राष्ट्रवादआधुनिक राज्य के बीच एक संरचनात्मक कड़ी है। यूरोप में सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के आसपास आधुनिक राज्य का उदय हुआ, जिसने राष्ट्रवाद के उदय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राज्य का यह स्वरूप अपने पहले के स्वरूपों से भिन्न था। इसकी शक्ति केंद्रीकृत, संप्रभु और अविभाजित थी। इसके विपरीत, मध्ययुगीन यूरोप में, राजशाही एक एकल संप्रभु शासक या सरकार के साथ रहने के बजाय विभाजित थी। आधुनिक राज्य ने सत्ता के इस विभाजन को समाप्त कर दिया, जिसके आधार पर राष्ट्रवाद का विचार पनप सका। राष्ट्रवाद के सिद्धांत को समझने के लिए उन घटनाओं को समझना आवश्यक है जिनके कारण आधुनिक राज्य का जन्म हुआ।
मध्य युग में सम्राट और राजवंश मौजूद थे, लेकिन उन्हें चर्च के साथ क्षैतिज रूप से और सामंतों और शताब्दी के साथ लंबवत रूप से सत्ता साझा करनी थी। चर्च इतना शक्तिशाली था कि यह शासकों की तरह शक्तिशाली और कभी-कभी उनसे भी अधिक शक्तिशाली हुआ करता था। चौथी शताब्दी में रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन द्वारा ईसाई धर्म अपनाने के बाद से, चर्च की में लगातार वृद्धि हुई है। राजकीय धर्म होने के कारण ईसाई धर्म न केवल यूरोप के कोने-कोने में फैल गया, बल्कि पूर्व में तुर्की और रूस में भी फैल गया। छठी शताब्दी तक, यूरोप में जगह-जगह कैथोलिक चर्च और शासकों के बीच आपसी अधिकार की संरचनाएँ विकसित हो चुकी थीं। राजाओं ने दावा किया कि वे दैवीय आदेश से शासन करते हैं, और दूसरी ओर, चर्च ने गैर-धार्मिक अर्थों में कुछ हद तक राजनीतिक बागडोर संभाली है। चर्च को विषयों पर कर लगाने का अधिकार था। चर्च और राजा के बीच इस असहज संबंध ने एक सर्व-शक्तिशाली प्रकार के राजतंत्र के उदय में बाधा उत्पन्न की। दूसरी ओर, सम्राट को भी पदानुक्रम के आधार पर संचालित एक प्रणाली के आधार पर शक्तिशाली कुलीनों और सामंतों के साथ सत्ता साझा करनी पड़ती थी। राजनीतिक और आर्थिक स्तरों पर काम करने वाली इस जटिल व्यवस्था ने जनता और मालिक वर्ग को मालिकों और जमींदारों में विभाजित कर दिया। स्थानीय स्तर पर स्वामी अपने जागीरदार पर और जागीरदार अपने अधीनस्थ जागीरदार पर शासन करते थे।
दरअसल, यूरोप की तत्कालीन परिस्थितियाँ कई कारणों से एक निश्चित भू-क्षेत्र और आबादी के दायरे में केंद्रीकृत राजनीतिक समुदाय बनने से रोकती थीं। परिवहन और संचार के नेटवर्कों का अभाव भी एक वजह थी जिसके कारण सत्ता में हिस्सेदारी करना एक मजबूरी थी। लगातार युद्धों, जीत-हार और अलग राज्य बना लेने की प्रवृत्तियों के कारण हुकूमतों की सीमाएँ लगातार बनती-बिगड़ती रहती थीं। शाही ख़ानदानों के बीच होने वाली शादियों में पूरे-पूरे के भू-क्षेत्र दहेज़ और तोहफ़ों के तौर पर दे दिये जाते थे जिससे एक इलाके की जनता रातों-रात दूसरे राज्य की प्रजा बन जाती थी। लेकिन इस राजनीतिक परिवर्तन से जनता के रोज़मर्रा के जीवन पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता था। लोगों की एक इलाके से दूसरे में आवाजाही पर कोई पाबंदी नहीं थी। कोई कहीं भी जा कर काम शुरू कर सकता था, कहीं भी विवाह कर सकता था। राजनीति, प्रशासन, कानून और संस्कृति इसी तरह से विकेंद्रीकृत ढंग से चलते रहते थे। पूरा यूरोप बोलचाल, रीति-रिवाज और आचार-व्यवहार में बेहद विविधतापूर्ण था। संस्कृति में कोई समरूपता नहीं थी। इस विकेंद्रीकृत स्थिति में परिवर्तन की शुरुआत इंग्लैण्ड में ट्यूडर और फ़्रांस में बोरबन राजवंशों के सुदृढ़ीकरण से हुई। इन दोनों वंशों ने तिजारती पूँजीपतियों की मदद से अपनी सत्ता मज़बूत की। व्यापार से कमायी गयी धन-दौलत के बदौलत ये राजवंश आमदनी के लिए अपने जागीरदारों पर उतने निर्भर नहीं रह गये। धीरे-धीरे सामंती गवर्नरों से उनकी सत्ता छिनने लगी। सामंतों की जगह तिजारती पूँजीपति आ गये। दूसरी तरफ़ पंद्रहवीं सदी के दौरान चर्च में हुए धार्मिक सुधारों ने कैथॅलिक चर्च की ताकत को काफ़ी हद तक घटा दिया। इन दोनों परिवर्तनों ने सम्राटों को पूरे क्षेत्र पर सम्पूर्ण और प्रत्यक्ष शासन करने का मौका प्रदान किया। भू-क्षेत्रीय सीमाओं का अनुपालन होने लगा। धर्म, शिक्षा और भाषा के मामले में जनसाधारण को मानकीकरण के दौर से गुज़रना पड़ा। नागरिकों के आवास और यात्रा पर भी नियम-कानून आरोपित किये जाने लगे। स्थाई शाही सेनाओं की भरती और रख-रखाव पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। परिवहन, संचार और शासन की प्रौद्योगिकियों का विकास हुआ जिनके कारण नरेशों और सम्राटों को अपने राजनीतिक लक्ष्य प्रभावी ढंग से वेधने में आसानी होने लगी।
इस घटनाक्रम के दूरगामी प्रभाव पड़े। एक सर्वसत्तावादी राज्य का उदय हुआ जो सम्प्रभुता, केंद्रीकृत शासन और स्थिर भू-क्षेत्रीय सीमाओं के लक्षणों से सम्पन्न था। आज के आधुनिक राज्य में भी यही ख़ूबियाँ हैं। फ़र्क यह है कि तत्कालीन राज्य पर ऐसे राजा का शासन था जो घमण्ड से कह सकता था कि मैं ही राज्य हूँ। लेकिन, इसी सर्वसत्तावादी चरित्र के भीतर सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय समरूपता वाले ‘राष्ट्र’ की स्थापना की परिस्थितियाँ मौजूद थीं। सामंती वर्ग को प्रतिस्थापित करने वाला वणिक बूर्ज़्वा (जो बाद में औद्योगिक बूर्ज़्वा में बदल गया) राजाओं का अहम राजनीतिक सहयोगी बन चुका था। एक आत्मगत अनुभूति के तौर पर राष्ट्रवाद का दर्शन इसी वर्ग के अभिजनों के बीच पनपना शुरू हुआ। जल्दी ही ये अभिजन अधिक राजनीतिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व के लिए बेचैन होने लगे। पूरे पश्चिमी यूरोप में विधानसभाओं और संसदों में इनका बोलबाला स्थापित होने लगा। इसका नतीजा यूरोपीय आधुनिकता की शुरुआत में राजशाही और संसद के बीच टकराव की घटनाओं में निकला। 1688 में इंग्लैण्ड में हुई ग्लोरियस रेवोल्यूशन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। इस द्वंद्व में पूँजीपति वर्ग के लिए लैटिन भाषा का शब्द ‘नेशियो’ महत्त्वपूर्ण बन गया। इसका मतलब था जन्म या उद्गम या मूल। इसी से ‘नेशन’ बना।
अट्ठारहवीं सदी में जब सामंतवाद चारों तरफ़ पतनोन्मुख था और यूरोप औद्योगिक क्रांति के दौर से गुज़र रहा था, पूँजीपति वर्ग के विभिन्न हिस्से राष्ट्रवाद की विचारधारा के तले एकताबद्ध हुए। उन्होंने ख़ुद को एक समरूप और घनिष्ठ एकता में बँधे राजनीतिक समुदाय के प्रतिनिधियों के तौर पर देखा। नेशन की इस भावना पर प्राचीनता आरोपित करने का कार्यभार जर्मन रोमानी राष्ट्रवाद के हाथों पूरा हुआ। ख़ुद को नेशन कह कर यह वर्ग आधुनिक राज्य से राजनीतिक सौदेबाज़ी कर सकता था। दूसरी तरफ़ इस वर्ग से बाहर का साधारण जनता ने राष्ट्रवाद के विचार का इस्तेमाल राजसत्ता के आततायी चरित्र के ख़िलाफ़ ख़ुद को एकजुट करने में किया। जनता को ऐसा इसलिए करना पड़ा कि पूँजीपति वर्ग के समर्थन से वंचित होती जा रही राजशाहियाँ अधिकाधिक निरंकुश और अत्याचारी होने लगी थीं। जनता बार-बार मजबूरन सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर थी जिसका नतीजा फ़्रांसीसी क्रांति जैसी युगप्रवर्तक घटनाओं में निकला। कहना न होगा कि हुक्मरानों के ख़िलाफ़ जन-विद्रोहों का इतिहास बहुत पुराना था, पर अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के यूरोप में यह गोलबंदी राष्ट्रवाद के झण्डे तले हो रही थी। इनका नेतृत्व अभिजनों के हाथ में रहता था और लोकप्रिय तत्त्व घटनाक्रम में ज्वार- भाटे का काम करते थे। किसी भी स्थानीय विद्रोह का लाभ उठा कर पूँजीपति वर्ग राजशाही के ख़िलाफ़ सम्पूर्ण राष्ट्रवादी आंदोलन की शुरुआत कर देता था।
यह इतिहास दिखाता है कि कैसे पूर्व-आधुनिक यूरोपीय राज्य का विकेन्द्रीकृत अधिकार एक सत्तावादी राज्य में बदल गया। फिर वह राज्य धीरे-धीरे राष्ट्रवादी आंदोलनों के दबाव में एक सीमित प्रकार के संवैधानिक राज्य के रूप में विकसित हुआ। उन्नीसवीं सदी के अंत तक, पूंजीवादी वर्ग के साथ-साथ जनता के लिए राजनीतिक अधिकारों के लिए लामबंदी में राष्ट्रवाद एक प्रमुख कारक बन गया था। यह मान लेना गलत होगा कि राष्ट्रवाद का विचार इसी तरह पूरे यूरोप में फैल गया। फ्रांस में इसे हिंसक सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से व्यक्त किया गया था, जबकि इंग्लैंड में यह अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण संसदीय तरीके से व्यक्त किया गया था। जो साम्राज्य बहुजातीय और बहुभाषी थे, पहले बहुराष्ट्रीय राज्य बने और बाद में कई भागों में बंट गए। लेकिन, दूसरी ओर, राष्ट्रवाद ने कुछ बहुभाषी और बहु-जातीय राज्यों को एकजुट रखने का तर्क भी दिया। जैसे ही राष्ट्रवादी विचार यूरोपीय धरती से परे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में फैल गया, इसने यूरोप से विभिन्न किस्मों को विकसित करना शुरू कर दिया। इन क्षेत्रों में उपनिवेशवाद-विरोधी मुक्ति संघर्षों को राष्ट्रवादी भावनाओं की जीत के लिए प्रेरित किया गया था। परिणाम उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद का एक अनूठा संयोजन था।
1. सुनलिनी कुमार (2008), ‘नैशनलिज़म’, राजीव भार्गव और अशोक आचार्य (सम्पा.), पॉलिटिकल थियरी : ऐन इंट्रोडक्शन, पियर्सन लोंगमेन, नयी दिल्ली.
2. बेनेडिक्ट ऐंडरसन (1983), इमेजिंड कम्युनिटीज़ : रिफ्लेक्शंस ऑन द ओरिंजिंस ऐंड ग्रोथ ऑफ़ नैशनल कोंशसनेस, वरसो, लंदन,
3. एल. ग्रीनफ़ील्ड (1992), नैशनलिज़म : फ़ाइव रोड्स टु मॉडर्निटी, हार्वर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, केम्ब्रिज, एमए.
4. जे. मेआल (1989), नैशनलि ज़म ऐंड इंटरनैशनल सोसाइटी, केम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, केम्ब्रिज.
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article राष्ट्रवाद का इतिहास, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.