदारी पूर्ण कदम बढ़ाने के लिए इस ओर प्रवृत्ति, प्रेरणा व प्रतिबद्धता का प्रोत्साहन करती हैं (UNESCO, टाबिलिसी घोषणा, 1978).
ईई (EE) निम्नांकित पर केंद्रित है:
पर्यावरण शिक्षा की जड़ें 18 वीं शताब्दी जैसे प्रारंभिक समय में पायी जा सकती हैं जब जीन-जैक्स रूसो ने ऐसी शिक्षा के महत्व पर जोर दिया था जो Emile: or, On Education[1] में पर्यावरण के महत्व पर केन्द्रित हो. कई दशकों बाद, लुईस अगसिज़ जो एक स्विस में जन्मे प्रकृतिवादी थे, उन्होंने भी छात्रों को "किताबों का नहीं, प्रकृति का अध्ययन" करने के लिए प्रेरित किया और रूसो के दर्शन का समर्थन किया। इन दोनों प्रभावशील विद्वानों ने एक सुदृढ़ पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की नींव डालने में सहायता की, जो प्रकृति अध्ययन के नाम से जाना जाता है, यह 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध व् 21 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के दौरान की घटना है।
प्रकृति अध्ययन के आन्दोलन में छात्रों को प्रकृति की प्रशंसा व प्राकृतिक जगत के अंगीकरण की भावना के विकास में सहायता के लिए पौराणिक कथाओं व नैतिक शिक्षा का उपयोग किया जाता था। कॉर्नेल विश्वविद्यालय में प्रकृति अध्ययन विभाग की विभागाध्यक्ष ऐना बोट्स्फोर्ड कौमस्टॉक, प्रकृति अध्ययन आन्दोलन में एक प्रसिद्द हस्ती थीं और उन्होंने 1911 में हैंडबुक फॉर नेचर स्टडी नामक किताब लिखी, जिसमे सांस्कृतिक मान्यताओं के सम्बन्ध में बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रकृति का उपयोग किया जाता है। कॉर्नस्टॉक और आन्दोलन के अन्य नेताओं, जैसे कि लिबर्टी हाइड बैले ने सामुदायिक नेताओं, अध्यापकों और वैज्ञानिकों द्वारा आश्चर्यजनक समर्थन एकत्र करने में प्रकृति अध्ययन की सहायता की और पूरे संयुक्त राज्य में बच्चों का विज्ञान का पाठ्यक्रम भी परिवर्तित कर दिया.
1920 व् 1930 के दशक के दौरान ग्रेट डिप्रेशन और डस्ट बाउल के फलस्वरूप एक नए प्रकार की पर्यावरणीय शिक्षा, संरक्षण शिक्षा उद्भवित हुई. कंज़र्वेशन एजुकेशन प्रकृति अध्ययन की तुलना में एक अत्यंत भिन्न तरीके से प्राकृतिक संसार को संबोधित करती है क्यूंकि यह स्वाभाविक इतिहास के स्थान पर कठोर वैज्ञानिक प्रशिक्षण पर केन्द्रित है। संरक्षण शिक्षा एक प्रमुख प्रबंधन व योजना उपकरण था जो इस काल के दौरान सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में सहायता करता था।
आधुनिक पर्यावरणीय शिक्षा आन्दोलन जिसने 1960 के दशक के अंतिम और 1970 के प्रारंभिक वर्षों में स्पष्ट वेग प्राप्त किया, वह प्रकृति अध्ययन और संरक्षण शिक्षा से ही निकला है। इस काल के दौरान, कई घटनाओं - जैसे नागरिक अधिकार, वियतनाम युद्ध और शीत युद्ध - ने अमेरिकी लोगों को एक दूसरे व यू.एस सरकार के विरुद्ध कर दिया. हालाँकि, अधिकांशतः लोग विकिरण विच्छेद से डरने लगे, रैचल कार्सन की साइलेंट स्प्रिंग में उल्लेखित रासायनिक कीटनाशक और वायु प्रदूषण व अपशिष्ट की अधिक मात्रा, अपने स्वास्थ और स्वाभाविक पर्यावरण के स्वाथ्य के प्रति लोगों की चिंता ने एक एकीकृत तथ्य का मार्ग प्रशस्त किया जिसे पर्यावरणवाद के नाम से जाना जाता है।
एक नए आन्दोलन के रूप में पर्यावरण शिक्षा के बारे में पहला लेख 1969 में फी डेल्टा कप्पन में प्रकाशित हुआ जिसके लेखक जेम्स ए. स्वान थे।"पर्यावरण शिक्षा" की एक परिभाषा सबसे पहले मार्च 1970 में एजुकेशन डाइजेस्ट में प्रकाशित हुई जिसे विलियम स्टाप ने लिखा था, बाद में स्टाप उनेस्को के पर्यावरणीय शिक्षा के प्रथम निदेशक बने और फिर ग्लोबल इंटरनैशनल नेटवर्क के.
अंततः, 22 अप्रैल 1970 को मनाये गए प्रथम पृथ्वी दिवस (अर्थ डे) - पर्यावरणीय समस्याओं के विषय में एल राष्ट्रीय शिक्षा - ने आधुनिक पर्यावरण शिक्षा के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उसी वर्ष बाद में, राष्ट्रपति निक्सन ने पर्यावरणीय शिक्षा अधिनियम को स्वीकृति दे दी, जिसका उद्देश्य K-12 विद्यालयों में पर्यावरणीय शिक्षा को सम्मिलित करना था। इसके बाद, 1971 में, द नैशनल एसोशियेशन फॉर एंवयार्मेंटल एजुकेशन (जिसे नॉर्थ अमेरिकन एसोशियेशन फॉर एंवयार्मेंटल एजुकेशन के नाम से जाना जाता है) का निर्माण हुआ जिससे पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम को प्रोत्साहित किया जा सके और अध्यापकों को संसाधन उपलब्ध कराने के द्वारा पर्यावरण साक्षरता में सुधार किया जा सके.
अंतर्राष्ट्रीय रूप से, पर्यावरण शिक्षा को मान्यता तब मिली जब 1972 में स्टॉकहोम, स्वीडेन में मानव पर्यावरण पर आयोजित यू ऍन कॉन्फ्रेंस ने पर्यावरणीय शिक्षा को वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए एक आवश्यक उपकरण घोषित कर दिया. द युनाइटेड नेशंस एजुकेशन साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइज़ेशन (UNESCO) और युनाइटेड नेशंस एन्वायरमेंट प्रोग्रैम (UNEP) ने तीन प्रमुख घोषणायें की जिन्होंने पर्यावरणीय शिक्षा के प्रवाह का मार्ग निर्देशन किया।
05-16 जून 1972 - मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की घोषणा. यह दस्तावेज़ 7 घोषणाओं व 26 सिद्धांतों द्वारा बना था जो "संसार के लोगों को मानव पर्यावरण के संरक्षण और बेहतरी के लिए प्रेरित और निर्देशित कर सकें.
13-22 अक्टूबर 1975 - बेलग्रेड चार्टर पर्यावरण शिक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का परिणाम था जो बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में आयोजित की गयी थी। बेलग्रेड चार्टर स्टॉकहोम घोषणा पर बनाया गया था और पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम के लक्ष्यों, उद्देश्यों और मार्गदर्शक सिद्धातों को जोड़ता है। यह पर्यावरण शिक्षा के लिए श्रोताओं को परिभाषित करता है, जिसमे आम जनता भी शामिल है।
14-26 अक्टूबर 1977 - टाबिलिसि घोषणा में "संसार के पर्यावरण के सुधार व संरक्षण में और साथ ही साथ संसार के समुदायों के सुदृढ़ व संतुलित विकास में पर्यावरणीय शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया है।" टाबिलिसि घोषणा ने स्टॉकहोम घोषणा और बेलग्रेड चार्टर में अद्यतन सुधार और नए लक्ष्यों, उद्देश्यों, विशेषताओं और पर्यावरण शिक्षा के मार्गदर्शक सिद्धांतों के योग द्वारा उन्हें स्पष्ट कर दिया.
उस दशक के बाद, 1977 में, टाबिलिसि में पर्यावरण शिक्षा पर हुए अंतर सरकारी सम्मेलन में, जॉर्जिया ने वैश्विक पर्यावरण के संरक्षण व बेहतरी में पर्यावरण शिक्षा की भूमिका पर बल दिया और पर्यावरण शिक्षा के लिए ढ़ांचे व दिशा निर्देश प्रदान करने की मांग की. सम्मेलन ने पर्यावरण शिक्षा की भूमिका, लक्ष्य और लक्षणों को प्रस्तुत किया और इसके लिए अनेकों लक्ष्यों और सिद्धांतों को उपलब्ध कराया.
1970 के दशक के बाद, गैर सरकारी संगठन जोकि पर्यावरणीय शिक्षा पर केन्द्रित थे, उनका निरंतर विकास व गठन होता गया, उनकी कक्षाओं में पर्यावरणीय शिक्षा देने वाले शिक्षकों की संख्या बढ़ गयी और इस आन्दोलन को दृढ़ राजनैतिक समर्थन मिल गया। जब युनाइटेड स्टेट कांग्रेस ने राष्ट्रीय पर्यावरणीय शिक्षा अधिनियम 1990 को स्वीकृति दे दी तब यह आगे बढ़ने की दिशा में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम था, इसके फलस्वरूप पर्यावरणीय शिक्षा का कार्यालय यू.एस. एंवयार्मेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी में बना दिया गया और ईपीए को संघीय स्तर पर पर्यावरणीय शिक्षा सम्बन्धी पहल करने की अनुमति मिल गयी।
संयुक्त राज्य में पर्यावरण शिक्षा के कुछ पूर्ववृत्त प्रकृति अध्ययन, संरक्षण शिक्षा और विद्यालयीय शिविर थे। प्रकृति अध्ययन बाह्य अन्वेषण (रोथ, 1978) के साथ शैक्षिक दृष्टिकोण को एकीकृत करता था। संरक्षण शिक्षा ने प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग के प्रति जागरूकता विकसित की. जॉर्ज पर्किन्स मार्श ने मानवता के अभिन्न अंग के रूप में स्वाभाविक संसार पर भाषण दिया. यू.एस फॉरेस्ट सर्विस और ईपीए (EPA) जैसी सरकारी एजेंसियां भी संरक्षण कार्यावली पर जोर दे रही थीं। संरक्षण आदर्शों अभी भी पर्यावरण शिक्षा को निर्देशित करते हैं। विद्यालयीय शिविर पर्यावरण और शैक्षिक उद्देश्यों हेतु कक्षा से बाहर संसाधनों के प्रयोग के संपर्क में लाते थे। इन पूर्व्वृत्तों की विरासत अभी भी पर्यावरण शिक्षा के विकासरत क्षेत्र में विद्यमान है।
पर्यावरण शिक्षा को अधिकांश पारंपरिक K -12 पाठ्यक्रम में एक अतिरिक्त यां वैकल्पिक विषय माना जाता है। प्रारंभिक विद्यालय के स्तर पर पर्यावरण शिक्षा विज्ञान संवर्धन पाठ्यक्रम, प्राकृतिक ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण, सामुदायिक सेवा शिविर और बाह्य विज्ञान विद्यालयों के रूप ले सकती है। ईई (EE) की नियमावली, विद्यालय और संगठनों को उन पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम के सुधार और विकास में मदद करती है जो नागरिकों को पर्यावरण के सम्बन्ध में गहन जानकारी प्रदान करते हैं। विद्यालय सम्बन्धी ईई (EE) नियमावली तीन मुख्य घटकों पर केन्द्रित होती है: पाठ्यक्रम, ग्रीन सुविधाएँ और प्रशिक्षण.
विद्यालय ईई (EE) नियमावली के पर्याप्त सहायता कोष द्वारा पर्यावरण शिक्षा को अपने पाठ्यक्रम में एकीकृत कर सकते हैं। अधिगम का यह माध्यम- जो "पर्यावरण को एकीकरण के सन्दर्भ में" प्रयोग करने के लिए जाना जाता है - पर्यावरण शिक्षा को मूलभूत विषयों में सम्मिलित करता है और इस प्रकार पर्यावरण शिक्षा अन्य प्रमुख विषयों के अध्ययन के समय में व्यवधान नहीं डालती, जैसे कि कला, व्यायाम यां संगीत. कक्षा मे पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रम के लिए आर्थिक सहायता के अतिरिक्त, पर्यावरण शिक्षा की नियमावली व्यवहारिक बाह्य अधिगम के लिए आर्थिक संसाधन भी आवंटित करती है। यह गतिविधियाँ और शिक्षा "स्वाभाविक न्यून विकार", का सामना करने और उसे कम करने में सहायता करती हैं और साथ ही साथ और अधिक स्वस्थ जीवन शैली को प्रोत्साहित करती हैं।
हरित विद्यालय या हरित सुविधा का प्रचार, पर्यावरण शिक्षा के अन्य मुख्य घटक हैं। विद्यालयों के हरितकरण की सुविधा की औसत लागत, एक पारंपरिक विद्यालय के निर्माण की लागत और लागत के 2 प्रतिशत के योग से कुछ ही कम होती है, लेकिन इन ऊर्जा दक्ष ईमारतों से मिलने वाला प्रतिफल कुछ ही वर्षों में प्राप्त होने लगता है। पर्यावरण शिक्षा नीतियाँ विद्यालय के हरितकरण में आने वाली प्रारंभिक लागत की अपेक्षाकृत छोटी समस्याओं को कम करने में सहायता करती हैं। हरित विद्यालय नीतियाँ आधुनीकीकरण, नवीनीकरण या विद्यालय की प्राचीन सुविधाओं की मरम्मत के लिए अनुदान भी प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ की दृष्टि से अच्छे भोजन का विकल्प भी हरित विद्यालयों का प्रमुख पहलू होता है। नीतियाँ विशेषकर ताज़ा बनाया खाना खिलाने पर विशेष ध्यान देती हैं, जोकि विद्यालय के अन्दर स्थानीय रूप से उगायी गयी उच्च गुणवत्ता युक्त सामग्रियों से बना हो.
माध्यमिक विद्यालयों में, पर्यावरण पाठ्यक्रम विज्ञान के अंतर्गत ही या विद्यार्थियों के रूचि समूह या क्लबों के आधार पर एक केन्द्रित विषय हो सकता है। स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर, इसे शिक्षाशास्त्र, पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण विज्ञान और नीतियाँ, पारिस्थितिक विज्ञान, या मानव/सांस्कृतिक पारिस्थितिकी के अंतर्गत अपने ही एक क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है।
पर्यावरण शिक्षा कक्षा की पाठ-योजना तक ही प्रतिबंधित नहीं है। अनेकों ऐसे तरीके हैं जिनके द्वारा बच्चों को उस वातावरण के बारे में शिक्षा दी जा सकती है जिसमे वह रह रहे हैं। विद्यालय के आँगन में अनुभव पर आधारित शिक्षा व राष्ट्रीय उद्यानों के प्रत्यक्ष भ्रमण से लेकर विद्यालय के बाद हरित क्लबों और विद्यालय स्तर की चिरस्थायी परियोजनाओं तक, पर्यावरण एक ऐसा विषय है जो सुलभतापूर्वक और तत्परता से गमनीय है। इसके आलावा, पृथ्वी दिवस को मनाया जाना या ईई (EE) सप्ताह में भाग लेना (जो नैशनल एन्वायरमेंट एजुकेशन प्रोग्रैम द्वारा चलाया जाता है), पर्यावरण शिक्षा के प्रति अपनी शिक्षा को समर्पित करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है। सर्वाधिक असरदार होने के लिए, एक समग्र माध्यम का प्रोत्साहन करना होगा जिसमे उदाहरणों की मुख्य भूमिका हो, जिसके अंतर्गत कक्षा और विद्यालय के मैदान में दीर्घकालिक अभ्यासों का आयोजन होगा और अभिभावकों और विद्यार्थियों को पर्यावरण शिक्षा को अपने घर तक ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा.
पर्यावरण नीति का अंतिम पहलू यह है कि एक चिरस्थायी समाज में विकास के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाये, हालाँकि यह दृष्टिकोण अंत में आता है किन्तु यह महत्व में किसी से कम नहीं है,. प्रकृति के साथ एक मजबूत सम्बन्ध स्थापित करने के अतिरिक्त, अमेरिकी नागरिकों को 21वीं शताब्दी के जनबल में सफल होने के लिए इसकी जानकारी आवश्यक है और उन्हें इसमें कुशल भी होना चाहिए. इस प्रकार पर्यावरण शिक्षा नीतियाँ अध्यापक प्रशिक्षण व श्रमिक प्रशिक्षण पहल, दोनों के लिए ही आर्थिक सहायता देती हैं। प्रभावशाली ढंग से पढ़ाने व पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने के लिए अध्यापकों को अवश्य ही प्रशिक्षित होना होगा. दूसरी ओर, वर्तमान जनबल को अवश्य ही प्रशिक्षित या पुनः प्रशिक्षित करना होगा जिससे वह नयी हरित अर्थव्यवस्था के साथ अनुकूलन स्थापित कर सकें. पर्यावरण शिक्षा नीतियाँ जो प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आर्थिक सहायता देती हैं वह नागरिकों को एक चिरस्थायी समाज में समृद्ध होने हेतु शिक्षित करने के विषय पर अत्यंत विवेचनात्मक हैं।
पर्यावरण शिक्षा, बाह्य शिक्षा और अनुभवात्मक शिक्षा के विषयों के साथ सम्मिश्रित है। दोनों ही विषय पर्यावरण शिक्षा के पूरक हैं लेकिन फिर भी उनके दर्शन भिन्न हैं।
जहाँ इन दोनों में से प्रत्येक क्षेत्र के अपने लक्ष्य हैं, वहीँ कुछ ऐसे बिंदु भी हैं जहाँ दोनों पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों और दर्शन के आधार पर एक दूसरे को अतिआच्छादित करते हैं।
पर्यावरण शिक्षा से संबंधित वर्तमान रुझानों में से एक रुझान, आदर्शवाद और सक्रियता के दृष्टिकोण से हटकर एक ऐसे दृष्टिकोण की ओर जाना चाहता है, जो छात्रों को अपने अनुभवों व आंकड़ों के आधार पर सुविज्ञ निर्णय लेने और कार्यवाही करने की अनुमति देता हो. इस प्रक्रिया में, पर्यावरण पाठ्यक्रम को विकासात्मक ढंग से सरकारी शिक्षा के स्तर के साथ एकीकृत किया गया है। कुछ पर्यावरण शिक्षकों को यह आन्दोलन कष्टप्रद और पर्यावरण शिक्षा के वास्तविक राजनैतिक व सक्रियतावादी माध्यम से अलग हटता हुआ लगता है जबकि अन्य को यह माध्यम अधिक वैधानिक और गमनीय लगता है।[उद्धरण चाहिए]
एक आन्दोलन ऐसा है जिसने अपेक्षाकृत हाल ही में औद्योगिक समाज में पर्यावरण शिक्षा के विचार की स्थापना (1960 का दशक) से विकास किया है, इसने प्रतिभागियों को प्रकृति प्रशंसा व जागरूकता से पारिस्थितिक दृष्टि से चिरस्थायी भविष्य की शिक्षा की ओर पहुंचा दिया है। इस चलन को, प्रतिभागियों को प्रकृति प्रशंसा की भावना के विकास द्वारा सबसे पहले अपनी ओर आकर्षित करने की इच्छा रखने वाले पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की संख्या के सूक्ष्म जगत के रूप मे देखा जा सकता है, जो बाद में संरक्षण व चिरस्थायित्व को प्रभावित करने वाले कार्यों के रूप में अनुवादित होगा.
यह कार्यक्रम न्यूयार्क से कैलिफौर्निया तक विस्तृत हैं, जिसमे कैलिफौर्निया विश्वविद्यालय, सांता क्रुज़, की लाइफ लैब भी शामिल है और साथ ही साथ इथिका का कॉर्नेल विश्वविद्यालय भी शामिल है। [1]
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