परशुराम १९८९ का एक कन्न्ड़ भाषी चलचित्र है, जिसके प्रमुख कलाकार हैं डा राजकुमार। यह वी सोमशेखर का राजकुमार के साथ अंतिम चलचित्र था, जिन्होनें आक्समात ही राजकुमार की बंगारद पंजारा से उनका निर्देशक के रूप में जीवन-वृत आरंभ किया था।
परशुराम (१९८९ चलचित्र) | |
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[[Image:|225px]] कन्नड़ भाषा चलचित्र का नायक 'परशुराम'। |
परशुराम | |
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निर्देशक | वी. सोमशेखर |
निर्माता | पर्वथम्मा राजकुमार |
संगीतकार | हमसलेखा |
भाषा | कन्न्ड़ |
मेजर परशुराम एक थलसेना सेवानिवृत व्यक्ति होता है, जो एक निजी सुरक्षा एजेंसी चला रहा होता है। वह बहुत ही अल्हड़ और खुशमिजाज़ व्यक्ति होता है, जिसकी एक पत्नी है उषा (वाणी विश्वनाथ) और एक बेटा, जिनके साथ वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा होता है। उसे एक ऐसा मामला मिलता है जिसमें एक अभिनेत्री का अपहरण हो गया होता है और निर्माता को परशुराम की सहायता चाहिए होती है। उसकी दोस्ती अप्पु (पुनिथ राजकुमार) से हो जाती है जो मलिन बस्तीवासी होता है।
परशुराम का सामना संगठित अपराध की दुनिया से होता है, जिसका स्वामित्व एमडी के पास होता है, जिसे पुरोहित, कुलकर्णी और नायक का समर्थन प्राप्त है। एमडी इतना शक्तिशाली होता है कि उसे सरकार तक का समर्थन प्राप्त होता है। एमडी के पास चुनाव में देने के लिए पैसो की कमी होती है और वो अपने माफ़िया नेटवर्क को महीने में दो बार वसूली करने के लिए कहता है। तब परशुराम एमडी के गुंडों की अच्छी पिटाई करता है।
एमडी इस बात से प्रभावित होता है कि आखिर कोई तो है जो उससे टकरा सकता है। वह परशुराम को निमंत्रित करता है और उसे अपने साथ काम करने की इच्छा प्रकट करता है। परशुराम बिल्कुल मना कर देता है वहाँ से आ जाता है। एमडी उसे धमकाता है और उसे बरबाद करने की योजना बनाता है।
परशुराम के बेटे के जन्मदिन के दिन, एमडी परशुराम से बेटे का अपहरण करा देता है। बच्चे का पता लगाने के सारे प्रयास करने के बाद, परशुराम अनुमान लगाता है कि एमडी में ही उसके बेटे का अपहरण करवाया है। वह एमडी को कॉल करता है और चिल्लाता है कि उसे अपना बेटा वापस चाहिए। तभी एक परशुराम के लिए एक डब्बा आता है, जिसमें उसके बेटे का दाँया हाथ होता है। जब परशुराम वापस उससे बात करता है, तो एमडी उषा से उनके घर के गेट से उसके बेटे का शव उठा लेने को कहता है।
जब बच्चे को अस्पताल ले जाया जा रहा होता है, तब एमडी बच्चे को मारने में सफल हो जाता है। परशुराम बहुत ही शोकाकुल होता है, तभी वहाँ उपस्थित नर्स कहती है कि उसके लिए एक फोन कॉल है। एमडी उसे चिढ़ाता है कि वह अपना मानसिक संतुलन खो देगा और उसने अपनी पत्नी को भी खो दिया है। परशुराम पाता है कि उसकि पत्नी को घसीट कर ले जाया जा रहा है और एमडी के आदमी उसे अस्पताल की छत से धक्का दे देते हैं। उषा तुरंत मर जाती है और परशुराम अकेला पड़ जाता है।
परशुराम एक प्रैस रिपोर्टर और अप्पु की सहायता से एमडी की टीम को अलग-थलग करता है और अंत में एमडी को मारने में सफल होता है।
अंत तक पकड़ बनाए रखने वाली कहानी और क्रियाविधि अनुक्रमों के चलते चलचित्र को बड़ी सफलता मिली।
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