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आधुनिक काव्य-शास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या ग्यारह है। रस का शाब्दिक अर्थ है - आनन्द। काव्य में जो आनन्द आता है, वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने... |
अदभुत रस, भारतीय काव्य शास्त्र के विभिन्न रसों में से एक है, इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब किसी जीव के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को... |
रहनेवाले वियोग को कहते हैं। श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिकालंकार, ऋतु तथा प्रकृति का भी वर्णन किया जाता है। रस (काव्य शास्त्र) नायक नायिका भेद शृंगारशतक... |
'रस' से निम्नलिखित का बोध होता है- रस (काव्य शास्त्र) - करुण, हास्य, शृंगार आदि रस रस (वनस्पति) - शरबत पारद या पारा (रसविद्या में पारा को 'रस' कहते हैं।)... |
भोज्य-भोजक संबंध माना है। अभिनवगुप्त ने निष्पत्ति का अर्थ अभिव्यक्तिवाद से लेकर संयोग का अर्थ व्यंग्य-व्यंजक भाव संबंध के रूप में लिया है। रस (काव्य शास्त्र)... |
रस (काव्य शास्त्र) काव्य शास्त्र में वर्णित नवरस। नवरस बाबू गुलाबराय द्वारा रचित आलोचना शास्त्र की पुस्तक।... |
उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि... |
काव्यशास्त्र (काव्य लक्षण से अनुप्रेषित) विद्या" नामकरण काव्य की भारतीय कल्पना के ऊपर आश्रित है, परन्तु ये नामकरण प्रसिद्ध नहीं हो सके। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य... |
मानो वे असलियत में श्रीकृष्ण के युग में पहुंच गए हों। रासलीला का वास्तविक अर्थ नृत्य,गान एवं अभिनय तीनो कलाओं के समावेश से है । रास रस (काव्य शास्त्र)... |
भारतीय काव्य-शास्त्र पर विचार किया गया है, जिसमें उनके मनोविश्लेषण-शास्त्र के अध्ययन से काफ़ी सहायता मिली है। नगेंद्र मूलतः रसवादी आलोचक हैं, रस सिद्धांत... |
रासो काव्य हिन्दी के आदिकाल में रचित ग्रन्थ हैं। ये अधिकतर वीर-गाथाओं से सबंधित होती हैं। पृथ्वीराजरासो प्रसिद्ध हिन्दी रासो काव्य है। रास साहित्य चारण... |
रौद्र काव्य का एक रस है जिसमें 'स्थायी भाव' अथवा 'क्रोध' का भाव होता है। धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है। उदाहरण उस काल मारे... |
अभिनय, नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से सम्बन्धित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि... |
आचार्य विश्वनाथ (पूरा नाम आचार्य विश्वनाथ महापात्र) संस्कृत काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ और आचार्य थे। वे साहित्य दर्पण सहित अनेक साहित्यसम्बन्धी संस्कृत... |
रीति संप्रदाय (काव्य रीति से अनुप्रेषित) रीति सम्प्रदाय आचार्य वामन (९वीं शती) द्वारा प्रवर्तित एक काव्य-सम्प्रदाय है जो रीति को काव्य की आत्मा मानता है। यद्यपि संस्कृत काव्यशास्त्र में 'रीति'... |
विभाव (श्रेणी काव्य शास्त्र) hai भावों का उद्गम जिस मुख्य भाव या वस्तु के कारण हो वह काव्य का आलंबन कहा जाता है। जैसे शृंगार रस में नायक और नायिका "रति" संज्ञक स्थाई भाव के आलंबन होते... |
इलाहाबाद 1964 रस विमर्श,विद्या मंदिर, वाराणसी 1965 लक्षणा और उसका हिंदी काव्य में प्रसार,नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी 1966 साहित्य शास्त्र के प्रमुख पक्ष... |
भयानक रस नौ रसों में से एक रस है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। भयोत्पादक वस्तुओं को देखने या... |
वीर रस कहा जाता है। युद्ध अथवा किसी कार्य को करने के लिए ह्रदय में जो उत्साह का भाव जागृत होता है उसे वीर रस कहते है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल वीर रस को चारणों... |
परिच्छेद में रस-निष्पत्ति का विवेचन है और रसनिरूपण के साथ-साथ इसी परिच्छेद में नायक-नायिका-भेद पर भी विचार किया गया है। चतुर्थ परिच्छेद में काव्य के भेद ध्वनिकाव्य... |