अपभ्रंश

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  • भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था है जो प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। अपभ्रंश के कवियों ने अपनी भाषा...
  • इनमें की प्रथम दो रचनाएँ काव्यात्मक तथा तीसरी प्राकृत-अपभ्रंश छंदशास्त्रविषयक है। ज्ञात अपभ्रंश प्रबंध काव्यों में स्वयंभू की प्रथम दो रचनाएँ ही सर्वप्राचीन...
  • राष्ट्रकूट राजवंश के राज्यकाल में विशाल मात्रा में कन्नड, संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य रचा गया। इस राजवंश का प्रसिद्ध शासक अमोघवर्ष प्रथम ने सबसे पुरानी...
  • अपभ्रंश के ही परवर्ती रूप को 'अवहट्ठ ' नाम दिया गया है। नवमीं से दसवीं शती लेकर के अपभ्रंश रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' कहा जाता है। साधारणतः बांग्ला...
  • भाषा से प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का विकास हुआ। इनमें देशज शब्दों की बहुलता थी। हेमचंद्र सूरि ने पामरजनों में प्रचलित प्राकृत अपभ्रंश का व्याकरण दशवी शती...
  • रूप स्थिर हो चुका था। अपभ्रंश और शुरुआती हिन्दी परस्पर घुली-मिली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे हिन्दी में परिष्कार होता रहा और अपभ्रंश भाषा के पटल से लुप्त...
  • भाषा में उपलब्ध कोशों की संख्या कम है। जैन भांडागारों से कुछ प्राकृत और अपभ्रंश के कोशों की विद्यमानता का पता चला है। धनपाल (समय ९७२ ई० से ९९७ ई० के बीच)...
  • पुष्पदन्त (कवि) (श्रेणी अपभ्रंश)
    है। आश्चर्य नहीं जो उस उल्लेख का अभिप्राय अपभ्रंश के इन्हीं महाकवि पुष्पदंत से हो, क्योंकि इन्हीं अपभ्रंश की रचनाओं से हिंदी भाषा के बीज अंकुरित होते...
  • में जिस अपभ्रंश का संकेत किया है, उसका परवर्ती रूप 'गुर्जर अपभ्रंश' के नाम से प्रसिद्ध है और इसमें अनेक साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं। इस अपभ्रंश का क्षेत्र...
  • ग्रंथों का नाम है, जिनमें से एक की रचना संस्कृत में हुई है तथा दूसरे की अपभ्रंश में। संस्कृत में रचित 'महापुराण' के पूर्वार्ध (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य...
  • रइघू (श्रेणी अपभ्रंश कवि)
    रइघू एक अपभ्रंश कवि थे। वे अपभ्रंश के सर्वाधिक यशस्वी एवं अंतिम कवि थे। उन्होने ही गोपाचल पर निर्मित अधिकांश जैन मूर्तियों की प्राण-प्रतिषठा की थी।...
  • जंतर मंतर, "यंत्र मंत्र" का अपभ्रंश रूप है। सवाई जयसिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा, दिल्ली और वाराणसी में भी किया था। पहली वेधशाला...
  • चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी...
  • है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं...
  • Thumbnail for सांग
    का स्वांग के साथ विलय कर दिया जाए। (वार्ता) सांग हिंदी शब्द 'स्वाँग' का अपभ्रंश है। उत्तरी भारत में हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान राज्यों में प्रचलित...
  • अद्दहमाण (श्रेणी अपभ्रंश)
    में अब्दुल रहमान उत्पन्न हुआ जिसने प्राकृत एवं अपभ्रंश का अध्ययन किया और अपने ग्रंथ की रचना ग्राम्य अपभ्रंश में की। अब्दुल रहमान की केवल एक ही कृति है -...
  • Thumbnail for पउमचरिउ
    पउमचरिउ (श्रेणी अपभ्रंश साहित्य)
    पउमचरिउ रामकथा पर आधारित अपभ्रंश का एक महाकाव्य है। इसके रचयिता जैन कवि स्वयंभू हैं। इसमें बारह हजार पद हैं। जैन धर्म में राजा राम के लिए 'पद्म' शब्द...
  • पाली भाषा भारत के जनमानस की भाषा थी। कुछ इतिहासकार पाली को संस्कृत का अपभ्रंश मानते है क्योंकि पाली भाषा में ऋ, क्ष, त्र, ज्ञ, ऐ, औ अक्षर नही है। संस्कृत...
  • लेना आवश्यक है। कालक्रम से अपभ्रंश साहित्य की भाषा बन चुका था, इसे 'परिनिष्ठित अपभ्रंश' कह सकते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में राजस्थान से...
  • हेमचंद्र ने दी है। ग्राम्य अपभ्रंश शिष्ट या "नागर' अपभ्रंश की तुलना में ही ग्राम्य थी। प्राकृत जब परिनिष्ठित शैली में ढल गई, तब अपभ्रंश के देशगत भेदों की ओर...
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