पेलैजिक क्षेत्र (pelagic zone) किसी महासागर, सागर या झील के जल का वह भाग होता है जो न तो नीचे के फ़र्श के समीप हो और न ही उस जलसमूह के तट के समीप। इसे कभी-कभी खुला पानी (open water) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर पेलैजिक क्षेत्र का कुल आयतन लगभग 13,300 लाख किमी3, औसत गहराई 3.68 किमी (2.29 मील) और अधिकतम गहराई 11 किमी (6.8 मील) है।
पेलैजिक क्षेत्र में रहने वाली मछलियाँ पेलैजिक मछलियाँ कहलाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की तरह पेलैजिक क्षेत्र को भी परतों में बाँटा जा सकता है। इस क्षेत्र के किसी भाग में एक काल्पनिक पानी का स्तम्भ के बारे में सोचा जाए तो जैसे-जैसे उसमें नीचे की ओर जाया जाए वैसे-वैसे दबाव बढ़ता, तापमान घटता और प्रकाश घटता जाता है। बढ़ती गहराई के साथ पेलैजिक जीवन भी घटता जाता है।
सतह से २०० मीटर नीचे तक
उपरिपेलैजिक (Epipelagic) वह परत है जो सतह के पास हो और जहाँ प्रकाश-संश्लेषण (फ़ोटोसिन्थसिस) सम्भव है। पेलैजिक क्षेत्र का सर्वाधिक जीवन इसी परत में मिलता है। प्लवक (प्लैंक्टन), जेलीफ़िश, ट्यूना, हाँगर (शार्क) और सूंस (डॉलफ़िन) इस परत में रहते हैं।
२०० मीटर से १००० मीटर नीचे तक
मध्यपेलैजिक (Mesopelagic) में कुछ प्रकाश तो पहुँचता है लेकिन वह प्रकाश-संश्लेषण के लिए अपर्याप्त है। ५०० मीटर के बाद पानी में मिला हुआ ऑक्सीजन भी कम हो जाता है। इस गहराई पर जीव कम ऑक्सीजन प्रयोग करने के लिए हिलावट कम करते हैं और जल से जितना अधिक हो सके ऑक्सीजन खींचने के लिए अधिक कार्यकुशल क्लोम (गिल) रखते हैं। तलवार-मछली (स्वोर्डफ़िश), विद्रूप (स्क्विड) और समुद्रफेनी की कई जातियाँ इस परत पर रहते हैं। यहाँ रहने वाले कई जीवों में जीवदीप्ति भी देखी जाती है। इस परत के कुछ निवासी रात्रि को आहार के लिए ऊपर उठकर उपरिपेलैजिक परत में जाते हैं।
१००० मीटर से ४००० मीटर नीचे तक
गहरपेलैजिक (Bathypelagic) में, कुछ जीवदीप्ति वाले जीवों को छोड़कर, अंधेरा रहता है। यहाँ कोई जीवित वनस्पति नहीं मिलता। यहाँ बसने वाले अधिकतर प्राणी ऊपरी परतों से गिरते हुए अपरद (अन्य जीवों के छोटे-छोटे मृत अंशों जो इस परत में हिम की तरह गिरता रहता है) को खाकर या इसी परत के अन्य निवासियों को खाकर जीते हैं। यहाँ महान विद्रूप (जाएंट स्क्विड) रहता है।
४००० मीटर से सागरतह से ज़रा-सा ऊपर तक
अतलपेलैजिक (Abyssopelagic) पर बहुत ठंड (२° से ३° सेंटीग्रेड), बहुत दबाव (७६ मेगापास्कल, यानि सतह से ७५० गुना) और घोर अंधेरा रहता है। यहाँ बहुत कम जीव रहते हैं। यहाँ विद्रूप की कुछ जातियाँ, शूलचर्मियों की कुछ जातियाँ और समुद्री सूवर जैसी जातियाँ रहती हैं। यहाँ प्रकाश के पूर्व आभाव के कारण बहुत-सी जातियों के शरीर पारदर्शी और नेत्रहीन होते हैं।
महासागरीय गर्तों के जल में
गर्तपेलैजिक (Hadopelagic) में बहुत कम जीव रहते हैं और इन क्षेत्रों के बारे में अभी कम-ही ज्ञात है। यहाँ जलतापीय छिद्रों के आसपास कई जीव रहते हैं। अतल मैदान पर ऊपर से बरसे हुए मृत जीवों की अपरद (बारीक़ अंश) की रूई-जैसी परत पड़ी रहती है।
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