भारत में फुटबॉल ब्रिटिश उपनिवेश काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा लाया गया था। आरंभ में फुटबॉल मैच सैनिक टीमों के बीच खेले जाते थे। सीघ्र ही फुटबॉल क्लब भी बनने लगे। इनमें से कई क्लब आधुनिक फुटबॉल संगठन फीफा आदि के बनने से भी पहले बन चुके थे। भारत में फुटबॉल मुख्यतः पश्चिम बंगाल, गोआ, केरल, मणिपुर, मिजोरम और सिक्किम में पनपा और यहीं से उसे नई दिशा भी मिली।फुटबॉल में महान शक्ति होती है, और वह अच्छे (या बुरे) के लिए भावनाएँ उत्पन्न करता है। जबकि कुछ फुटबॉल से प्यार करते हैं और सुपर प्रशंसक हैं, वहीं अन्य इसे पूरी ताकत से नफरत करते हैं। लेकिन अगर कुछ ऐसा है जिस पर मुझे यकीन है, तो वह यह है कि फुटबॉल किसी को भी उदासीन नहीं छोड़ता है!
बंगाल में फुटबॉल की शुरुआत नागेंद्र प्रसाद सर्वाधिकारी ने 1877 में हेयर स्कूल में फुटबॉल टीम बनाकर की। सर्वाधिकारी को भारतीय फुटबॉल का पितामह कहा जाता है। इसके बाद यहां ढेरों फुटबॉल क्लब बने इनमें प्रमुख है मोहन बागान एथलेटिक क्लब (1889) जो बाद में नैशनल क्लब ऑफ इंडिया कहलाया। फुटबॉल बंगाल की संस्कृति का हिस्सा बन गई है। हर तबके का इंसान फुटबॉल से जुड़ा है। बॉलीवुड स्टार मिथुन चक्रवर्ती ने तो बंगाल फुटबॉल अकैडमी बनाने के लिए चंदा तक मांगा है। फीफा विश्व कप २०१० को देखने के लिए राज्य भर में 400 विशाल स्क्रीन लगाए गए थे।
गोवा में फुटबॉल की शुरुआत 1883 में हुई जब आइरिश पादरी फादर विलियम रॉबर्ट लियोंस ने इसे ईसाई शिक्षा का हिस्सा बनाया। आज गोवा पश्चिम बंगाल, केरल और उत्तर-पूर्व के राज्यों के साथ भारत में फुटबॉल का केंद्र बन चुका है। यहां कई लोकप्रीय फुटबॉल क्लब हैं जैसे, सलगांवकर, डेंपो, चर्चिल ब्रदर्स, वॉस्को स्पोर्ट्स क्लब और स्पोर्टिंग क्लब डि गोवा आदि। गोवा के कई खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इनमे प्रमुख हैं, ब्रह्मानंद संखवालकर, ब्रूनो कूटिन्हो, मॉरिसिओ अफोंसो, रॉबर्टो फर्नांडिस। ये सभी भारतीय फुटबॉल टीम के कैप्टन रह चुके हैं।
केरल में फुटबॉल की शुरुआत १८९० ई। में हुई जब महाराजा महाविद्यालय तिरुअनंतपुरम के रसायनशास्त्र के प्रोफेसर बिशप बोएल ने युवाओं को फुटबॉल खेलने की प्रेरणा दी। 1930 के दशक में राज्य में कई फुटबॉल क्लब बने। यहां फुटबॉल का एक स्थानीय रूप सेवन्स फुटबॉल बहुत प्रचलित है। इसमें दोनों तरफ सात-सात खिलाड़ी खेलते हैं। केरल ने कई सफल और मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी दिए हैं। इनमें से प्रमुख हैं एल. एम. विजयन, वी. पी. साथयन, एन. पी. प्रदीप, के. अजयन और सुशांत मैथ्यू।
मिजोरम में फुटबॉल सर्वाधिक लोकप्रीय खेल है। यहाँ लड़कियां भी इस खेल का हिस्सा हैं। फुटबॉल की लोकप्रियता के कारण ही यहाँ एड्स के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए संगठनों ने लाल फीता फुटबॉल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया था। यहां की राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि वह फुटबॉल के मैदान के लिए अमेरिका से कृत्रिम घास मंगाने की घोषणा की है।
मणिपुर को फुटबॉल के मंदिरों वाला राज्य कहा जाता है। यहां फुटबॉल एक धर्म की तरह जिया जाता है। मणिपुर में भी फुटबॉल अपनी फीमेल स्टार्स की वजह से पॉपुलर है। इस छोटे से राज्य में विमिंस मणिपुर फुटबॉल फेडरेशन के 450 से मेंबर हैं। मणिपुर की महिला फुटबॉल टीम ने 1993, 1995, 1998, 2000, 2001, 2002, 2003, 2005 में ऑल इंडिया विमिंस फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब जीता है। कुमारी देवी, लोकेशोरी देवी और सुरमाला चानू यहां की मशहूर फुटबॉल कोच रही हैं।
सिक्किम में भी फुटबॉल ने अपनी जड़ें उस समय जमाईं जब यह खेल भारत में पनप रहा था। सिक्किम के बाहर पहली जीत करने वाला स्थानीय फुटबॉल क्लब था कुमार स्पोर्टिंग क्लब। यह जीत उसने 1948 में दर्जकी थी। 1973 को सिक्किम के फुटबॉल इतिहास में टर्निंग पॉइंट माना जाता है, इस साल गोवा ने इसे 10-0 से हराया था। इसके बाद 1976 में सिक्किम फुटबॉल क्लब का गठन किया गया। सिक्किम फुटबॉल तब से लगातार पनप रहा है। सिक्किम का नाम उसके मशहूर फुटबॉल प्लेयर भाईचुंग भूटिया ने भी रोशन किया है। भाईचुंग को इंडिया फुटबॉल का पहला पोस्टर बॉय कहा गया है। वह पहला भारतीय फुटबॉल प्लेयर है जिसने इंग्लैंड में प्रफेशनल फुटबॉल खेली है।
यह है वुवुजेला साउथ अफ्रीका का फुटबॉल वर्ल्ड कप जितना अपनी जोशीली टीमों के लिए जाना जाएगा उतना ही वुवुजेला के लिए। वुवुजेला साउथ अफ्रीका का बाजा है जिसे स्टेडियम में खुशी से झूमते दर्शक बजाते हैं। इसकी आवाज भी बड़ी अजीब है, लाखों मधुमक्खियों के भनभनाने जैसी। प्लास्टिक के बने एक मीटर लंबे वुवुजेला से फीफा इतना परेशान था कि वह इसे बैन करने जा रहा था। उसकी नजर में यह सिर्फ परेशान करने वाला भोंपू है। लेकिन साउथ अफ्रीका ने कहा दिया कि अगर साउथ अफ्रीका की फुटबाल का असली मजा लेना है तो इसे तो मंजूरी देनी ही होगी।
हमारे दिल में फुटबॉल की धक...धक : नवभारत टाइम्स[मृत कड़ियाँ]
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