भूचर मोरी, गुजरात के ध्रोल नगर से २ किमी दूर स्थित एक ऐतिहासिक पठार है। यह राजकोट से लगभग ५० किमी दूर स्थित है। यह स्थान भूचर मोरी की लड़ाई और उस लड़ाई को समर्पित स्मारक के लिए जाना जाता है, जो सौराष्ट्र में लड़ी गयी सबसे बड़ी लड़ाई थी। भूचर मोरी की लड़ाई, मुग़ल साम्राज्य और काठियावाड़ी रियासतों की संयुक्त सेना के बीच इसी पठार पर लड़ा गया था। उसमें मुग़ल साम्राज्य की जीत हुई थी। यहाँ आज भी हर साल भूचर मोरी की लड़ाई की याद में जुलाई-अगस्त के दौरान आयोजन होते हैं, और मेले भी आयोजित होते हैं।
भूचर मोरी | |
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प्रकार | स्मारक स्थल |
स्थान | ध्रोल, जामनगर जिला, गुजरात |
निकटतम नगर | राजकोट |
निर्देशांक | 22°34′57.97″N 70°23′51.6″E / 22.5827694°N 70.397667°E 70°23′51.6″E / 22.5827694°N 70.397667°E |
निर्माण | १६वीं सदी |
निर्माण कारण | भूचर मोरी की लड़ाई |
मरम्मत | 2015 |
मरम्मत कर्ता | गुजरात सरकार |
कार्यसंस्था | भूचर मोरी शहीद स्मारक ट्रस्ट |
प्रचलित लोक कथन के अनुसार इस पठार का नाम भूचर मोरी नमक एक गौचारे के नाम पर पड़ा था। ऐसा कहा जाता है कि "भूचर मोरी मालधारी", मालधारी समुदाय का एक चरवाहा हुआ करता था, जो इस पठार के ऊपर चढ़कर नीचे मैदानों में घास चार रही अपनी मवेशियों पर नज़र रखा करता था। अतः पास एक गांवों के लोग उस पठार को "भूचर मोरीनो टींबो" कहा करते थे।
भूचर मोरी की लड़ाई जुलाई १५९१(विक्रम संवत १६४८) में, मुगल साम्राज्य की सेना, और नवानगर रियासत के नेतृत्व में, काठियावाड़ी राज्यों की संयुक्त सेना के बीच लगा गया एक युद्ध था। यह लड़ाई ध्रोल राज्य में भूचर मोरी के पठार पर लड़ा गया था। इसमें काठियावाड़ की संयुक्त सेना, जिसका नेतृत्व नवानगर राज्य कर रहा था, की हार हुई थी और मुग़ल सेना की निर्णायक जीत हुई थी, जसके कारणवश, काठियावाड़, मुग़ल साम्राज्य के अधीन आ गया था। इस लड़ाई में अंतिम समय में ही जूनागढ़ रियासत और कुण्डला राज्य की सेनाओं ने नवानगर को धोखा दे कर मुग़लों के साथ आ गए थे। इस लड़ाई को गुजरात का पानीपत भी कहा जाता है।
ध्रोल युद्ध की याद में यहाँ पर युद्ध के शहीदों के सम्मान में पालियाएँ स्थापित की गईं थीं। पालिया, काठियावाड़, और पश्चिमी भारत के अन्य कई क्षेत्रों में महान व्यक्तोयों की मृत्यु पर उनके सम्मान में उनके यादगार के तौरपर खड़ा किये जाते वाला स्तम्भरुपी संरचना होती है। आज भी प्रतिवर्ष, नवानगर(जामनगर) के लोग यहाँ आ कर इन पालियाओं पर सिन्दूर लगा कर उनका सम्मान करते हैं। जाम अजाजी की पालिया एक घुड़सवार प्रतिमा के रूप में है। उसके दक्षिण की ओर स्थित पालिया उनकी पत्नी सूरजकुँवरबा को समर्पित है। इन स्मारकों पर अंकित शिलालेख पठनीय नहीं है। स्मारक में एक शिलालेख ऐसा भी है, जिसपर यह लिखा है कि इस स्थान की मरम्मत जाम विभाजी ने कार्रवाई है एवं अजाजी की पालिया पर स्मारक भी उन्होंने ही बनवाया है। उत्तरी दीवार पर एक पारंपरिक शैलचित्र अंकित है, जिसमें घोड़े पर सवार अजाजी को, हाथी की सवारी कर रहे, मुग़ल सेनापति मिर्ज़ा अज़ीज़ कोका पर आक्रमण करते दिखाया गया है। इस प्रांगण में राम, लक्ष्मण और भूतनाथ को समर्पित मूर्तियां हैं। स्मारक के उत्तर में, जमीन पर आठ पालियाएँ हैं, जिसमें एक जेशा वजीर को समर्पित है। चार पालियाँ समानांतर हैं और अन्य तीन बड़ी पालियाँ आस-पास हैं। छह पालियाँ प्रांगण के दक्षिण में स्थित हैं, जिनमें से तीन आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हैं। तीन काले पत्थर की पालियाँ उन अतीत साधुगणों को समर्पित है, जिनका दाल उस युद्ध के दौरान, युद्ध भूमि के पास से गुज़र रहा था, और युद्ध होता देख, वोलोग भी, काठियावाड़ी राज्यों के पक्ष से युद्ध में उतार गए थे और वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनकी पालियाँ उत्तर की ओर स्थित हैं। प्रागान में कुल 23 पालियाँ हैं, तथा आठ से अधिक स्मारक प्रागण के बाहर हैं और राखेहार ढोली को समर्पित एक पालिया कुछ दूरी पर स्थित है। कुल मिला कर ३२ पालिया स्मारक हैं। जामनगर के लोग हर साल इस स्थान पर जाते हैं और पालीयों को सिंधुर लगा कर उनकी पूजा करते हैं।
मुगल सेना के सैनिकों की आठ कब्रें दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। माना जाता है कि इन आठ सैनिकों को इकठ्ठे दफनाया गया था और उसके बाद, उनको समर्पित, कब्रें बनाई गई थीं। इस जगह में एक कूआँ और मस्जिद भी है।
1998 के बाद से, यह जगह भूचर मोरी शहीद मेमोरियल ट्रस्ट की देखरेख में है। यह जगह राज्य के पुरातात्विक विभाग (एस-जीजे-84) द्वारा संरक्षित एक स्मारक है। तथा जाम अजाजी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई थी, जो मुख्या मंत्री आनन्दिबेन पटेल द्वारा इस जगह पर समर्पित किया गया था।
1992 से, क्षत्रिय समुदाय के लोग इस जगह पर शीतल साटम की यात्रा करते हैं। वार्षिक मेला यहां श्रवण विद्या अमास (जुलाई-अगस्त) द्वारा आयोजित किया जाता है। प्रतिवर्ष हजारों लोग यहाँ की यात्रा करते हैं।
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