भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भले ही विविध प्रकार से होली का उत्सव मनाया जाता है परंतु सबका उद्देश्य एवं भावना एक ही है- भक्ति, सच्चाई के प्रति आस्था और मनोरंजन। इसके अतिरिक्त अनेक देश ऐसे हैं जहाँ या तो होली से मिलता जुलता कोई पर्व मनाया जाता है या किसी अन्य अवसर पर रंग या सादे पानी से खेलने की परंपरा है।
भारत ही नहीं विश्व के अन्य अनेक देशों में भी होली अथवा होली से मिलते-जुलते त्योहार मनाने की परंपराएँ हैं। नेपाल में होली के अवसर पर काठमांडू में एक सप्ताह के लिए प्राचीन दरबार और नारायणहिटी दरबार में बाँस का स्तम्भ गाड़ कर आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मरिशस में भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होली मनाई जाती है। प्रवासी भारतीय जहाँ-जहाँ जाकर बसे हैं वहाँ वहाँ होली की परंपरा पाई जाती है। कैरिबियाई देशों में बड़े धूमधाम और मौज-मस्ती के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है। यहाँ होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है और लोग परंपरागत तरीके से इसे मनाते हैं। १९वीं सदी के आखिरी और २०वीं सदी के शुरू में भारतीय लोग मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देश गए थे। इस दरम्यान गुआना और सुरिनाम तथा ट्रिनीडाड जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय जा बसे। भारतीय लोगों के साथ उनके त्यौहार और रस्मों-रिवाज भी इन देशों में पहुँचे। धीरे-धीरे फगुआ गुआना और सूरीनाम के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में एक हो गया। गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस देश की कुल आबादी में हिंदुओं का प्रतिशत लगभग ३३ हैं। यहाँ की लड़कियों और लड़कों को रंगीन पाउडर और पानी के साथ खेलते हुए बड़े आराम से देखा जा सकता है। गुआना के गाँवों में इस अवसर पर विशेष तरह के समारोहों का आयोजन किया जाता है। कैरिबियाई देशों में कई सारे हिंदू संगठन और सांस्कृतिक संगठन सक्रिय हैं। ये संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के ज़रिए फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली को काफ़ी कुछ उसी तरह से मनाया जाता है, जैसे भारत में मनाया जाता है। हाल के वर्षों में इसकी रौनक में वृद्धि हुई है। विदेशी विश्वविद्यालयों में भी होली का आयोजन होता रहा है। भले ही वह किसी संस्था के लिए चंदा जमा करने के उद्देश्य से ही क्यों न हो। विलबर फ़ोर्ड के स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी कैंपस पर होली के कुछ सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार रिचमंड हिल्स में होली के कुछ दृश्य भी हैं।
प्राचीन काल से अविरल होली मनाने की परंपरा को मुगलों के शासन में भी अवरुद्ध नहीं किया गया बल्कि कुछ मुगल बादशाहों ने तो धूमधाम से होली मनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुरशाह ज़फर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं।
जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था। इस अवसर पर राज्य के साधारण नागरिक बादशाह पर रंग डालने के अधिकारी होते थे। शाहजहाँ होली को 'ईद गुलाबी' के रूप में धूमधाम से मनाता था। बहादुरशाह ज़फर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर उनकी सरस काव्य रचनाएँ आज तक सराही जाती हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। मुगल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्ता खाँ को होली खेलते हुए दिखाया गया है। दाहिनी ओर दिए गए इस चित्र की पृष्ठभूमि में आम के पेड़ हैं महिलाओं के हाथ में पिचकारियाँ हैं और रंग के घड़े हैं।
बरसाने' की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और जम कर बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग 'बरसाना' आते हैं। मथुरा से 54 किलोमीटर दूर कोसी शेरगढ़ मार्ग पर फालैन गाँव है जहाँ एक अनूठी होली होती है। गाँव का एक पंडा मात्र एक अंगोछा शरीर पर धारण करके २०-२५ फुट घेरे वाली विशाल होली की धधकती आग में से निकल कर अथवा उसे फलांग कर दर्शकों में रोमांच पैदा करते हुए प्रह्लाद की याद को ताज़ा कर देता है। मालवा में होली के दिन लोग एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। उनका विश्वास है कि इससे होलिका नामक राक्षसी का अंत हो जाता है। राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। इसमें किसी नुक्कड़ नाटक की शैली में मंच सज्जा के साथ कलाकार आते हैं और अपने पारंपरिक हुनर का नृत्य और अभिनय से परिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं। तमाशा की विषय वस्तु पौराणिक कहानियों और चरित्रों के इर्दगिर्द घूमती हुई इन चरित्रों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी व्यंग्य करती है। मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पूर्व हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक 'मांदल' की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुँह पर गुलाल लगाता है और वह भी बदले में गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह सूत्र में बँधने के लिए सहमत हैं। युवती द्वारा प्रत्युत्तर न देने पर युवक दूसरी लड़की की तलाश में जुट जाता है।
होली खेलते समय सामान्य रूप से पुराने कपड़े पहने जाते हैं। मिथिला प्रदेश में होली खेलते समय लड़कों के झुंड में एक दूसरे का कुर्ता फाड़ देने की परंपरा है। होली का समापन रंग पंचमी के दिन मालवा और गोवा की शिमगो के साथ होता है जिस दिन धूम धाम से वसंत पंचमी से शुरू होने वाला वसंतोत्सव पूरा हो जाता है।
तेरह अप्रैल को ही थाईलैंड में नव वर्ष 'सौंगक्रान' प्रारंभ होता है इसमें वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है। लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है। लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं। म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है। जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है। अफ्रीका में 'ओमेना वोंगा' मनाया जाता है। इस अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था। अब उसका पुतला जलाकर नाच गाने से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। अफ्रीका के कुछ देशों में सोलह मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि सूर्य को रंग-बिरंगे रंग दिखाने से उसकी सतरंगी किरणों की आयु बढ़ती है। पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है। लोग परस्पर गले मिलते हैं। अमरीका में 'मेडफो' नामक पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। ३१ अक्टूबर को अमरीका में सूर्य पूजा की जाती है। इसे होबो कहते हैं। इसे होली की तरह मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग फूहड वेशभूषा धारण करते हैं। चेक और स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं। हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है। बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है। इटली में रेडिका त्योहार फरवरी के महीने में एक सप्ताह तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लकड़ियों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं। लोग अग्नि की परिक्रमा करके आतिशबाजी करते हैं। एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल। ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है। स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। जापान में १६ अगस्त रात्रि को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर कई स्थानों पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है। चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे कहलाता है। यह पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं। साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परिपाटी देखने में आती है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह से मनाया जाता है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भाँति लकड़ी जलाई जाती है और लोग आग के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं। इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए।
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