हम्मीर की कथा को लेकर हिन्दी में कई ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। हिन्दी साहित्य का अतीत, दूसरा भाग] (पृष्ठ हम्मीररासो नाम के कम से कम तीन काव्य मिलते हैं जिनकी भाषा, रचयिता और काल अलग-अलग हैं। इनमें रणथम्भौर के राणा हम्मीर का चरित्र का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है। हम्मीरदेव सम्राट् पृथ्वीराज के वंशज थे। उन्होंने दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन को कई बार परास्त किया था और अन्त में अलाउद्दीन की चढ़ाई में ही वे मारे गए थे। इस दृष्टि से इस काव्य के नायक देश के प्रसिद्ध वीरों में हैं।
कहा जाता है कि शार्ङ्गधर ने अपभ्रंश भाषा में हम्मीरदेव पर एक काव्य लिखा है। शार्ङ्गधर, हम्मीर के प्रधान सभासद राघवदेव के पौत्र थे। इनका समय विक्रम की १४वीं शदी का अन्तिम चरण माना जाता है। प्राकृतपैंगलम में हम्मीर की प्रशस्ति में कई छन्द दिये हुए हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का अनुमान है कि वे पद शार्ङ्गधर के हम्मीररासो से ही उद्धृत किये गये हैं। इस हम्मीररासो की कोई मूल प्रति नहीं मिलती। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं-
यह रचना महेश कवि द्वारा रचित हम्मीररासो के बाद की है।
जोधराज गौड़ ब्राह्मण बालकृष्ण के पुत्र थे। इन्होंने नीबँगढ़ (वर्तमान नीमराणा––अलवर) के राजा चंद्रभान चौहान के अनुरोध से "हम्मीर रासो" नामक एक बड़ा प्रबन्ध-काव्य संवत् १८७५ में लिखा जिसमें रणथंभौर के प्रसिद्ध वीर महाराज हम्मीरदेव का चरित्र वीरगाथा-काल की छप्पय पद्धति पर वर्णन किया गया है। जोधराज ने चन्द आदि प्राचीन कवियो की पुरानी भाषा का भी यत्र तत्र अनुकरण किया है;––जैसे जगह जगह 'हि' विभक्ति के प्राचीन रूप 'ह' का प्रयोग। 'हम्मीररासो' की कविता बड़ी ओजस्विनी है। घटनाओं का वर्णन ठीक ठीक और विस्तार के साथ हुआ है। काव्य का स्वरूप देने के लिये कवि ने कुछ घटनाओं की कल्पना भी की है। जैसे महिमा मंगोल का अपनी प्रेयसी वेश्या के साथ दिल्ली से भागकर हम्मीरदेव की शरण में आना और अलाउद्दीन को दोनों को माँगना। यह कल्पना राजनीतिक उद्देश्य हटाकर प्रेम-प्रसंग को युद्ध का कारण बताने के लिये, प्राचीन कवियो की प्रथा के अनुसार, की गई है। हिंदी_साहित्य_का_इतिहास/रीतिकाल_प्रकरण_३_जोधराज हिंदी साहित्य का इतिहास/रीतिकाल प्रकरण ३ जोधराज]
जोधराजकृत 'हम्मीररासो' का सम्पादन श्यामसुन्दर दास ने किया है। यह हम्मीररासो अहीरवाटी बोली में रचित है। सबसे पहले इसमें सृष्टि का वर्णन है। इस ग्रन्थ में चौहानों की उत्पत्ति के विषय में जो कथा आयी है वह पृथ्वीराज रासो की कथा से मेल खाती है।
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