आगरा का किला एक यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है। यह किला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित है। इसके लगभग 2.5 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में ही विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताज महल मौजूद है
आगरा का किला | |
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विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम | |
देश | भारत |
प्रकार | सांस्कृतिक |
सन्दर्भ | 251 |
युनेस्को क्षेत्र | south asia |
शिलालेखित इतिहास | |
शिलालेख | 1983 (सातवाँ सत्र) |
।यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब यहां रहा करते थे
यह मूलतः एक ईंटों का किला था,इसका प्रथम विवरण 1080 ई० में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्ज़ा किया था। सिकंदर लोदी (1487-1517), दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा की यात्रा की तथा इसने इस किले की मरम्म्त १५०४ ई० में करवायी व इस गया। उसने अपने काल में यहां कई स्थान, मस्जिदें व कुएं बनवाये।
पानीपत के बाद मुगलों ने इस किले पर भी कब्ज़ा कर लिया साथ ही इसकी अगाध सम्पत्ति पर भी। इस सम्पत्ति में ही एक हीरा भी था जो कि बाद में कोहिनूर हीरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तब इस किले में इब्राहिम के स्थान पर बाबर आया। उसने यहां एक बावली बनवायी। सन 1530 में यहीं हुमायुं का राजतिलक भी हुआ। हुमायुं इसी वर्ष बिलग्राम में शेरशाह सूरी से हार गया व किले पर उसका कब्ज़ा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्ज़ा पांच वर्षों तक रहा, जिन्हें अन्ततः मुगलों ने 1556 में पानीपत का द्वितीय युद्ध में हरा दिया।
इस की केन्द्रीय स्थिति को देखते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाना निश्चित किया व सन 1558 में यहां आया। उसके इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि यह किला एक ईंटों का किला था, जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था व अकबर को इसे दोबारा बनवाना पड़ा, जो कि उसने लाल बलुआ पत्थर से निर्मण करवाया। इसकी नींव बड़े वास्तुकारों ने रखी। इसे अंदर से ईंटों से बनवाया गया, व बाहरी आवरण हेतु लाल बलुआ पत्तह्र लगवाया गया। इसके निर्माण में चौदह लाख चवालीस हजार कारीगर व मजदूरों ने आठ वर्षों तक मेहनत की, तब सन 1573 में यह बन कर तैयार हुआ।
अकबर के पौत्र शाहजहां ने इस स्थल को वर्तमान रूप में पहुंचाया। यह भी मिथक हैं, कि शाहजहां ने जब अपनी प्रिय पत्नी के लिये ताजमहल बनवाया, वह प्रयासरत था, कि इमारतें श्वेत संगमर्मर की बनें, जिनमें सोने व कीमती रत्न जड़े हुए हों। उसने किले के निर्माण के समय, कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया, जिससे कि किले में उसकी बनवायी इमारतें हों।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में, शाहजहां को उसके पुत्र औरंगज़ेब ने इस ही किले में बंदी बना दिया था, एक ऐसी सजा, जो कि किले के महलों की विलासिता को देखते हुए, उतनी कड़ी नहीं थी। यह भी कहा जाता है, कि शाहजहां की मृत्यु किले के मुसम्मन बुर्ज में, ताजमहल को देखेते हुए हुई थी। इस बुर्ज के संगमर्मर के झरोखों से ताजमहल का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है।
यह किला १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय युद्ध स्थली भी बना। जिसके बाद भारत से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य समाप्त हुआ, व एक लगभग शताब्दी तक ब्रिटेन का सीधे शासन चला। जिसके बाद सीधे स्वतंत्रता ही मिली।
आगरा के किले को वर्ष 2004 के लिये आग़ाखां वास्तु पुरस्कार दिया गया था, व भारतीय डाक विभाग ने 28 नवंबर,2004 को इस महान क्षण की स्मृति में, एक डाकटिकट भी निकाला था।
इस किले का एक अर्ध-वृत्ताकार नक्शा है, जिसकी सीधी ओर यमुना नदी के समानांतर है। इसकी चहारदीवारी सत्तर फीट ऊंची हैं। इसमें दोहरे परकोटे हैं, जिनके बीछ बीच में भारी बुर्ज बराबर अंतराल पर हैं, जिनके साथ साथ ही तोपों के झरोखे, व रक्षा चौकियां भी बनी हैं। इसके चार कोनों पर चार द्वार हैं, जिनमें से एक खिजड़ी द्वार, नदी की ओर खुलता है।
इसके दो द्वारों को दिल्ली गेट एवं ग्वालियर गेट या दखिनाई दरवाजे कहते हैं ( दखिनाई गेट को अमरसिंह द्वार भी कहा जाता है दखिनाई गेट दक्षिण दिशा में है)।
शहर की ओर का दिल्ली द्वार, चारों में से भव्यतम है। इसके अंदर एक और द्वार है, जिसे हाथी पोल कहते हैं, जिसके दोनों ओर, दो वास्तवाकार पाषाण हाथी की मूर्तियां हैं, जिनके स्वार रक्षक भी खड़े हैं। एक द्वार से खुलने वाला पुर, जो खाई पर बना है, व एक चोर दरवाजा, इसे अजेय बनाते हैं।
स्मारक स्वरूप दिल्ली गेट, सम्राट का औपचारिक द्वार था, जिसे भारतीय सेना द्वारा (पैराशूट ब्रिगेड) हेतु किले के उत्तरी भाग के लिये छावनी रूप में प्रयोग किया जा रहा है। अतः दिल्ली द्वार जन साधारण हेतु खुला नहीं है। पर्यटक लाहौर द्वार से प्रवेश ले सकते हैं, जिसे कि लाहौर की ओर (अब पाकिस्तान में) मुख होने के कारण ऐसा नाम दिया गया है।
स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से, यह स्थल अति महत्वपूर्ण है। अबुल फज़ल लिखता है, कि यहां लगभग पाँच सौ सुंदर इमारतें, बंगाली व गुजराती शैली में बनी थीं। कइयों को श्वेत संगमर्मर प्रासाद बनवाने हेतु ध्वस्त किया गया। अधिकांश को ब्रिटिश ने 1803 से 1862 के बीच, बैरेक बनवाने हेतु तुड़वा दिया। वर्तमान में दक्षिण-पूर्वी ओर, मुश्किल से तीस इमारतें शेष हैं। इनमें से दिल्ली गेट, अकबर गेट व एक महल-बंगाली महल – अकबर की प्रतिनिधि इमारतें हैं।
अकबर गेट अकबर दरवाज़ा को जहांगीर ने नाम बदल कर अमर सिंह द्वार कर दिया था। यह द्वार, दिल्ली-द्वार से मेल खाता हुआ है। दोनों ही लाल बलुआ पत्थर के बने हैं।
बंगाली महल भी लाल बलुआ पत्थर का बना है, व अब दो भागों -- अकबरी महल व जहांगीरी महल में बंटा हुआ है।
यहां कई हिन्दू व इस्लामी स्थापत्यकला के मिश्रण देखने को मिलते हैं। बल्कि कई इस्लामी अलंकरणों में तो इस्लाम में हराम (वर्जित) नमूने भी मिलते हैं, जैसे—अज़दहे, हाथी व पक्षी, जहां आमतौर पर इस्लामी अलंकरणों में ज्यामितीय नमूने, लिखाइयां, आयतें आदि ही फलकों की सजावट में दिखाई देतीं हैं।
प्रसिद्ध मिस्री पॉप गायक हीशम अब्बास के अलबम हबीबी द में आगरा का किला दिखाया गया है।
मिर्ज़ा राजे जय सिंह के संग “पुरंदर संधि” के अनुसार, छत्रपती शिवाजी महाराज आगरा 1666 में आये, व औरंगज़ेब से दीवान-ए-खास में मिले। उन्हें अपमान करने हेतु, उनके स्तर से कहीं नीचा आसन दिया गया। वे अपमानित होने से पूर्व ही, दरबार छोड़कर चले गये। बाद में उन्हें जयसिंह के भवन में ही 12 मई,1666 को नज़रबंद किया गया। उनकी एक ओजपूर्ण अशवारोही मूर्ति, किले के बाहर लगायी गयी है।
यह किला मुगल स्थापत्य कला का एक आदर्श उदाहरण है। यहां स्पष्ट है, कि कैसे उत्तर भारतीय दुर्ग निर्माण, दक्षिण भारतीय दुर्ग निर्माण से भिन्न होता था। दक्षिण भारत के अधिकांश दुर्ग, सागर किनारे निर्मित हैं।
एज ऑफ ऐम्पायर – 3 के विस्तार पैक एशियन डाय्नैस्टीज़, में आगरा के किले को भारतीय सभ्यता के पांच अजूबों में से एक दिखाया गया है, जिसे जीतने के बाद ही, कोई अगले स्तर पर जा सकता है। एक बार बनने के बाद, यह खिलाड़ी को सिक्कों के जहाज भेजता रहता है। इस वर्ज़न में कई अन्य खूबियां भी हैं।
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