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योग उपिनषद् अथर्व-शिर = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् अथर्व-शिख = अथर्व वेद, शैव उपिनषद् मैत्रायिण = साम वेद, सामान्य उपिनषद् कौषीिताक = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद्... |
अथर्ववेद संहिता (अथर्व वेद से अनुप्रेषित) (ब्राह्मी:𑀅𑀣𑀭𑁆𑀯𑀯𑁂𑀤) हिन्दू धर्म के पवित्रतम वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात् मन्त्र भाग है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इसमें देवताओं... |
पुराणों के आगे अथर्व को सम्मिलित कर बोला वेदाsथर्वपुराणानि इति। वर्तमान काल में वेद चार हैं- लेकिन पहले ये एक ही थे। वर्तमान काल में वेद चार माने जाते... |
शाण्डिल्योपनिषद (श्रेणी वेद) शाण्डिल्य उपनिषत् एक गौण उपनिषद है। चार वेदों में जो बीस योग उपनिषद हैं, यह उनमें से एक है। यह अथर्व वेद से सम्बद्ध है। इस उपनिषद में योग की विधियों का... |
ही मानते है उनके अनुसार चंडी अकाल पुरुख की ऊर्जा शक्ति है। देवी भागवत, अथर्व वेद, मार्कन्डेय पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथ के अनुसार, देवी आदि शक्ति ही मूल... |
मेधा सूक्त (श्रेणी वेद) रूप में ऋग्वेद के खिल सूक्त के नौ मंत्र हैं। एक तीसरा रूप भी है जिसमें अथर्व वेद के पाँच मन्त्र हैं। मेधादेवी जुषमाणा न आगाद्विश्वाची भद्रा सुमनस्य माना... |
उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। शुक्राचार्य के वंशज हमे आज... |
"गिरिव्रज" (वर्तमान राजगीर) बाद में "पाटलिपुत्र" थी। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्व वेद में मिलता है। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। गौतम... |
अल्फ़ा लीब्राए और बीटा लीब्राए संस्कृत में विशाख नामक नक्षत्र कहलाते हैं। अथर्व वेद में यह दो तारे समृद्धि के प्रतीक माने गए हैं। तुला तारामंडल की रात को... |
विचार का निर्यात किया है। [[ अगरबत्ती का सबसे पुराना स्रोत वेदों में है, विशेष रूप से अथर्व-वेद और ऋग्वेद में। मनभावन सुगंध और एक औषधीय उपकरण बनाने के लिए... |
अति प्राचीन साहित्य में भी मिलता है। चम्पूकाव्य परंपरा का प्रारम्भ हमें अथर्व वेद से प्राप्त होता है। चम्पू नाम के प्रकृत काव्य की रचना दसवीं शती के पहले... |
वैदिक साहित्य (अनुभाग वेदों की शाखाएँ) हैं। वेद ४ हैं - ऋक्, साम, यजुः और अथर्व। पूर्ण रूप में ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद व अथर्ववेद। इस विषय के विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है कि वेदों की रचना... |
प्राचीन भारत (अनुभाग अथर्व वेद) साहित्यिक स्त्रोत से अधिक प्रमाणित है। 2.साहित्यिक स्त्रोत __ इसके अंतर्गत वेद, पुराण अरंन्यंक ,ऊपनिसद,महाकाव्य, जातक,पिटक आदि आते है। 3.विदेशी यात्रीयो... |
रुद्र (अनुभाग वेदों में रुद्र का स्वरूप) वर्णन भी वेद में है- स्तुहि श्रुतं गर्तसंद जनानां राजानं भीममुपहलुमुग्रम्। मृडा जरित्रे रुद्र स्तवानो अन्यमस्मत्ते निवपन्तु सैन्यम्॥ (-अथर्व १८.१.४०)... |
पद्य हैं। इनमें ऋक् और यजुः ज्याेतिषाें के प्रणेता लगध नामक आचार्य हैं। अथर्व ज्याेतिष के प्रणेता का पता नहीं है। पीछे सिद्धान्त ज्याेतिष काल मेें ज्याेतिषशास्त्र... |
वैदिक ऋषि थे। इनके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ हैं। यास्क के मतानुसार ये अथर्व के पुत्र हैं। पुराणों में इनकी माता का नाम 'शांति' मिलता है। इनकी तपस्या... |
वेदमंत्रों के उच्चारण-प्रकार (श्रेणी वेद) वेद को अपौरुषेय कहा गया है, अर्थात जिसकी रचना किसी पुरुष ने नहीं की. इसलिए इस ज्ञानराशि का एक-एक अक्षर अपरिवर्तनीय है। वेद (ऋक्, यजु, साम और अथर्व में... |
अल्फ़ा लीब्राए और बीटा लीब्राए संस्कृत में विशाख नामक नक्षत्र कहलाते हैं। अथर्व वेद में यह दो तारे समृद्धि के प्रतीक माने गए हैं। इतिहास में इरैटोस्थनिज़... |
सायण (श्रेणी वेद) सायण या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) वेदों के सर्वमान्य भाष्यकर्ता थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड... |
भृगु : यह लोग शायद प्राचीन कवि भृगु के वंशज थे। बाद में इनका सम्बन्ध अथर्व वेद के भृग्व-आंगिरस विभाग की रचना से किया गया है। भालन : कुछ विद्वानों के... |