चार साहिबज़ादे

चार साहिबज़ादे नाम से एक पंजाबी-हिन्दी मिश्रित फिल्म भी बनी है।


चार साहिबज़ादे शब्द का प्रयोग सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार सुपुत्रों - साहिबज़ादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह, व फतेह सिंह को सामूहिक रूप से संबोधित करने हेतु किया जाता है।

    छोटे साहिबजादे

“निक्कियां जिंदां, वड्डा साका”.... गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत को जब भी याद किया जाता है तो सिख संगत के मुख से यह लफ्ज़ ही बयां होते हैं।

    जुदाई

सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते।

    गंगू नौकर

अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं।

    माता गुजरी जी और साहिबजादे

माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की।

    वजीर खां

खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया।

    ठंडे बुर्ज में रखा

रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह होते ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। कहते हैं सभा में पहुंचते ही बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगा “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल”।

    सभा में बुलाया

यह देख सब दंग रह गए, वजीर खां की मौजूदगी में कोई ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियां ऐसा करते समय एक पल के लिए भी ना डरीं। सभा में मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, लेकिन इस पर उन्होंने जो जवाब दिया वह सुनकर सबने चुप्पी साध ली।

    वे ना डरे

दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’।

    अपने निर्णय पर रहे

वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राज़ी करना चाहा, लेकिन दोनों अपने निर्णय पर अटल थे।

    शहादत का फैसला

आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का ऐलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करना शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज़ भी आई।

    मुगलों का कहर

ऐसा कहा जाता है कि वजीर खां के कहने पर दीवार को कुछ समय के बाद तोड़ा गया, यह देखने के लिए कि साहिबजादे अभी जिंदा हैं या नहीं। तब दोनों साहिबजादों के कुछ श्वास अभी बाकी थे, लेकिन मुगल मुलाजिमों का कहर अभी भी जिंदा था। उन्होंने दोनों साहिबजादों को जबर्दस्ती मौत के गले लगा दिया।

    माता गुजरी जी का निधन

उधर दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने अकाल पुरख को इस गर्वमयी शहादत के लिए शुक्रिया किया और अपने ।

साहिबज़ादा अजीत सिंह

अजीत सिंह श्री गुरु गोबिन्द सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। चमकौर के युद्ध में अजीत सिंह अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु जी द्वारा नियुक्त किए गए पांच प्यारों ने अजीत सिंह को समझाने की कोशिश की कि वे ना जाएं, क्योंकि वे ही सिख धर्म को आगे बढ़ाने वाली अगली शख्सियत हो सकते हैं लेकिन पुत्र की वीरता को देखते हुए गुरु जी ने अजीत सिंह को निराश ना किया। ‌

    रणभूमि में गए

उन्होंने स्वयं अपने हाथों से अजीत सिंह को युद्ध लड़ने के लिए तैयार किया, अपने हाथों से उन्हें शस्त्र दिए थमाए और पांच सिखों के साथ उन्हें किले से बाहर रवाना किया। कहते हैं रणभूमि में जाते ही अजीत सिंह ने मुगल फौज को थर-थर कांपने पर मजबूर कर दिया। अजीत सिंह कुछ यूं युद्ध कर रहे थे मानो कोई बुराई पर कहर बरसा रहा हो।

    मुगल फौज को चीर डाला

अजीत सिंह एक के बाद एक वार कर रहे थे, उनकी वीरता और साहस को देखते हुए मुगल फौज पीछे भाग रही थी लेकिन वह समय आ गया था जब अजीत सिंह के तीर खत्म हो रहे थे। जैसे ही दुश्मनों को यह अंदाज़ा हुआ कि अजीत सिंह के तीर खत्म हो रहे हैं, उन्होंने साहिबजादे को घेरना आरंभ कर दिया।

    टूट गई तलवार

लेकिन तभी अजीत सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और बहादुरी से मुगल फौज का सामना करना आरंभ कर दिया। कहते हैं तलवार बाजी में पूरी सिख फौज में भी अजीत सिंह को कोई चुनौती नहीं दे सकता था तो फिर ये मुगल फौज उन्हें कैसे रोक सकती थी। अजीत सिंह ने एक-एक करके मुगल सैनिकों का संहार किया, लेकिन तभी लड़ते-लड़ते उनकी तलवार भी टूट गई।

    17 वर्ष की आयु में शहीदी

फिर उन्होंने अपनी म्यान से ही लड़ना शुरू कर दिया, वे आखिरी सांस तक लड़ते रहे और फिर आखिरकार वह समय आया जब उन्होंने शहादत को अपनाया और महज़ 17 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए।

इनके नाम पर पंजाब के मोहाली शहर का नामकरण साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर किया गया।

साहिबज़ादा जुझार सिंह

अजीत सिंह से छोटे जुझार सिंह अपने बड़े भाई के बलिदान के पश्चात् नेतृत्व संभाला तथा पदचिन्हों पर चलते हुए अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह

गुरु गोविंद सिंह द्वारा आनंदपुर का किला छोड़ने के बाद सरसा नदी पार करते समय सारा परिवार बिछड़ गया। दोनों छोटे साहिबज़ादे ज़ोरावर सिंह व फतेह सिंह अपनी दादी माता गूजरी जी के साथ अलग रास्ते चले गए। उनके ही एक सेवक के विश्वासघात के कारण सरहिंद के नवाब वज़ीर खान ने उन्हें बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया।

साहिबज़ादा फतेह सिंह

फतेह सिंह गुरु गोबिन्द सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें इनके बड़े भाई ज़ोरावर सिंह सहित सरहिंद के नवाब वज़ीर खान द्वारा बंदी बना लिया गय़ा तथा बाद में जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया।

सन्दर्भ

Tags:

चार साहिबज़ादे साहिबज़ादा अजीत सिंहचार साहिबज़ादे साहिबज़ादा जुझार सिंहचार साहिबज़ादे साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंहचार साहिबज़ादे साहिबज़ादा फतेह सिंहचार साहिबज़ादे सन्दर्भचार साहिबज़ादेचार साहिबज़ादे (फ़िल्म)फिल्म

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

वैष्णो देवीइस्लाम का इतिहासलालू प्रसाद यादवकृष्णदेवरायभारत के उपराष्ट्रपतिराणा सांगाखाद्य प्रसंस्करणभारत का उच्चतम न्यायालयभाषाविज्ञानइंदिरा गांधी की हत्यासंजय गांधीब्रिटिश राज का इतिहासराजनीतिक दलराशियाँअसहयोग आन्दोलनमानहानिविज्ञापनईमेलउज्जैन का महाकालेश्वर मंदिरकोठारी आयोगनई शिक्षा नीति 2020नागिन (धारावाहिक)पानीपत का प्रथम युद्धशीतयुद्धउत्तर प्रदेशइंस्टाग्रामकेन्द्र-शासित प्रदेशजयप्रकाश नारायणविद्यापतिएशियाटिक सोसायटीमानव का विकाससोनू निगमतराइन का युद्धअरस्तुमुहम्मद बिन तुग़लक़प्यार किया तो डरना क्या (1998 फ़िल्म)सामाजिक परिवर्तनमाध्यमिक शिक्षा आयोगमैला आँचलरावणराजा मान सिंहसूचना प्रौद्योगिकीअक्षय खन्नागोपाल कृष्ण गोखलेवीर्यउत्तर प्रदेश के मंडलदैनिक भास्करगोलमेज सम्मेलन (भारत)2023 की हिंदी फिल्मों की सूचीमहाराजा रणजीत सिंहभानुप्रियाॐ नमः शिवायआचार्य रामचन्द्र शुक्लरबी की फ़सलरैयतवाड़ीऋषि सुनकप्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्तसत्याग्रहप्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्धपारिस्थितिकीनवरात्रिगोवायादवज़ुहर की नमाजलिंक्डइनइंडियन प्रीमियर लीगमस्तिष्कमिथुन चक्रवर्तीमनमोहन सिंहए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलामहिन्दू धर्मग्रन्थभोजपुरी भाषाउत्तराखण्डचन्द्रमाचंद्रशेखर आज़ाद रावणमीशोभारत का प्रधानमन्त्रीमस्तानी🡆 More