मधुबनी बिहार राज्य मे अवस्थित एकटा नगर थीक । ई मधुबनी जिला केरि मुख्यालय सेहो थीक ।
मधुबनी মধুবনী Madhubani | |
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शहर | |
देश | भारत |
राज्य | बिहार |
जिला | मधुबनी |
क्षेत्र | मिथिला |
उन्नतांश | ५६ मिटर (१८४ फिट) |
जनसङ्ख्या (२००१) | |
• कुल | १,६६,२८५ |
भाषा | |
• अधिकारिक | मैथिली, हिन्दी |
समय क्षेत्र | युटिसी+५:३० (भारतीय मानक समय) |
डाक कोड | |
टेलिफोन कोड | ०६२७६ |
लैङ्गिक अनुपात | १०००/९४२ ♂/♀ |
लोकसभा क्षेत्र | मधुबनी |
विधानसभा क्षेत्र | मधुबनी, बिसफी |
वेबसाइट | madhubani.bih.nic.in |
मधुबनीक मुख्य भाषा मैथिली थीक जे सुनऽ मे सरस ओ मधुर अछि । पहिनुका समयमे एहि ठामक जङ्गल मे विशिष्ट श्वेत रंगक मधु [(मौध (शहद)] बहुतरास सं भेटैत छल ताहि लेल जगहक नाम मधु + वनी सँ मधुबनी बहुश्रुत भऽ गेल । किछु लोकक मनतब इहो छन्हि जे मधुबनी शब्द मधुर + वाणी सँ विकसित भेल अछि।
मधुबनी जिलाक प्राचीनतम ज्ञात निवासी सभ मे किरात, भार, थारु सन जनजाती सम्मिलित अछि । वैदिक स्रोतक अनुसार आर्यक विदेह शाखा आगिक संरक्षण मे सरस्वती तट सँ पूब स्थित सदानीरा (गण्डक)क ओ कौशिकी आ' कमला दिस कूच केलथि आओर एहि क्षेत्रमे विदेह राज्यक स्थापना केलथि । विदेहक राजा मिथिक नाम पर ई प्रदेश मिथिला कहाओल । रामायणकाल मे मिथिलाक राजा सिरध्वज जनकक पुत्री सीताक जन्म मधुबनीक सीमा पर स्थित सीतामढीमे भेल छल । विदेहक राजधानी जनकपुर, जे आधुनिक नेपाल मे पड़इत अछि, मधुबनीक उत्तर-पश्चिमी सीमा ल'ग अछि । बेनीपट्टी ल'ग स्थित फुलहरक मादे मे एहेन मान्यता अछि जे एतय फुलक बाग छल जतय सँ सीता फुल लोढ़ि के गिरिजा देवीक मन्दिर मे पूजा करैत छलीह । पण्डौलक मादे मे इहो प्रसिद्ध अछि जे एतय पाण्डव सभ अपन अज्ञातवाशक किछु दिन बितौने छलाह । विदेह राज्यक अन्त भेला पर ई प्रदेश वैशाली गणराज्यक अङ्ग बनि गेल । तत्पश्चात ई मगधक मौर्य, शुङ्ग, कण्व आ गुप्त शासक सभक अधीन रहल । १३म शताब्दीमे पश्चिम बङ्गालक मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियासक समय मिथिला आ तिरहुत क्षेत्रक बँटवारा भऽ गेल । उत्तरी भाग जकरा अन्तर्गत मधुबनी, दड़िभङ्गा आ समस्तीपुरक उत्तरी हिस्सा आएल छल, ओईनवार राजा कामेश्वर सिंहक महान शासन व्यवस्थामे रहल । ओईनवार राजासभ मधुबनी ल'ग मे स्थित सुगौना के अपन पहिल राजधानी बनेलथि । १६म शताब्दीमे ओ सब दड़िभङ्गाके अपन राजधानी बनेलथि । ओईनवार राजा सभक कला, संस्कृति ओ साहित्य के बढ़ाबा' देम' लेल जानल जाइत अछि । १८४६ इस्वीमे ब्रिटिश सरकार मधुबनी कें तिरहुतक अधीन अनुमण्डल बनेलक । सन् १८७५ मे दड़िभङ्गा के स्वतन्त्र जिला बनला' पर ई नवोदित जिलाक अनुमण्डल बनल । स्वतन्त्रता सङ्ग्राम ओ महात्मा गान्धीक खादी आन्दोलन मे मधुबनी अपन विशेष अस्तित्व कायम केलक आओर सन् १९४२ मे भारत छोड़ो आन्दोलन मे जिलाक सेनानी सभ जीजान सँ हिस्सा लेलक । स्वतन्त्रताक पश्चात सन् १९७२ मे मधुबनीकें स्वतन्त्र जिला बना' देल गेल ।
मधुबनी नगरक उत्तर मे नेपाल, दक्षिण मे दड़िभङ्गा, पुरब मे सुपौल तथा पश्चिम मे सीतामढी जिला अछि । अहि नगरक कुल क्षेत्रफल ३५०१ वर्गकिलोमीटर अछि । कतेक रास जल-प्रवाहिका सभ सँ समृद्ध ई स्थान बरसातक समय मे प्रति वर्ष लोकसभक लेल तबाहीक कारण बनैत अछि । सन् २००७ मे आएल भीषण बाढ़िमे ३३१ पञ्चायत (११० पूर्ण रूप सँ तथा २२१ आंशिक रुप सँ) तथा ८३६ गामसभक ३,७२,५९९ परिवार पूर्ण रूप सँ प्रभावित भेल छल । समूचा जिला एक समतल आ' उपजाऊ क्षेत्र थीक । औसत वार्षिक १,२७३ मिमी वर्षा अधिकांश मनसुन सँ प्राप्त होइत अछि ।
मधुबनी मे कमला, करेह, बलान, भूतही बलान, गेहुंआ, सुपेन, त्रिशुला, जीवछ, कोशी आ' अधवारा समूह। अधिकांश नदी सभ बरसातक समय मे उग्र रुप धारण क' लैत अछि । कोशी नदी जिलाक पूर्वी सीमा तथा अधवारा या छोटी बागमती पश्चिमी सीमा बनबैत अछि ।
ई जिला ५ अनुमंडल, २१ प्रखंड, ३९९ पंचायत तथा ११११ गाम सभ मे बांटल अछि । विधि- व्यवस्थाक संचालन लेल १८ आरक्षी केन्द्र किंवा थाना एवं २ गोट जेल अछि । पूर्ण एवं आंशिक रुप सं मधुबनी जिला २ संसदीय क्षेत्र आ' ११ विधान सभा क्षेत्र मे विभाजित अछि ।
मधुबनी मूलतः एक कृषि प्रधान जिला थीक। अहि ठामक मुख्य फसल धान, गहूम, मकई, मखान आदि थीक। भारत मे मखानक कुल उत्पादनक ८०% मधुबनी मे होइत अछि । आधारभूत संरचना केरि अभाव ओ निम्न शहरीकरण (मात्र 3.65%) उद्योग सभक विकास मे बाधा थीक । एखनहुं मधुबनी पेंटिंग केरि 76 पंजीकृत इकाई, फर्नीचर उद्योगक 13 पंजीकृत इकाई, 3 स्टील उद्योगक, 03 प्रिंटिंग प्रेसक, 03 चूड़ा मिलक, 01 चाउर मिलक तथा 3000 के करीब लघु उद्योग इकाई सभ जिले मे कार्यरत अछि । पशुपालन ओ डेयरी के आधार बना' के अहि सभ पर आधारित उद्योग लगाओल जा' सकैत अछि लेकिन एखन धरि मात्र ३० दुग्ध समिति सभ कार्यरत अछि । माछली, मखान, आम, लीची तथा गन्ना सन कृषि उत्पाद के छोड़ि मधुबनी सं पीत्तर केरि बर्तन-बासन एवं हैंडलूम कपड़ाक राज्य मे ओ बहार निर्यात कयल जाइत अछि ।
शिक्षाक प्रसारक मामिला मे मधुबनी एकटा पिछड़ा जिला थीक। साक्षरता मात्र 41.97% अछि जाहि मे स्त्रीगणक साक्षरता दर महज 26.54% अछि । आधारभूत संरचनाक अभाव के शिक्षा क्षेत्र मे पिछड़ेपनक मुख्य कारण मानल जाइत अछि । जिलि मे शिक्षण संस्थान सभक कुल संख्या निम्न प्रकार अछि:
स्थिति मे सुधार हेतु बिहार शिक्षा परियोजनाक अन्तर्गत एखनहुं 98 प्राथमिक विद्यालय खोलल गेल अछि तथा 83 प्राथमिक विद्यालय कें मध्य विद्यालय मे उत्क्रमित कयल जा' रहल अछि । मधुबनी जिले केरि सभटा कॉलेज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा सं संबद्ध अछि जखनकि आबादी के देखैत जिला मे एकटा विश्वविद्यालय केरि सख्त आवश्यकता अछि। एकरा अतिरिक्त अहिठाम मेडिकल कॉलेज आ' अन्य इंजीनियरिंग कॉलेज सेहो नहीं अछि। मधुबनीक लोक पढ़ाय-लिखाय मे बड़ जीवट मानल जाइत छथि आ' ओ सभ राज्य आ' देसक मे अपनी प्रतिभाक लोहा मनवौने छथि । कम साक्षरताक बादहु अहिठामक लोग अधिक संख्या मे आईएएस, आईपीएस ओ आन सेवा सम में चयनित भ' जाइत रहथि छथि । लेकिन पढ़ि वैह सभ पबैत छथि जो आर्थिक रुप सं संपन्न छथि ओ समर्पित छथि । संगहि जिनका जागरुक समाजिक परिवेश छन्हि । मधुबनी मे ओना तं एकटा नवोदय विद्यालय अछि लेकिन ओकर गुणवत्ता प्रभावित भेल अछि । मधुबनी के कम सं कम ५ डिग्री कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज आ' पांच इंजिनयरींग कॉलेजक सख्त आवश्यकता अछि । अहिठामक बाल-बच्चा जमीन बेचि के कर्नाटक, महाराष्ट्र ओ आन सूबा सभ मे डिग्री प्राप्त करबा'लेल जाइत छथि जकर गुणवत्ता सेहो संदिग्ध होइत अछि संगहि राज्यक राजस्व सेहो दोसर राज्य मे चलि जाइत अछि । लेकिन दुर्भाग्यक बात ई थीक जे अहि जिला सं एतेक कद्दावर नेता सभक के संसद ओ विधानसभा पहुंचलाक बादहु जनता के ठकबाक क्रम चलिते रहल अछि आ' शिक्षा एखन धरि राजनीतिक एजेंडा मे नहि आबि पाओल अछि । साइत देसक आन भागक सेहो कमोवेश यैह हाल अछि ।
1. रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी
2. जगदीशनंदन सिंह महाविद्यालय, मधुबनी
3. रमाप्रसाद दत्त जनता उच्च विद्यालय, मधुबनी
4. गोकुलमथुरा सुड़ीसमाज उच्च विद्यालय,मधुबनी
मधुबनी मिथिला संस्कृति का अंग एवं केंद्र विंदु रहा है। राजा जनक और सीता का वास स्थल होने से हिंदुओं के लिए यह क्षेत्र अति पवित्र एवं महत्वपूर्ण है। मिथिला पेंटिंग के अलावे मैथिली और संस्कृत के विद्वानों ने इसे दुनिया भर में खास पहचान दी है। प्रसिद्ध लोककलाओं में सुजनी (कपडे की कई तहों पर रंगीन धागों से डिजाईन बनाना), सिक्की-मौनी (खर एवं घास से बनाई गई कलात्मक डिजाईन वाली उपयोगी वस्तु) तथा लकड़ी पर नक्काशी का काम शामिल है। सामा चकेवा एवं झिझिया मधुबनी का लोक नृत्य है। मैथिली, हिंदी तथा उर्दू यहाँ की मुख्य भाषा है। यह जिला महाकवि कालीदास, मैथिली कवि विद्यापति तथा वाचस्पति जैसे विद्वानों की जन्मभूमि रही है।
पर्व त्योहारों या विशेष उत्सव पर यहाँ घर में पूजागृह एवं भित्ति चित्र का प्रचलन पुराना है। १७वीं शताब्दी के आस-पास आधुनिक मधुबनी कला शैली का विकास माना जाता है। मधुबनी शैली मुख्य रुप से जितवारपुर (ब्राह्मण बहुल) और रतनी (कायस्थ बहुल) गाँव में सर्वप्रथम एक व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ था। यहाँ विकसित हुए पेंटिंग को इस जगह के नाम पर ही मधुबनी शैली का पेंटिग कहा जाता है। इस पेंटिग में पौधों की पत्तियों, फलों तथा फूलों से रंग निकालकर कपड़े या कागज के कैनवस पर भरा जाता है। मधुबनी पेंटिंग शैली की मुख्य खासियत इसके निर्माण में महिला कलाकारों की मुख्य भूमिका है। इन लोक कलाकारों के द्वारा तैयार किया हुआ कोहबर, शिव-पार्वती विवाह, राम-जानकी स्वयंवर, कृष्ण लीला जैसे विषयों पर बनायी गयी पेंटिंग में मिथिला संस्कृति की पहचान छिपी है। पर्यटकों के लिए यहाँ की कला और संस्कृति खासकर पेंटिंग कौतुहल का मुख्य विषय रहता है। मैथिली कला का व्यावसायिक दोहन सही मायने में १९६२ में शुरू हुआ जब एक कलाकार ने इन गाँवों का दौरा किया। इस कलाकार ने यहां की महिला कलाकारों को अपनी पेंटिंग कागज पर उतारने के लिए प्रेरित किया। यह प्रयोग व्यावसायिक रूप से काफी कारगर साबित हुई। आज मधुबनी कला शैली में अनेकों उत्पाद बनाए जा रहे हैं जिनका बाजार फैलता ही जा रहा है। वर्तमान में इन पेंटिग्स का उपयोग बैग और परिधानों पर किया जा रहा है। इस कला की मांग न केवल भारत के घरेलू बाजार में बढ़ रही है वरन विदेशों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। अन्य उत्पादों में कार्ड, परिधान, बैग, दरी आदि शामिल है।
मधुबनी चित्रकला के लिए प्रख्यात है। 2003 ई॰ में लन्दन में आयोजित कला प्रदर्शनी में मधुबनी पेंटिंग्स को बहुत प्रशंसा मिली थी।
*राजनगर- राजनगर मधुबनी जिले का एक एतिहासिक महत्व जगह है। यह एक जमाने में महाराज दरभंगा की उप-राजधानी हुआ करता था। यह मराराजा रामेश्वर सिंह के द्वारा बसाया गया था। उन्होंने यहां एक भव्य नौलखा महल का निर्माण करवाया लेकिन १९३४ के भूकंप में उस महल को काफी क्षति पहुंची और अभी भी यह भग्नावशेष के रुप में ही है। इस महल में एक प्रसिद्ध और जाग्रत देवी काली का मंदिर है जिसके बारे में इलाके के लोगों में काफी मान्यता और श्रद्धा है। जब इस नगर को रामेश्वर सिंह बसा रहे थे उस वक्त वे महाराजा नहीं, बल्कि परगने के मालिक थे। राजा के छोटे भाई और संबंधियों को परगना दे दिया जाता था जिसके मालिक को बाबूसाहब कहा जाता था। बाद में अपने भाई महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की मृत्यु के बाद, रामेश्वर सिंह, दरभंगा की गद्दी पर बैठे। लेकिन १९३४ के भूकंप ने राजनगर के गौरव को ध्वस्त कर दिया। हलांकि यहां का भग्नावशेष अवस्था में मौजूद राजमहल और परिसर अभी भी देखने लायक है। राजनगर, मधुबनी जिला मुख्यालय स करीब ७ किलोमीटर उत्तर में है और मधुबनी-जयनगर रेलवे लाईन यहां से होकर गुजरती है। यह मधुबनी-लौकहा रोड पर ही स्थिति है और यातायात के साधनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां प्रखंड मुख्यालय, कॉलेज, हाईस्कूल, पुलिस स्टेशन, सिनेमा हॉल आदि है। एक जमाने में नदी कमला इसके पूरव से होकर बहती थी। अब उसने अपनी धारा करीब ७ किलोमीटर पूरव खिसका ली है और भटगामा-पिपराघाट से होकर बहती है। राजनगर से उत्तर खजौली, दक्षिण मधुबनी, पूरव बाबूबरही और पश्चिम रहिका ब्लाक है। यहां से बलिराजगढ़ की दूरी २० किलोमीटर है, जो मौर्यकाल से भी पुराना ऐतिहासिक किला माना जाता है।
* बलिराज गढ़ : यहां प्रचीन किला का एक भग्नावशेष है जो करीब ३६५ बीघे में फैला हुआ है। यह स्थान जिला मुख्यालय से करीब ३४ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मधुबनी-लौकहा सड़के के किनारे स्थित है। यह नजदीकी गांव खोजपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा है जहां से इसकी दूरी १। ५ किलोमीटर के करीब है। इसके उत्तर में खोजपुर, दक्षिण में बगौल, पूरब में फुलबरिया और पश्चिम में रमणीपट्टी गांव है। इस किले की दीवार काफी मोटी है और ऐसा लगता है कि इसपर से होकर कई रथ आसानी से गुजर जाते होंगे। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है और यहां उसके कुछ कर्मचारी इसकी देखभाल करते हैं। पुरातत्व विभाग ने दो बार इसकी संक्षिप्त खुदाई की है और इसकी खुदाई करवाने में मधुबनी के पूर्व सीपीआई सांसद भोगेंद्र झा और स्थानीय कुदाल सेना के संयोजक सीताराम झा का नाम अहम है। यहां सलाना रामनवमी के अवसर पर चैती दुर्गा का भव्य आयोजन होता है जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है। इसकी खुदाई में मौर्यकालीन सिक्के, मृदभांड और कई वस्तुएं बरामद हुई हैं। लेकिन पूरी खुदाई न हो सकने के कारण इसमें इतिहास का वहुमूल्य खजाना और ऐतिहासिक धरोहर छुपी हुई है। कई लोगों का मानना है कि बलिराज गढ़ मिथिला की प्राचीन राजधानी भी हो सकती है क्योंकि वर्तमान जनकपुर के बारे में कोई लोगों को इसलिए संदेह है क्योंकि वहां की इमारते काफी नई हैं। दूसरी बात ये कि रामायण अन्य विदेशी यात्रियों के विवरण से संकेत मिलता है कि मिथिला की प्राचीन राजधानी होने के पर बलिराजगढ़ का दावा काफी मजबूत है। इसके बगल से दरभंगा-लौकहा रेल लाईन भी गुजरती है और नजदीकी रेलवे हाल्ट बहहड़ा यहां से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अगल-बगल के गांव भी ऐतिहासिक नाम लिए हुए हैं। रमणीपट्टी के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां राजा का रनिवास रहा होगा। फुलबरिया, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है फूलो का बाग रहा होगा। बगौल भी बिगुल से बना है जबकि कुछ ही दूरी पर नवनगर नामका गांव है। जो गरही गाँव इसके नजदीक में है। बलिराज गढ़ में हाल तक करीब ५० साल पहले तक घना जंगल हुआ करता था और पुराने स्थानीय लोग अभी भी इसे वन कहते हैं जहां पहले कभी खूंखार जानवर विचरते थे। वहां एक संत भी रहते थे जिनके शिष्य से धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने दीक्षा ली थी। कुल मिलाकर, बलिराजगढ़ अभी भी एक व्यापक खुदाई का इंतजार कर रहा है और इतिहास की कई सच्चाईयों को दुनिया के सामने खोलने के लिए बेकरार है। इस के नजदीक एक उच्च विद्यालय नवनगर में है जो इस दश किलो मिटर के अन्तर्गत एक उच्च विद्यालय है जो नवनगर में शिक्षा के लिए जाना जाता है।
मधुबनी बिहार के सभी मुख्य शहरों से राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग तथा दो राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। मुजफ्फरपुर से फारबिसगंज होते हुए पूर्णिया जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग ५७ मधुबनी जिला होते हुए जाती है। यह सड़क स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का अगल चरण है जिसे ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर कहा जाता है। इसकी योजना वाजपेयी सरकार के वक्त बनी थी। इस सड़क के बन जाने से मधुबनी, दरभंगा बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र की ही तकदीर बदल जाएगी। इस सड़क के तहत कोसी पर बनने वाले पुल की लंबाई (संभवत:इसके साथ रेल पुल भी बनाई जाएगी) करीब २२ किलोमीटर होने की संभावना है जिसमें कोसी के पाट के अलावा उसके पूरव और पश्चिम में निचली जमीन के ऊपर कई-कई किलोमीटर तक वो पुल फैली हुई होगी। यह सड़क चार लेन की बन रही है और इसके बनने से मधुबनी का संपर्क सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और मिथिला के पूर्वी इलाके से एक बार फिर जुड़ जाएगा जो सन १९३४ के भूंकंप से पहले कायम था। पूरा इलाका समाजिक और आर्थिक रुप से एक इकाई में बदल जाएगा। इस पुल के महज बनने मात्र से इस इलाके की राजनीतिक चेतना किस मोड़ लेगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है। कुछ लोगों की राय में इस पुल के बनने से एक अखिल मिथिला राज्य की मांग जोड़ पकड़ सकती है जिसका आन्दोलन अभी खंडित अवस्था में है।
मधुबनी से गुजरने वाली दूसरी सड़क ५५ किलोमीटर लंबी राष्ट्रीय राजमार्ग १०५ है जो दरभंगा को मधुबनी के जयनगर से जोड़ता है। राजधानी पटना से सड़क मार्ग के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
मधुबनी भारतीय रेल के पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र के समस्तीपुर मंडल में पड़ता है। दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर स्थित समस्तीपुर जंक्शन से बड़ी गेज की एक लाईन मधुबनी होते हुए नेपाल सीमा पर झंझारपुर को जाती है। मधुबनी से गुजरने वाली एक अन्य रेल लाईन सकरी से घोघरडिहा होते हुए फॉरबिसगंज को जोड़ती है। १९९६ के बाद रेल अमान परिवर्तन होने से दरभंगा होते हुए दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए यहाँ से सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। इसके अलावा एक रेललाईन दरभंगा से सकरी और झंझारपुर होते हुए लौकहा तक नेपाल की सीमा को जोड़ती है। जिले में सकरी और झंझारपुर दो रेल के जंक्शन हैं। लौकरा रेलवे लाईन के निर्माण में कांग्रेस के वरिष्ट नेता ललित नारायण मिश्र का अहम योगदान है जिनका कार्यक्षेत्र मधुबनी ही था। वे झंझारपुर से सांसद हुआ करते थे।
यहाँ से सबसे नजदीकी नागरिक हवाई अड्डा 38 किलोमीटर दरभंगा में स्थित है। जो दरभंगा ऐयरपोर्ट के नाम से विख्यात है यहाँ से दिल्ली, बेंगलूरु, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद के लिए उड़ाने उपलब्ध है
लोकनायक जयप्रकाश हवाई क्षेत्र पटना (IATA कोड- PAT) से अंतर्देशीय तथा सीमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ाने उपलब्ध है। इंडियन, किंगफिशर, जेट एयर, स्पाइस जेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, कोलकाता और राँची के लिए उपलब्ध हैं।
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