चरकस या अदिगेय कॉकस क्षेत्र की एक जाती और समुदाय है, जो बहुत प्राचीनकाल से कॉकस के इलाक़े के निवासी हैं। चरकस लोगों की अपनी बोली है - चरकसी भाषा। यह लोग सुन्नी इस्लाम के अनुयायी हैं। दुनिया के लगभग आधे चरकस लोग तुर्की में रहते हैं।
चरकस लोगों का नाम तुर्की-भाषियों ने डाला। तुर्की भाषा में चरकस का मतलब "युद्ध में चतुर" या "दुश्मन को काट डालने वाला" बताया जाता है। यही शब्द पुरानी हिन्दी में भी किसी चालू लेकिन जांबाज़ व्यक्ति के लिए भी प्रयोग होता था ("चरकस आदमी")। चरकस लोग अपनी भाषा में अपने-आप को "अट्टेग़ेय" या "अदिग़ेय" बुलाते हैं। चरकसी भाषा में "अट्टे" का मतलब "ऊंचाई" होता है (जैसे पहाड़ की ऊंचाई) और "ग़ेय" का मतलब "समुद्र" बताया जाता है। यानि "अदिग़ेय" का अर्थ है "समुद्र के पास के पहाड़ी इलाक़े के लोग" जिस से तात्पर्य ये है के ये लोग कृष्ण सागर के पास के कॉकस पर्वतों में बसते हैं।
अंग्रेज़ी में चरकसों को सरकेस्सीयन (Circassian) कहा जाता है।
२००८ में "जीनोम विवधताओं से विश्वव्यापी मनुष्य संबंधों का खुलासा" शीर्षक के साथ छापे गए वैज्ञानिक अध्ययन में विशेषज्ञों नें ६५०,००० से अधिक डी॰एन॰ए॰ खण्डों की जांच से पता लगाया है के हज़ारों वर्षों के दौर में चरकस लोगों के पूर्वज यूरोप, मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों से मिलते जुलते थे।
चरकस लोग कभी भी संगठित नहीं हुए हैं, जिस से आक्रमण करने वाली मंगोल, अवर, पेचेनेग, हूण और ख़ज़र सेनाओं को खदेड़ पाना उनके लिए मुश्किल रहा। पांचवी शताब्दी ईसवी में चरकस लोग अधिकतर ईसाई बन चुके थे, लेकिन पंद्रहवी शताब्दी ईसवी तक वे क्राइमिया के तातारों और उस्मानी साम्राज्य के प्रभाव से मुस्लिम बन गए।
अठारवी शताब्दी के अंत से लेकर मध्य उन्नीसवी शताब्दी तक रूस ने बहुत से कॉकस के इलाक़ों पर धावे जारी रखे। उनका ध्येय था के इन क्षेत्रों को रूसी साम्राज्य में शामिल कर लिया जाए। शुरू में रूसी फौजों का ज़ोर पूर्वी कॉकस के चेचन्या और दाग़िस्तान क्षेत्रों को काबू करने पर था, लेकिन १८५९ में उन्होंने यहाँ के सबसे बड़े विद्रोही नेता इमाम शमील को पराजित कर लिया और अपना ध्यान पश्चिम की ओर चरकस्सिया पर लगाना आरम्भ किया। जब इन चरकस-रूसी मुठभेड़ों की ख़बर इंग्लॅण्ड और पश्चिमी यूरोप में पहुंची तो वहां चरकसों के लिए बहुत सहानुभूति जतलाई गई और उन्हें मदद का आश्वासन दिया गया, लेकिन ज़मीन पर चरकसों को कभी मदद नहीं मिली। रूसी जनरल येवदोकिमोव को आदेश दिए गए के वह चरकसों को उनके गाँवों-बस्तियों से निकाल कर तुर्की की तरफ धकेल दे। कहा जाता है के रूसी बंदूकधारियों और उनके घुड़सवार सहायकों ने कई इलाकों से सारे मुस्लिम चरकसों को निकालकर गाँव के गाँव ख़ाली कर दिए और चरकसों को तुर्की की और जाने के लिए मजबूर किया। पश्चिमी इतिहासकारों ने रूस पर इन उपद्रवों में लाखों चरकसों को मारने का इल्ज़ाम लगाया है। धीरे-धीरे रूसी सेनाएं विजयी होती गयी और २ जून १८६४ को अधिकतर चरकसी मुखियाओं नें रूस से वफ़ादारी करने की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए और रूसी साम्राज्य को क़बूल कर लिया। जो चरकस तुर्की पहुँच गए उन्हें उस्मानी साम्राज्य ने वहीँ बसा लिया। आधुनिक युग में दुनिया के लगभग आधे चरकस तुर्की में रहते हैं।
रूसी आक्रमण से पहले चरकसों का समाज भिन्न वर्णों में बटा हुआ था और वर्ण-भेद सख्ती से लाघू किये जाते थे। सब से उपरी स्थान पर "राजाओं और राजकुमारों" का वर्ण था, उसके नीचे "राजपरिवार से सम्बन्ध रखने वालों" का वर्ण था, फिर "साधारण लोगों" का वर्ण था, उसके नीचे "किसानों" का वर्ण था और सब से नीचे "दासों" का वर्ण था। रूसी आक्रमण से कुछ ही दशक पहले, दो क़बीलों में निचले वर्गों ने विद्रोह करके एक नयी गणतंत्रीय व्यवस्था चलाने की कोशिश तो की, लेकिन आक्रमण के बाद की उथल-पुथल में यह सब बिसर गया।
ईसाई और मुसलमान बनने से पहले, चरकसों का अपना कई देवी-देवताओं वाला धर्म था। दूसरी से चौथी शताब्दी ईसवी में ईसाई मत पूरे कॉकस के क्षेत्र में फैलने लगा। बाईज़ण्टाइन साम्राज्य और अपने पड़ौसी जॉर्जिया से प्रभावित होकर चरकसों ने १०वी से १३वी शताब्दी में ईसाई मत अपनाना शुरू तो कर दिया, लेकिन पूरी तरह नहीं। उन्होंने ईसाई धर्म के साथ-साथ ही अपने पूराने रीति-रिवाज और विश्वासों को मिश्रित कर के क़ायम रखा। इस्लाम कॉकस के क्षेत्र में दाग़िस्तान के रस्ते से सातवी शताब्दी में ही दाख़िल होना शुरू हो गया था, लेकिन तातारों और उस्मानी साम्राज्य के ज़रिये यह चरकसों तक १६वी सदी में ही पहुंचा। सारे चरकसों नें इस्लाम तक तक पूरा नहीं अपनाया जब तक के रूसी आक्रमण के बाद उन्हें अपने घरों से बेदख़ल होकर तुर्की का रुख़ नहीं करना पड़ा। उसके बाद जल्दी ही इस्लाम चरकसों का राष्ट्रिय धर्म बन गया। १८वी सदी में उनपर चेचन्या के दो नेताओं - शेख़ मंसूर और इमाम शमील - का प्रभाव पड़ा जिन्होंने कॉकस में सूफ़ियाना इस्लाम के नक़्शबन्दी तरीक़े की धारा चलाई। वर्तमान में अधिकतर चरकस लोग सुन्नी इस्लाम की हनाफ़ी विचारधारा से सम्बंधित हैं।
आजकल चरकस लोग रूसी, अंग्रेज़ी, तुर्की, अरबी, फ़्रांसिसी, जर्मन और अपनी चरकस्सी भाषा बोलते हैं। कॉकस का कबरदेई समुदाय चरकस्सी की एक उपभाषा बोलता है, जिसका नाम कबरदीन है। अलग-अलग क़बीलों और स्थानों के चरकसी लोग अपने अलग-अलग लहजों में चरकस्सी बोलते हैं। रूस में लगभग सवा लाख (१,२५,०००) चरकस्सी बोलने वाले रहते हैं और रूस के अदिगेया गणतंत्र नाम के राज्य में चरकस्सी को सरकारी राजभाषा होने की मान्यता प्राप्त है। दुनिया का सब से बड़ा चरकस्सी बोलने वाला समुदाय तुर्की में रहता है जहाँ उसकी संख्या लगभग डेढ़ लाख (१,५०,०००) है।
चरकसी लोग अपनी विरासत में मिली संस्कृति और रीति-रिवाज को "अदिगेय ख़ब्ज़े" (चरकसी में Адыгэ Хабзэ) कहते हैं। यह "ख़ब्ज़े" कहीं लिखित नहीं है लेकिन इनसे मिले नियमों को चरकसी समाज में सज्जन लोगों के लिए ज़रूरी कहा गया है -
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