संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग')
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- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है ; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। ऐसे मैं व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ?
संस्कृत में तीन वचन होते हैं- एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन।
संख्या में एक होने पर एकवचन , दो होने पर द्विवचन तथा दो से अधिक होने पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- एक वचन -- एकः बालक: क्रीडति।
द्विवचन -- द्वौ बालकौ क्रीडतः।
बहुवचन -- त्रयः बालकाः क्रीडन्ति।
पुरुष | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
---|---|---|---|
प्रथमः पुरुष /first person
| अहम्(मैं) | आवाम्(हम दोनों) | वयम्(हम सब) |
मध्यमः पुरुषः (Second person) | त्वम्(तू) | युवाम्(तुम दोनों) | यूयम्(तुम सब) |
अन्य पुरूष | स:/सा/तत् (वह) | तौ/ते/ते (वे दोनों) | ते/ता:/तानि (वे सब) |
कर्ता - ने (रामः गच्छति।)
कर्म - को (to) (बालकः विद्यालयं गच्छति।)
करण - से (by), द्वारा (सः हस्तेन खादति।)
सम्प्रदान -को , के लिये (for) (निर्धनाय धनं देयं।)
अपादान - से (अलग होना) (from) अलगाव (वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।)
सम्बन्ध - का, की, के, ना, नी, ने, रा, री, रे (of) ( राम दशरथस्य पुत्रः आसीत्। )
अधिकरण - में, पे, पर (in/on) (यस्य गृहे माता नास्ति,)
सम्बोधनम् - हे!,भो!,अरे!, (हे राजन् !अहं निर्दोषः।)
संस्कृत में तीन वाच्य होते हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
क्र | कर्तृवाच्य | भाववाच्य |
---|---|---|
1. | भवान् तिष्ठतु | भवता स्थीयताम् |
2. | भवती नृत्यतु | भवत्या नृत्यताम् |
3. | त्वं वर्धस्व | त्वया वर्ध्यताम् |
4. | भवन्तः न सिद्यन्ताम् | भवद्भिः न खिद्यताम् |
5. | भवत्यः उत्तिष्ठन्तु | भवतीभिः उत्थीयताम् |
6. | यूयं संचरत | युष्माभिः संचर्यताम् |
7. | भवन्तौ रुदिताम् | भवद्भयां रुद्यताम् |
8. | भवत्यौ हसताम् | भवतीभ्यां हस्यताम् |
9. | विमानम् उड्डयताम् | विमानेन उड्डीयताम् |
10 | सर्वे उपविशन्तु | सर्वेः उपविश्यताम् |
संस्कृत में लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् – ये दस लकार होते हैं। वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में 'ल' है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)। इन दस लकारों में से आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये टित् लकार कहे जाते हैं और अन्त के चार लकार ङित् कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है। व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं तब इन टित् और ङित् शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है। जैसे – जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से लट् लकार जोड़ देंगे, परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो लिट् लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार (= वर्तमान काल) जैसे :- श्यामः खेलति । ( श्याम खेलता है।)
(२) लिट् लकार (= अनद्यतन परोक्ष भूतकाल) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । जैसे :-- रामः रावणं ममार । ( राम ने रावण को मारा ।)
(३) लुट् लकार (= अनद्यतन भविष्यत् काल) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । जैसे :-- सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । ( वह परसों विद्यालय जायेगा ।)
(४) लृट् लकार (= सामान्य भविष्य काल) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो । जैसे :--- रामः इदं कार्यं करिष्यति । (राम यह कार्य करेगा।)
(५) लेट् लकार (= यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है।)
(६) लोट् लकार (= ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।) जैसे :- भवान् गच्छतु । (आप जाइए ) ; सः क्रीडतु । (वह खेले) ; त्वं खाद । (तुम खाओ ) ; किमहं वदानि । (क्या मैं बोलूँ ?)
(७) लङ् लकार (= अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । जैसे :- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । (आपने उस दिन भोजन पकाया था।)
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(९) लुङ् लकार (= सामान्य भूत काल) जो कभी भी बीत चुका हो । जैसे :- अहं भोजनम् अभक्षत् । (मैंने खाना खाया।)
(१०) लृङ् लकार (= ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो । जैसे :- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । (यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।)
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
ल् में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें और क्रमानुसार 'ट' जोड़ते जाऐं । फिर बाद में 'ङ्' जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ । जैसे लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे|
१) द्वन्द्व
२) तत्पुरुष
३) कर्मधारय
४) बहुव्रीहि
५) अव्ययीभाव
६) द्विगु समास क्रिया पदों में नहीं होता। समास के पहले पद को 'पूर्व पद' कहते हैं, बाकी सभी को 'उत्तर पद' कहते हैं।
समास मुख्य क्रियापद में नहीं होता गौण क्रियापद में होता है। समास के पहले पद को 'पूर्व पद' कहते हैं, बाकी सभी को 'उत्तर पद' कहते हैं।
समास के तोड़ने को विग्रह कहते हैं, जैसे -- "रामश्यामौ" यह समास है और रामः च श्यामः च (राम और श्याम) इसका विग्रह है।
पाठको को याद करने के लिये समास की ट्रिक - 'अब तक दादा' अ= अव्ययीभाव, ब= बहुव्रीहि, त= तत्पुरुष क= कर्मधारयः, द= द्वंद्व, और द= द्विगु।
संस्कृत शब्द | तुल्य अंग्रेजी | पाणिनि द्वारा प्रयुक्त शब्द |
---|---|---|
विशेषण | adjective | — |
क्रियाविशेषण | adverb | |
agreement | ||
महाप्राण | aspirated | — |
आत्मनेपद | self-oriented verbs | — |
विभक्तिः | case | — |
प्रथमा | case 1 (subject) | — |
द्वितीया | case 2 (object) | — |
तृतीया | case 3 ("with"/"agent") | — |
चतुर्थी | case 4 ("for") | — |
पञ्चमी | case 5 ("from") | — |
षष्ठी | case 6 ("of") | — |
सप्तमी | case 7 ("in") | — |
संबोधनम् | case 8 (address) | — |
causal verb | णिजन्त | |
आज्ञा | command mood | लोट् |
समास | compound (word) | — |
संध्यक्षर | compound vowel | एच् |
संकेत | conditional mood | लृङ् |
व्यञ्जन | consonant | हल् |
desiderative | सन्नन्त | |
अनद्यतन | distant future tense | लुट् |
परोक्षभूत | distant past tense | लिट् |
अभ्यास | doubling | — |
द्विवचन | dual (number) | — |
द्वन्द्व | dvandva | — |
स्त्रीलिङ्ग | feminine gender | — |
उत्तमः | first person | — |
लिङ्ग | gender | — |
gerund | क्त्वान्त | |
grammatical case | ||
व्याकरण | grammar | |
तालु | hard palate | — |
गुरु | heavy (syllable) | — |
intensive | यणन्त | |
लघु | light (syllable) | — |
ओष्ठ | lip | — |
दीर्घ | long vowel | — |
पुंलिङ्ग | masculine gender | — |
गुण | medium vowel | — |
अनुनासिक | nasal sound | — |
नपुंसकलिङ्ग | neuter gender | |
noun endings | सुप् | |
नामधातु | noun from verb | |
nouns | सुबन्त | |
वचन | number | |
कर्मन् | object | — |
विधि | option mood | लिङ् |
भविष्यन् | ordinary future tense | |
अनद्यतनभूत | ordinary past tense | लङ् |
परस्मैपद | others-oriented verbs | — |
पुरुषः | person | पुरुषः |
बहुवचन | plural (number) | |
स्थान | point of pronunciation | |
प्रादि | prefix | |
वर्तमान | present tense | लट् |
कृत् | primary (suffix) | |
सर्वनामन् | pronoun | — |
भूत | recent past tense | लुङ् |
ऊष्मन् | "s"-sound | — |
— | sandhi | — |
मध्यमः | second person | मध्यमः |
तद्धित | secondary (suffix) | — |
अन्तःस्थ | semivowel | |
ह्रस्व | short vowel | — |
समानाक्षर | simple vowel | — |
एकवचनम् | singular (number) | — |
कण्ठ | soft palate | |
प्रातिपदिक | stem (of a noun) | — |
अङ्ग | stem (of any word) | — |
स्पर्श | stop | |
वृद्धि | strong vowel | |
कर्तृ | subject | |
प्रत्यय | suffix | — |
अक्षर | syllable | |
प्रथमः | third person | — |
दन्त | tooth | |
उभयपद | ubhayapada | |
अल्पप्राण | unaspirated | |
अव्यय | uninflected word | अव्यय |
अघोष | unvoiced | |
गण | verb class | — |
verb ending | तिङ् | |
उपसर्ग | prefix | उपसर्ग |
धातु | verb root, Base Form | — |
Applied verb Forms | तिङन्त | |
घोषवत् | voiced | — |
स्वरः | vowel | अच् |
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