छिन्नमस्ता या 'छिन्नमस्तिका' या 'प्रचण्ड चण्डिका' दस महाविद्यायों में से एक हैं। छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में खड्क है।
छिन्नमस्ता | |
---|---|
कोलकाता के एक कालीपूजा मण्डप में छिन्नमस्ता। | |
संबंध | महाविद्या, देवी |
निवासस्थान | श्मशान |
अस्त्र | खप्पर |
जीवनसाथी | छिन्नमस्तक |
मान्यता है कि छिन्नमस्ता महाविद्या सकल चिंताओं का अंत करती है और मन में चिन्तित हर कामना को पूरा करती हैं। इसलिए उन्हें चिंतपुरणी भी कहा जाता है। चिंतपुरणी मंदिर हिमाचल प्रदेश मे है देवी छिन्नमस्ता का एक प्रसिद्ध मंदिर रजरप्पा मे है सहारनपुर की शिवालिक पहाडियों के मध्य प्राचीन शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ मे भी छिन्नमस्ता देवी का एक भव्य मंदिर है।
आद्या शक्ति अपने स्वरूप का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मैं छिन्न शीश अवश्य हूं लेकिन अन्न के आगमन के रूप सिर के सन्धान (सिर के लगे रहने) से यज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित हूं। जब सिर संधान रूप अन्न का आगमन बंद हो जाएगा तब उस समय मैं छिन्नमस्ता ही रह जाती हूं। इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती पार्वती का ही रौद्र रूप है। सुप्रसिद्ध पौराणिक हयग्रीवोपाख्यान का (जिसमें गणपति वाहन मूषक की कृपा से धनुष प्रत्यंचा भंग हो जाने के कारण सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का निरूपण है) इसी छिन्नमस्ता से संबद्ध है।
शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर आप स्थित हैं। आप एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए हैं। अपने कटे हुए स्कन्ध से रक्त की जो धाराएं निकलती हैं, उनमें से एक को स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराओं से अपनी जया और विजया नाम की दो सहेलियों की भूख को तृप्त कर रही हैं। इडा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाडियों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि को प्रशस्त करती हैं। विद्यात्रयी में यह दूसरी विद्या गिनी जाती हैं।
देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है। दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनि चक्र है। छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए। इस मंत्र के चार लाख जप करने पर देवी सिद्ध होकर कृपा करती हैं। जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण और कन्या भोजन करना चाहिए।
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article छिन्नमस्ता, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.