प्रभुलाल भटनागर, (8 अगस्त, 1912 - 5 अक्टूबर, 1976) विश्वप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें गणित के लैटिस-बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए भटनागर-ग्रॉस-क्रूक (बी.जी.के) कोलीज़न मॉडल के लिये जाना जाता है।
प्रभू लाल भटनागर | |
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प्रभू लाल भटनागर | |
जन्म | 18 अगस्त 1912 कोटा, भारत |
मृत्यु | 5 अक्टूबर 1976 इलाहाबाद, भारत | (उम्र 64)
आवास | भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
क्षेत्र | गणितज्ञ |
संस्थान | दिल्ली विश्वविद्यालय भारतीय विज्ञान संस्थान हार्वर्ड विश्वविद्यालय स्मिथसोनियन खगोलशास्त्र वेधशाला |
शिक्षा | आगरा विश्वविद्यालय |
डॉक्टरी सलाहकार | अमीय चरण बैनर्जी |
डॉक्टरी शिष्य | पुरुषोत्तम लाल सचदेव फूलन प्रसाद |
प्रसिद्धि | भटनागर-ग्रॉस-क्रूक |
उल्लेखनीय सम्मान | पद्म भूषण 1968 |
प्रभु लाल जी का जन्म कोटा, राजस्थान में 8 अगस्त, 1912 को हुआ था। इनके पिता कोटा के महाराजा के दरबार में उच्च-पदासीन थे। ये पांच भाइयों में दूसरे स्थान पर थे। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा रामपुरा में और आगे कोटा के हर्बर्टर कॉलिज से ली। इंटरमीडियेट परीक्षा के समय इनके पिता का देहान्त हो गया और तब इन्होंने मिल रही छात्रवृत्ति के द्वारा परिवार का पोषण व अपनी शिक्षा जारी रखी व इंटरमीडियेट में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर लाला दयाकिशन गुप्ता, प्रधानाचार्य एवं निदेशक, शिक्षा विभाग, राजस्थान के प्रोत्साहन पर वे उच्च शिक्षा के लिये जयपुर गए, जहां के महाराजा कॉलिज से 1935 में विज्ञान स्नातक में प्रथम स्थान प्राप्त किया। ये स्थान इन्हें गणित व रासायनिकी क्षेत्र में मिला जिसके लिये इन्हें महाराजा फ़तेह सिंह स्वर्ण पदक, एवं आगरा विश्वविद्यालय की ओर से कृष्णा कुमारी देवी स्वर्ण पदक मिले। वहीं से विज्ञान स्नातकोत्तर भी किया। स्नातकोत्तर विषयों में आश्चर्यजनक परिणामों के लिये इन्हें महाराजा कॉलिज जयपुर से लॉर्ड नॉर्थ ब्रूक स्वर्ण पदक मिला। बाद में इनका विवाह आनंद कुमारी जी से संपन्न हुआ व राकेश, बृजेन्द्र, विनय एवं कमल नामक चार पुत्र व एक पुत्री कल्पना हुई।
घनिष्ठों की सिविल सेवाओं में जाने की सलाह पर ध्यान न देकर प्रभुलाल जी ने शोध पर जोर दिया। इनका शोध कार्य 1937 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रारंभ हुआ जहां ये 1939 तक रहे। वहां इन्होंने गणित व भौतिकी में प्रयुक्त फ़ोरियर श्रेणी एवं एलाइड श्रेणी पर डॉ॰बेनी प्रसाद के संग कार्य किये। इनके शोध कार्य एरिक काम्के की पुस्तक में प्रकाशित हुए। इसके साथ ही इनके पर्यवेक्षक अमीय चरण बैनर्जी के संग संयुक्त जर्नल में भी प्रकाशित हुए। जानेमाने भौतिकशास्त्री मेघनाद साहा के संपर्क में आने के बाद इनका रुझान खगोलशास्त्र की ओर हुआ। 1939 में इन्होंने गणित में डी.फ़िल की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के लिये लिखी थीसिस में इनका विषय रहा- सौर-मंडल का उद्गम।
डॉ॰भटनागर के इस अंतराल के कार्यों का उल्लेख मार्टिन डेविडसन की पुस्तक एटम्स टू स्टार्स, ऑल्टर रचित ऍस्ट्रोफिज़िक्स-खण्ड-दो, एवं ए.सी.बनर्जी द्वारा रीसेन्ट एड्वान्सेज़ इन गैलेक्टिक डायनैमिक्स में मिलते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय द्वारा 1937-39 के अंतराल में हुए सर्वोत्तम अनुसंधान कार्यों के लिये ई.जी.हिल स्मारक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसके बाद इन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफ़न कॉलिज में वहां के तत्कालीन प्रधानाचार्य, एस.एन.मुखर्जी का आमंत्रण स्वीकार किया व अगले 16 वर्ष व्यतीत किये। इस बीच ये व्हाइट द्वार्फ़ पर अपने स्वतंत्र व दौलत सिंह कोठारी के संग संयुक्त कार्य में संलग्न रहे।
1952 में इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय से फुलब्राइट स्कॉलर रूप में न्यौता मिला। वहां इन्होंने डोनाल्ड हॉवर्ड मेन्ज़ल एवं हरि केशव सिंह के संग नॉन-लीनियर गैसेज़ विषय पर शोध कार्य किया। वहीं 1954 में ई.पी.ग्रॉस एवं मैक्स क्रूक के संग इनके प्रसिद्ध बोल्ट्ज़मैन समीकरण पर संयुक्त कार्य का परिणाम बीजीके कोलीज़न प्रतिरूप निकला। ये आयनीकृत गैसों के लिये कई अनुप्रयोगों सहित पहली बार विकसित किया गया था। आजकल बीजीके कोलीज़न ऑपरेटर का प्रयोग लैटिस-बोल्ट्ज़मैन स्थिरांक ऑटोमैटा मैथड्स के हाल के विकास के लिये आवश्यक हो गया है। इसका गतिकी सिद्धांत की लगभग सभी पुस्तकों में उल्लेख होता है।
1950 में प्रभु लाल जी भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इंडियन नेशनल साइंस एकैडमी) के फेलो मनोनीत हुए और 1955 में भारतीय विज्ञान अकादमी (इंडियन ऐकेडमी ऑफ साइंसेज़) के फैलो मनोनीत हुए। 1956 में इन्हें भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंसेज), बंगलुरु से नवगठित गणित विभाग के प्रोफेसर पद का आमंत्रण मिला। वहां इन्होंने अपने शोध कार्य का विस्तार नॉन न्यूटोनियन फ्लुइड मैकेनिक्स के क्षेत्र में किया। 1962 में इन्हें भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ का अध्यक्ष चयनित किया गया। 1964, 1965 और 1968 में भारतीय गणित समाज (इण्डियन मैथेमैटिकल सोसाइटी) का तीन बार अध्यक्ष चुना गया। अपने शोध अनुसंधान के साथ साथ ही इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय गणित ऑलंपियाड प्रतियोगिता की आधारशिला भी रखी। भारत को इनके अभूतपूर्व योगदानों के लिये भारत सरकार द्वारा इन्हें 26 जनवरी, 1968 को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
1960 के दशक के आरंभ में इन्हें निचले मेरुदंड क्षेत्र में कुछ समस्या होने से अमरीका में आपरेशन करवाना पड़ा। उसके बाद 1969 में ये राजस्थान विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन हुए और 1971 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में वरिष्ठ प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हुए। 1973 में इनकी पत्नी की मृत्यु हुई। शिमला के वातावरण रास न आने के कारण इसी वर्ष अक्टूबर में ये संघ लोक सेवा आयोग से सदस्य रूप में दिल्ली में जुड़े। 1975 में इलाहाबाद में नवनिर्मित मेहता अनुसंधान संस्थान में निदेशक बने। 5 अक्टूबर, 1976 को हृदयाघात के कारण इन्होंने अपनी अंतिम श्वास ली।
प्रो॰भटनागर के 139 शोध-पत्र अन्तर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए थे। उनके 100 से अधिक प्रचलित लेख एवं दर्जन से अधिक पुस्तकें भी निकली हैं। इनके अन्तर्गत 29 छात्रों ने पी.एचडी का शोध पूर्ण किया है। इन्होंने गणित पर विभिन्न भारतीय व अन्तर्राष्ट्रीय समितियों में कार्य किये हैं। ये प्रथम गणित पर यू.जी.सी. रिव्यु कमेटीके सदस्य भी रहे। ये इंडियन नेशनल कमिटी ऑन मैथेमैटिक्स के अप्रैल, 1968 से सितंबर, 1971 तक अध्यक्ष रहे। इसके साथ ही ये इंडियन नेशनल कमिटी ऑन थेयोरिटिकल एण्ड एप्लाइड मैकेनिक्स के 1969 से 1972 तक अध्यक्ष रहे। इन्होंने गणितीय शिक्षा एवं अनुसंधान पर बंगलुरु में 4 से 16 जून 1973 में हुए द्विराष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय डेलिगेशन का नेतृत्व भी किया। ये इन्टर्नेशनल कमीशन ऑन मैथेमैटिकल एड्युकेशन, अन्तर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ के कमीशन्स 27 (वैरियेबल स्टार्स) एवं 43 (एमएचडी) के कार्यपालक समिति के सदस्य रहे हैं। इनके सम्मान में प्रत्येक वर्ष सेंट स्टीफन कॉलिज, दिल्ली पी.एल.भटनागर स्मारक पुरस्कार वितरित करता है। इंडियन मैथेमैटिकल सोसाइटी मैथ्स ऑलंपियाड में पी.एल.भटनागर सम्मान में विजेता को एक प्रशस्ति पत्र एवं कुछ राशि प्रदान करती है।
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