व्यक्ति केवल शारीरिक गुणों से ही एक दूसरे से भिन्न नहीं होते बल्कि मानसिक एवं बौद्धिक गुणों से भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं। ये भिन्नताऐं जन्मजात भी होती हैं। कुछ व्यक्ति जन्म से ही प्रखर बुद्धि के तो कुछ मन्द बुद्धि व्यवहार वाले होते हैं।
आजकल बुद्धि को बुद्धि लब्धि के रूप में मापते हैं जो एक संख्यात्मक मान है। बुद्धि परीक्षण का आशय उन परीक्षणों से है जो बुद्धि-लब्धि के रूप में केवल एक संख्या के माध्यम से व्यक्ति के सामान्य बौद्धिक एवं उसमें विद्यमान विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं के सम्बंध को इंगित करता है। कौन व्यक्ति कितना बुद्धिमान है, यह जानने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने काफी प्रयत्न किए। बुद्धि को मापने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक आयु (MA) और शारीरिक आयु (C.A.) कारक प्रस्तुत किये हैं और इनके आधार पर व्यक्ति की वास्तविक बुद्धि-लब्धि ज्ञात की जाती है।
उन्नीसवीं सदी में मंद बुद्धि वाले बालकों एवं व्यक्तियों के प्रति बहुत ही बुरा व्यवहार होता था। उनको जंजीरों में बांधकर रखा जाता था एवं उन्हें पीटा जाता था। लोगों की यह मान्यता थी कि इनमें दुरात्माओं का प्रवेश हो गया है। इन कथित दुरात्माओं को निकालने हेतु मंद बुद्धि बालकों की पिटाई की जाती थी। अतः मन्द बुद्धि बालकों के लिए समस्या यह थी कि उनकी बुद्धि के बारे में उस समय तक कोई जानता नहीं था। फ्रांस में बुद्धि-दौर्बल्य या मन्दबुद्धि बालकों की इस समस्या ने गम्भीर रूप धारण कर लिया तब तक वहां की सरकार और मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इस समस्या पर गया। इस समस्या का समाधान करने हेतु फ्रांस के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक इटार्ड (Itord) तथा उनके पश्चात् सेग्युन (Seguin) महोदय ने मंद बुद्धि बालकों की योग्यताओं के अध्ययन एवं मापन करने हेतु विभिन्न विधियों का प्रयोग किया। इस अध्ययन के अन्तर्गत उन्होंने कुछ बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया। मंद बुद्धि बालकों के उपचार के लिए कई विद्यालयों की स्थापना हुई जहां मंद बुद्धि बालकों का परीक्षण किया जाता था तथा उनकी बुद्धि विकास हेतु उन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया जाता था। इस प्रकार के प्रयत्न जर्मनी, इंग्लैंड तथा अमेरिका में भी हुए। परन्तु बुद्धि परीक्षण के सही मापन के क्षेत्र में विकासपूर्ण कार्य का श्रेय फ्रांस को ही जाता है। फ्रांस में मंदबुद्धि बालकों को सही प्रशिक्षण देने के लिए एवं उनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध करने हेतु एक समिति बनाई गई और उनका अध्यक्ष सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) को बनाया गया। बिने पहले मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने बुद्धि को वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप में समझने का प्रयास किया। उनको बुद्धि के मापन क्षेत्र का जन्मदाता माना जाता है। बिनेट ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि केवल एक कारक नहीं है जिसको कि हम एक विशेष परीक्षण द्वारा माप सकें अपितु यह विभिन्न योग्यताओं की वह जटिल प्रक्रिया है जो समग्र रूप से क्रियान्वित होती है।
सन् 1905 में बिनेट ने साईमन के सहयोग से प्रथम बुद्धि मापनी अर्थात् बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया जिसे बिने-साईमन बुद्धि परीक्षण का नाम दिया। ये बुद्धि परीक्षण तीन से सोलह वर्ष की आयु के बच्चों की बुद्धि का मापन करता है। इस परीक्षण में सरलता से कठिनता के क्रम में तीस पदों का प्रयोग किया गया। इस परीक्षण से व्यक्तियों के बुद्धि के स्तरों का पता लगाया जा सकता है। इस परीक्षण की सहायता से मंद बुद्धि बालकों को तीन समूह में बांटा गया है-
सन् 1908 में बिने ने अपने बुद्धि परीक्षण में पर्याप्त संशोधन किया और संशोधित बुद्धि परीक्षण का प्रकाशन किया। इस परीक्षण में 59 पद रखे। ये पद अलग-अलग समूहों में हैं, जो अलग-अलग आयु के बालकों से संबंधित हैं। इस परीक्षण में सर्वप्रथम मानसिक आयु (मेन्टल एज) कारक को समझा गया।
सन् 1911 में बिने ने अपने 1908 के बुद्धि परीक्षण में पुनः संशोधन किया। जब बिने का बिने साईमन बुद्धि परीक्षण 1908 विभिन्न देशों जैसे बेल्जियम, इंग्लैण्ड, अमेरिका, इटली, जर्मनी में गया तो मनोवैज्ञानिकों की रूचि इस परीक्षण की ओर बढ़ी। कालान्तर में इस परीक्षण की आलोचना भी हुई क्योंकि यह परीक्षण निम्न आयुस्तर वालों के लिए तो ठीक था, परन्तु उच्च आयुवर्ग के बालकों के लिए सही नहीं था। अतः इस कमी का सुधार करने हेतु बिने ने अपने 1908 परीक्षण में पर्याप्त सुधार किया। उन्होंने अपने परीक्षण के फलांकन पद्धति में भी सुधार और संशोधन किया तथा 1911 में अपनी संशोधित बिने-साईमन मापनी या परीक्षण का पुनः प्रका्यन किया। उन्होंने इस परीक्षण के मानसिक आयु और बालक की वास्तविक आयु के बीच सम्बन्ध स्थापित किया और इसके आधार पर उन्होंने बालकों को तीन वर्गों में बांटा ये वर्ग हैं-
बिने के अनुसार जो बालक अपनी आयु समूह से उच्च आयु समूह वाले प्रश्नों का हल कर लेते हैं तो वे श्रेष्ठ बुद्धि वाले कहलाते हैं और यदि बालक अपनी आयु समूह से कम आयु समूह वाले प्रश्नों का ही हल कर पाते हैं तो वे मन्द बुद्धि बालक होते हैं।
अतिरिक्त 1916 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक टर्मेन ने बिने के बुद्धि परीक्षण को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर इसका प्रकाशन किया। यह परीक्षण स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण कहलाता है। चूंकि इस परीक्षण का संशोधन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टर्मेन ने किया। इस आधार पर इस परीक्षण को ‘स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण’ कहा गया। 1937 में प्रो॰ एम.एम. मेरिल के सहयोग से 1916 के स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण में संशोधन करके इसमें कुछ अंकगणित के प्रश्नों को भी रखा। 1960 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से इस परीक्षण का वर्तमान संशोधन प्रकाशित किया गया।
इसके अतिरिक्त बोबर टागा ने 1913 में इसका जर्मन संशोधन प्रकाशित किया। लंदन में बर्ट (1922) ने इसका संशोधन कर इसे 'लंदन संशोधन' के नाम से प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त इटली में सेफियोट तथा भारत में उत्तर प्रदेश मनोविज्ञान शाला (U.P. Psychological Bureau) ने इस परीक्षण को अपने अपने देश के अनुसार अनुकूल एवं संशोधन कर इसका प्रकाशन किया।
बिने-साईमन बुद्धि परीक्षण के संशोधनों के अतिरिक्त भी कई बुद्धि परीक्षणों का निर्माण हुआ जिनमें व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण एवं सामूहिक बुद्धि परीक्षण, वाचिक एवं अवाचिक बुद्धि परीक्षण भी सम्मिलित हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में इन परीक्षणों की भूमिका असंदिग्ध है, जिसे निम्न रूप में देखा जा सकता है-
ये सभी व्यक्तिगत या वैयक्तिक परीक्षण हैं तथा इनका उपयोग एक बार विषय (व्यक्ति) पर ही किया जाता है।
बुद्धि परीक्षणों का विकास काल और देशीय आवश्यकता के अनुसार होता रहा है। सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय अमेरिका में सेना में भर्ती हेतु व्यक्तियों का सही ढ़ंग से चुनाव करने के लिए बुद्धि परीक्षणों का निर्माण हुआ। चूंकि हजारों व्यक्तियों पर व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षणों का प्रशासन एक समय पर एक साथ असंभव था इसलिए सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का निर्माण हुआ। सेना में अंग्रेजी पढ़े-लिखे एवं अधिकारी वर्ग के सैनिकों के चयन हेतु आर्मी अल्फा (Army Alpha) सामूहिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण हुआ। जबकि अनपढ़ एवं अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ व्यक्तियों के लिए आर्मी बीटा सामूहिक परीक्षणों का निर्माण हुआ। इन बुद्धि परीक्षणों के आधार पर सेना में सैनिकों की भर्ती की गई। इसी तरह द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इसी प्रकार के बुद्धि परीक्षणों द्वारा सेना में भर्ती हुई। इसी समय 'आर्मी जनरल क्लासीफिकेशन टैस्ट' का भी निर्माण हुआ। इस प्रकार समय-समय पर समय की आवश्यकता के अनुसार बुद्धि परीक्षणों का निर्माण होता रहा।
सन् 1922 में भारत में सर्वप्रथम बुद्धि परीक्षण का निर्माण एफ. जी. कॉलेज, लाहौर के प्राचार्य डॉ॰ सी. एच. राईस (Dr. C. H. Rice) ने किया। इन्होंने बिने की मापनी का भारतीय अनुकूलन किया। इस परीक्षण का नाम था ‘हिन्दुस्तानी बिने परफोरमेंस पाइन्ट स्केल’ (Hindustan Binet Peromance Point Scale)।
इसके पश्चात् 1927 में जे. मनरी ने हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा में शाब्दिक समूह बुद्धि परीक्षण (Verbal Group Intelligence Test) का निर्माण किया। डॉ॰ लज्जाशंकर झा (1933) ने सामूहिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया जो 10 से 18 वर्षों के बालकों के लिए उपयोगी है। सन् 1943 में सोहनलाल ने 11 वर्ष तथा इससे अधिक आयु वाले बालकों के लिए सामूहिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया। पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ॰ जलोटा (1951) ने एक सामूहिक परीक्षण का निर्माण किया। यह परीक्षण हिन्दी, उर्दू एवं आंग्ल भाषा में तथा विद्यालीय छात्रों के लिए था। सन् 1955 में प्रोफेसर सी. एम. भाटिया ने एक निष्पादन बुद्धि परीक्षण (Performance Intelligence Test) का निर्माण किया। इसमें पांच प्रमुख बौद्धिक उपपरीक्षण हैं तथा यह 'भाटिया बैट्री ऑफ परफोरमेंस टेस्ट ऑफ इन्टेलीजेन्स' कहलाता है। इस तरह उपरोक्त परीक्षण भारतीय अनुकूलन के प्रमुख बुद्धि परीक्षण हैं और इनका विकास समयानुसार हुआ। इन परीक्षणों के अतिरिक्त कई भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने शाब्दिक एवं अशाब्दिक तथा वैयक्तिक एवं सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया। उपरोक्त परीक्षणों के निर्माण में जिन मनोवैज्ञानिकों ने अपना योगदान दिया उनके अतिरिक्त कई और भी मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने बुद्धि परीक्षण निर्माण में इसी प्रकार का अपना योगदान दिया है। जिनमें से कुछ प्रमुख मनोवैज्ञानिकों के नाम इस प्रकार हैं - शाब्दिक बुद्धि परीक्षणों के निर्माण में बड़ौदा के डॉ॰ बी. एल. शाह, बम्बई के डॉ॰ सेठना, एन. एन. शुक्ला, ऐ.जे. जोशी तथा दवे, अहमदाबाद के डॉ॰ देसाई, बूच एवं भट्ट के नाम प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त देश के कई मनोवैज्ञानिक जैसे डॉ॰ शाह, झा, माहसिन, मनरी, सोहनलाल, जलोटा, प्रो॰ एम. सी. जोशी, प्रयाग मेहता, टण्डन, कपूर, शैरी, रायचौधरी, मलहोत्रा, ओझा एवं लाभसिंह ने भी बुद्धि परीक्षणों के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अशाब्दिक परीक्षणों के निर्माण में जिन मनोवैज्ञानिकों ने योगदान दिया उसमें प्रमुख हैं- अहमदाबाद के प्रो॰ पटेल, प्रो॰ शाह, बड़ौदा के प्रोमिला पाठक, बंगाल के विकरी एण्ड ड्रेपर, कलकत्ता विश्वविद्यालय के रामनाथ कुन्दू, बलिया के ए.एन. मिश्र तथा कलकत्ता के एस. चटर्जी तथा मंजुला मुकर्जी।
निष्पादन बुद्धि परीक्षण (Performance Intelligence Tests) के निर्माण में अहमदाबाद के डॉ॰ पटेल बड़ौदा के एम. के पानवाल, उदयपुर के पी. एन. श्रीमाली, कलकत्ता के मजूमदार नागपुर के चन्द्रमोहन भाटिया का योगदान महत्वपूर्ण है। इनके अतिरिक्त प्रभारामलिंगास्वामी (1975) मुरादाबाद के टंडन, इम्फाल के चक्रवर्ती, मैसूर के भारतरात, चंडीगढ़ के वर्मा तथा द्वारकाप्रसाद ने इन परीक्षणों के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया।
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