दिक् (अंग्रेज़ी: Space स्पेस) जगह के उस विस्तार या फैलाव को कहते हैं जिसमें वस्तुओं का अस्तित्व होता है और घटनाएँ घटती हैं। मनुष्यों के नज़रिए से दिक् के तीन पहलू होते हैं, जिन्हें आयाम या डिमेन्शन भी कहते हैं - ऊपर-नीचे, आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ।
"दिक्" को अंग्रेज़ी में "स्पेस" (space), फ़ारसी में "फिज़ा" (فضا), सिन्धी में "पोलार" (پولار), यूनानी में "ख़ोरौस" (χώρος) और जर्मन में "राउम" (raum) कहते हैं। "आयाम" को अंग्रेज़ी में "डिमॅनशन" (dimension) और त्रिआयामी को "थ़्री-डिमॅनशनल" (three dimensional) कहते हैं। "आपेक्षिक" को अंग्रेज़ी में "रॅलेटिव" (relative) कहते हैं।
ऐसे तीन पहलूओं वाली (या "त्रिआयामी") दिक् में मौजूद किन्ही दो वस्तुओं की एक-दुसरे से आपेक्षिक स्थिति (या रॅलेटिव स्थिति) इन तीन पहलूओं पर बताई जा सकती है। हम कह सकते हैं के पहली वस्तु दूसरी वस्तु से १० मीटर ऊपर, ४ मीटर आगे और ६ मीटर दाएँ पर स्थित है। इसी तरह से द्विआयामी (दो पहलूओं वाले) दिक् में सिर्फ़ दो आयामों से दो वस्तुओं की एक-दुसरे से आपेक्षिक स्थिति का पता लगता है। भौगोलिक नक़्शों में इन आयामों (पहलूओं) को उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम का नाम दिया जाता है। किसी नक़्शे में दो वस्तुओं (या जगहों) को देखकर कहा जा सकता है के नक़्शे के द्विआयामी दिक् में पहला शहर दुसरे शहर से १०० किमी उत्तर और २०० किमी पूर्व में स्थित है। ठीक इसी तरह एकायामी दिक् भी एक लक़ीर या रेखा की सूरत में देखी जा सकती है। किसी भी रेखा पर स्थित दो बिन्दुओं की आपेक्षिक स्थिति बताने के लिए सिर्फ़ एक ही पहलू बताना काफ़ी है। उदाहरण से हम कह सकते हैं के किसी लक़ीर पर स्थित एक लाल बिंदु किसी दुसरे नीले बिंदु से १० सेंटीमीटर बाएँ पर मौजूद है।
जिस दिक् में कोई मरोड़, गोलाई या टेढ़ापन न हो उसे यूक्लिडी दिक् कहते हैं। यह नाम प्राचीन यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड के नाम से बना है। यूक्लिडी दिक् में अगर दो समानांतर रेखाएँ (अंग्रेज़ी में पैरलल रेखाएँ) आरम्भ कर के उन्हें आगे बढ़ाया जाए तो उनका आपस का फ़ासला हमेशा एक ही रहेगा और वह एक-दुसरे से कभी नहीं मिलेंगी। लेकिन अगर वे अयूक्लिडी दिक् में खींची जा रहीं हैं जो स्वयं ही मुड़ा हुआ है तो उनमें आपस का फ़ासला बदल सकता है और वे मिल भी सकतीं हैं। पृथ्वी की सतह एक दो-आयाम वाला अयूक्लिडी दिक् है। इसपर अगर इक्वेटर पर उत्तर की ओर दो समानांतर रेखाएँ बनाई जाएँ तो वे दोनों एक दुसरे के नज़दीक आती जाएँगी और उत्तरी ध्रुव पर जा कर मिल जाएँगी।
ठीक इसी तरह हम किसी दिक् में स्थित दो वस्तुओं की एक-दुसरे से आपेक्षिक गति के बारे में भी बता सकते हैं। अगर हम ज़मीन से दो आतिशबाज़ियाँ (एक लाल और एक हरी) आसमान की ओर उड़ाएँ तो अलग अलग वस्तुओं की तुलना कर के ऐसी चीज़ें कह सकते हैं -
ऐसा भी हो सकता है के हरी आतिशबाज़ी तो आसमान में सीधी चढ़ती रहे लेकिन लाल आतिशबाज़ी तिरछी होकर उत्तर की तरफ ३० कि॰प्र॰घ॰ और ऊपर की तरफ २० कि॰प्र॰घ॰ से चलना शुरू कर दे। अब हम और हरी आतिशबाज़ी वाला व्यक्ति यह कहेंगे -
अगर लाल आतिशबाज़ी पूर्वोत्तर को चल देती तो देखा जा सकता है के इस त्रिआयामी दिक् में तीन आयामों के साथ किसी भी दो वस्तुओं की आपस की गति और दिशा को पूरी तरह बताया जा सकता है।
हालांकि मनुष्य दिक् में केवल तीन आयामों की कल्पना कर सकते हैं और उनकी इन्द्रियाँ उन्हें बताती हैं के वे तीन आयामों वाले ब्रह्माण्ड में रहते हैं, गणित में जितने चाहे उतने आयामों पर अध्ययन किया जा सकता है और किया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के ब्रह्माण्ड में १० या उस से भी अधिक आयाम हैं लेकिन मनाव इन्द्रियाँ और मस्तिष्क इनमे से केवल तीन ही को भांप पाती हैं। भौतिकी के तार सिद्धांत (स्ट्रिंग थ़िओरी) में ऐसी ही कल्पना की गयी है।
दिक्-काल या स्पेस-टाइम (spacetime) की सोच को अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपना सापेक्षिकता का सिद्धांत विकसित करते हुए प्रकाशित किया। इसके अनुसार समय या काल दिक् के तीन आयामों की तरह एक और आयाम है और भौतिकी में इन्हें एक साथ चार आयामों के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा के वास्तव में ब्रह्माण्ड की सारी चीज़ें इस चार-आयामी दिक्-काल में रहती हैं। उन्होंने ने यह भी कहा के कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं के अलग-अलग वस्तुओं को इन चार आयामों का अनुभव अलग-अलग प्रतीत होता है। मिसाल के लिए -
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