चम्पावत भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक जिला है। इसका मुख्यालय चंपावत नगर में है। उत्तराखंड का ऐतिहासिक चंपावत जिला अपने आकर्षक मंदिरों और खूबसूरत वास्तुशिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियां यहाँ अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधा, सभी कुछ यहां पर है।
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चंपावत | |
— जिला — | |
निर्देशांक: (निर्देशांक ढूँढें) | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखंड |
मण्डल | कुमाऊं |
मुख्यालय | चंपावत
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जनसंख्या • घनत्व | 2,24,542 • 126/किमी2 (326/मील2) |
क्षेत्रफल | 1,766 km² (682 sq mi) |
आधिकारिक जालस्थल: champawat.nic.in |
चंपावत समुद्र तल से 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चंपावत नगर कई सालों तक कुमाऊं के शासकों की राजधानी रहा है। चन्द शासकों के किले के अवशेष आज भी चंपावत में देखे जा सकते हैं।
जिले के प्रशासनिक मुख्यालय चंपावत नगर में स्थित हैं। प्रशासनिक कार्यों से जिले को ५ तहसीलों और २ उप-तहसीलों में बांटा गया है। ये हैं: चंपावत, लोहाघाट, पाटी, बाराकोट, श्री पूर्णागिरी, पुल्ला गुमदेश (उप-तहसील) तथा मंच (उप-तहसील)। इसके अतिरिक्त, जिले को ४ विकासखंडों में भी बांटा गया है: चंपावत, लोहाघाट, पाटी और बाराकोट। पूरा जिला अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है, और इसमें २ उत्तराखण्ड विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं; लोहाघाट और चम्पावत।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चन्द शासन ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। ऐसा माना जाता है कि बालेश्वर मंदिर का निर्माण 10-12 ईसवी शताब्दी में हुआ था।
यह मंदिर चंपावत जिले के मौराड़ी गॉव में स्थित है, जो कि चंपावत से आगे बनलेख के समीप में ही है। यह मनोकामना मंदिर है, इस मंदिर में आकर भक्तजन अपनी मनोकामना व्यक्त करते हैं और उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यह मंदिर अति रमणीय है तथा इस मंदिर का परिसर भी अति सुन्दर है। आप भी आकर पुण्य कमायें। यहॉ के पुजारी श्री घनश्याम जोशी जी सदा देव पर्वों में यहाँ आकर भक्तों का मनोबल बढ़ाते हैं।
इस मंदिर में की गई वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह कुमाऊं के पुराने मंदिरों में से एक है।
यह सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह स्थान चम्पावत नगर से 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरुनानक जी यहां पर आए थे। यह गुरुद्वारा जहां पर स्थित है वहां लोदिया और रतिया नदियों का संगम होता है। गुरुद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के स्पर्श से रीठा मीठा हो जाता है। गुरुद्वारा के साथ में ही धीरनाथ मंदिर भी है। बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है।
यह पवित्र मंदिर पूर्णनागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर टनकपुर से 20 किलोमीटर, ठुलीगाड़ से 12 किलोमीटर तथा चम्पावत नगर से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों (मार्च-अप्रैल) में होती है। यहां से होकर काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे यहाँ शारदा के नाम से जाना जाता है।
यह जगह चम्पावत नगर से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील 1.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती हैं। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं। और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।
यह जगह चम्पावत से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फैंकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर पर की जाती है।
यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत नगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी जाना जाता है।
अब्बोट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद हैं। 2001 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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