दशईं

दशईं (नेपाली भाषा में बदादासाई बडाशेयां) नेपाल में मनाया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक त्योहार है। इस त्योहार का एक संस्करण भारत में हिंदुओं द्वारा नवरात्रि और दशहरा के रूप में मनाया जाता है, हालांकि दोनों ही त्योहार के संस्कार और अनुष्ठान काफी भिन्न होते हैं। भूटान के लोत्शम्पा लोग और म्यांमार के बर्मी गोरखाओं के बीच भी ये त्योहार मनाया जाता है।

दशईं
दशईं
दशईं त्योहार, जब माता दुर्गा बुराई पर जीत हासिल करती हैं।
आधिकारिक नाम बडादशैँ
अन्य नाम विजय दशमी(भारत में)
अनुयायी हिन्दू
प्रकार धार्मिक और सांस्कृतिक
उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत
उत्सव दुर्गा पूजा के अंतिम दिन
तिथि सितम्बर से नवम्बर के बीच

यह विक्रम संवत और नेपाल सम्वत् वार्षिक कैलेंडर में सबसे लंबा और सबसे शुभ त्योहार माना जाता है, जिसे नेपाली लोगों द्वारा दुनिया भर में अपने प्रवासी लोगों के साथ मनाया जाता है। नेपाल में इसे देश के सबसे बड़े त्योहार के रूप में भी जाना जाता है और इस समय 5 दिनों का सबसे लंबा राष्ट्रीय/सार्वजनिक अवकाश रहता है। यह नेपाल में सबसे प्रतीक्षित त्योहार है। इस समय नेपाल के लोग दुनिया के सभी हिस्सों के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों से एक साथ जश्न मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। त्योहार की अवधि के दौरान सभी सरकारी कार्यालय, शैक्षणिक संस्थान और अन्य कार्यालय बंद रहते हैं। त्योहार सितंबर या अक्टूबर में मनाया जाता है, जो अश्विन के महीने के शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल चंद्र रात) से शुरू होता है और पूर्णिमा पर समाप्त होता है। जिन पंद्रह दिनों में यह मनाया जाता है, उनमें सबसे महत्वपूर्ण दिन पहले, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें और पंद्रहवें दिन होते हैं।

काठमांडू उपत्यका के नेवारों में दशईं को लोकप्रिय रूप से मोहनी के रूप में मनाया जाता है और इसे नेपाल संवत् कैलेंडर में वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में चिह्नित किया जाता हैं। हिंदू और बौद्ध नेवारों में यह विविधताओं के साथ मनाया जाता है, जहाँ प्रत्येक नौ दिनों को 'नवरात्रि' और 10वें दिन को 'दशमी' कहा जाता है, इसमें सबसे महत्वपूर्ण दिन घटस्थापना अर्थात् महा अष्टमी (8 वां दिन) हैं। महा नवमी (9वें दिन) और महा दशमी (10वें दिन) देवी दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की नेवारों द्वारा विशेष रूप से काठमांडू उपत्यका के शक्तिपीठों में पूजा की जाती है। नेवारों के बीच दशईं पारिवारिक समारोहों के साथ-साथ सामुदायिक संबंधों के नवीनीकरण पर जोर देने के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसे विशेष पारिवारिक रात्रिभोज द्वारा उजागर किया जाता है, इस रात्रिभोज को स्थानीय भाषा में 'नख्त्या' कहते हैं। इसके अतिरिक्त कई जगहों पर देवताओं के विभिन्न सांप्रदायिक जुलूसों को निकाला जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में 'जात्रा' कहा जाता है।

सन्दर्भ

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