सुहार्तो

सुहार्तो (8 जून, 1921 – 27 जनवरी, 2008) इंदोनेशिया के सैनिक शासक और दूसरे राष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल 1967 से 1998 तक रहा। इंडोनेशिया ने सुहार्तो के नेतृत्व में 1975 में पूर्वी तिमोर पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया। अपने शासन के दौरान भ्रष्टाचार और मानवाधिकार हनन के आरोपों को लेकर लोगों के भारी विरोध के बीच सुहार्तो को 1998 में पद छोड़ना पड़ा। दुनिया भर में भ्रष्ट आचरण पर नज़र रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने मार्च, 2004 में कहा था कि सुहार्तो पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा भ्रष्ट नेता रहे।

सुहार्तो
सुहार्तो

सैनिक जीवन का प्रारंभ

एक किशोर उम्र के लड़के के रूप में युवा सुहार्तो डेनमार्क की औपनिवेशिक सेना में शामिल हुए। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन्होंने एक छापामार सैनिक के रूप में चार साल काम किया। उन्होंने इस रूप में डेनमार्क से इंडोनेशिया की आजादी की लड़ाई लड़ी। जब अगस्त, 1950 में इंडोनेशिया की एक स्वतंत्र गणतंत्र के रूप में स्थापना हुई तो उस समय वे 29 साल के थे। उस समय वे एक लेफ्टिनेंट कर्नल थे। लेकिन उनका सैन्य करिअर खत्म होने में अभी बहुत समय बाकी था। 1960 के दशक की शुरुआत में अपने पहले राष्ट्रपति सुकर्नो के शासनकाल के तहत इंडोनेशिया एक तीखे सत्ता संघर्ष के भंवर में फंस गया। राजनीतिक वर्चस्व के लिए सेना, साम्यवादियों और एक इस्लामी आंदोलन के बीच होड़ लग गई थी। बताते हैं कि सितंबर, 1965 में श्री सुहार्तो ने साम्यवादियों द्वारा समर्थित एक तख्तापलट को नाकाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस समय श्री सुहार्तो को एक जनरल के रूप में बहुत कम लोग जानते थे। 1966 में उन्होंने सत्ता पर आधिपत्य जमा लिया और यहीं से उनके क्रूर शासन की शुरुआत हुई।तख्तापलट के नाकाम होने के बाद श्री सुहार्तो ने सभी साम्यवादियों के सफाए का आदेश दिया। इसके बाद खून-खराबे का एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसने सेना, मीडिया, सरकार और शैक्षिक संस्थानों को भी अपनी चपेट में ले लिया। एक अनुमान के अनुसार, करीब 5 लाख इंडोनेशियाई नागरिक हलाक कर दिये गए। कुछ इतिहासवेत्ता इस खून-खराबे को 20वीं सदी की पूर्व नियोजित हत्याओं के सबसे कठोर मिसालों में से एक मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार सन 1965 से 1968 के सुहार्तो के शासनकाल में लगभग 800, 000 कम्युनिस्ट समर्थकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके अलावा पापुआ, एचेह और पूर्व तिमोर में आजादी आंदोलन के दौरान सैनिकों ने कम से कम 300,000 लोगों की हत्या की थी।


सुहार्तो को उनके सहयोगियों द्वारा 'विकास के पिता' के रूप में जाना जाता था। इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुहार्तो को अनेकों लोग एक ऐसा नेता मानते थे, जिन्होंने देश को गरीबी के गर्त से बाहर निकाला और उसे दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में शुमार किया। उन्हें जातीय, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक रूप से भिन्न आबादी को एक झंडे एवं पहचान के नीचे एकजुट करने का श्रेय भी जाता है। उनके कार्यकाल में इंडोनेशिया तेल और गैस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया। उत्पादों और वस्त्र निर्यात पर ज्यादा ध्यान दिया गया।

लेकिन भ्रष्टाचार व खूनखराबे के बीच उनकी वह सफलता कहीं दब गई। उनके विरोधियों का मानना था कि सुहार्तो के शासनकाल के दौरान देश में भ्रष्टाचार को काफी बढ़ावा मिला। लोकतंत्र समर्थकों के तीव्र विरोध के चलते उन्होंने १९९८ में उपराष्ट्रपति बहरुद्दीन युसूफ हबीबी को राष्ट्रपति पद सौंप दिया ।

अंतिम समय में

20 वीं सदी का सबसे अधिक नृशंस और भ्रष्ट शासन चलाने के लिए कुख्यात सुहार्तो पिछले एक दशक से जकार्ता के बाहरी इलाके में एक आलीशान विला में एकांत जीवन बिता रहे थे। मौत के कुछ दिनों पहले इंडोनेशिया में नई सरकार द्वारा सुहार्तो पर लगे आपराधिक मामलों की सुनवाई के प्रसास किए गए थे। पर इस पूर्व राष्ट्रपति के चिकित्सकों और वकीलों ने इनकी बिगड़ती तबीयत का हवाला देकर अदालत में उनकी पेशी को मुश्किल बताया था। 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के दौरान लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के जरिए सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद उन्हें कई बार दिल की बीमारियों के चलते कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। इस बार उन्हें चार जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फेफड़े और गुर्दों के काम करना बंद कर देने के बाद से उन्हें आईसीयू में रखा गया था। पिछले सप्ताह उनके इलाज में लगे डॉक्टरों ने सेहत में सुधार की बात की थी लेकिन रविवार को अचानक से उनकी हालत खराब हो गई।२७ जनवार्य २००८ को इनका देहांत हुआ।


सन्दर्भ

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192119671998200827 जनवरी8 जूनइंदोनेशियाराष्ट्रपति

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