पटियाला (Patiala) भारत के पंजाब राज्य के पटियाला ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।
पटियाला Patiala ਪਟਿਆਲਾ | |
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ऊपर बाएँ से: मोती बाग महल, किला मुबारक, गुरद्वारा दुख निवारण साहिब, श्री काली देवी मंदिर, आर्ट डेको, फुल थियेटर | |
निर्देशांक: 30°20′N 76°23′E / 30.34°N 76.38°E 76°23′E / 30.34°N 76.38°E | |
देश | भारत |
राज्य | पंजाब |
ज़िला | पटियाला ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 4,06,192 |
भाषा | |
• प्रचलित | पंजाबी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 147001 से 147007 और 147021 से 147023 |
दूरभाष कोड | 91-(0)175 |
पटियाला एक भूतपूर्व राज्य था। पटियाला जिला पूर्ववर्ती पंजाब की एक प्रमुख रियासत थी। आज यह पंजाब राज्य का पांचवा सबसे बड़ा जिला है। पटियाला की सीमाएं उत्तर में फतेहगढ़, रूपनगर और चंडीगढ़ से, पश्चिम में संगरूर जिले से, पूर्व में अंबाला और कुरुक्षेत्र से और दक्षिण में कैथल से मिलती हैं। पटियाला पैग के लिए मशहूर यह स्थान शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा। देश का पहला डिग्री कॉलेज मोहिंदर कॉलेज की स्थापना 1870 में पटियाला में ही हुई थी।
पटियाला की अपनी एक अलग संस्कृति है जो यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है। यहां के वास्तुशिल्प में जाट शैली दिखाई पड़ता है लेकिन यह शैली भी स्थानीय परंपराओं में ढ़लकर एक नया रूप ले चुकी है। पटियाला का किला मुबारक परिसर तो जैसे सुंदरता की खान है। एक ही जगह पर कई खूबसूरत इमारतों को देखना अपने आप के अनोखा अनुभव है।
10 एकड़ क्षेत्र में फैला किला मुबारक परिसर शहर के बीचों बीच स्थित है। किला अंद्रूं या मुख्य महल, गेस्टहाउस और दरबार हॉल इस परिसर के प्रमुख भाग हैं। इस परिसर के बाहर दर्शनी गेट, शिव मंदिर और दुकानें हैं। किला अंद्रूं सैलानियों को विशेष रूप से आकर्षित करता है। इसके वास्तुशिल्प पर उत्तरमुगलकालीन और राजस्थानी शिल्प का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हे। परिसर में उत्तर और दक्षिण छोरों पर 10 बरामदे हैं जिनका आकार प्रकार अलग ही प्रकार का है। मुख्य महल को देख कर लगता है कि जैसे महलों का एक झुंड हो। हर कमरे का अलग नाम और पहचान है। वास्तव इसका शिल्प सौंदर्य देखते ही बनता है।
इन दोनों महलों को बड़ी संख्या में भित्तिचित्रों से सजाया गया है, जिन्हें महाराजा नरेन्द्र सिंह की देखरेख में बनवाया गया था। किला मुबारक के अंदर बने इन महलों में 16 रंगे हुए और कांच से सजाए गए चेंबर हैं। उदाहरण के लिए महल के दरबार कक्ष में भगवान विष्णु के अवतारों और वीरता की कहानियों को दर्शाया गया है। महिला चेंबर में लोकप्रिय रोमांटिक कहानियों चित्रित की गईं हैं। महल के अन्य दो चेंबरों में अच्छे और बुरे राजाओं के गुण-दोषों पर प्रकाश डाला गया है। इन महलों में बने भित्तिचित्र 19 वीं शताब्दी में बने भारत के श्रेष्ण भित्तिचित्रों में एक हैं। ये भित्तिचित्र राजस्थानी, पहाड़ी और अवधि संस्कृति को दर्शाते हैं।
यह हॉल सार्वजनिक समारोहों में लोगों के एकत्रित होने के लिए बनवाया गया था। इस हॉल को अब एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है जिसमें आकर्षण फानूस और विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों को रखा गया है। इस संग्रहालय में गुरू गोविन्द सिंह की तलवार और कटार के साथ-साथ नादिरशाह की तलवार भी देखी जा सकती है। यह दोमंजिला हॉल एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। हॉल में लकड़ी और कांच की शानदार कारीगरी की गई है।
इस इमारत को शायद अतिथि गृह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसका विशाल प्रवेशद्वार और दो आंगन खासे आकर्षक हैं, वहां फव्वारे और टैंक आंगन की शोभा बढ़ाते हैं। रनबास के आंगन में एक रंगी हुई दीवारें और सोन जड़ा सिंहासन बना है जो लोगों को काफी लुभाता है। रंगी हुई दीवारों के सामने ही ऊपरी खंड में कुछ मंडप भी हैं, जो एक-दूसरे के सामने बने हुए हैं।
इस छोटी दोमंजिली इमारत के आंगन में एक कुआ बना हुआ है। इस इमारत को किचन के दौर पर इस्तेमाल किया जाता था। लस्सी खाना रनबास के सटा हुआ है और किला अंदरून के लिए यहां से रास्ता जाता है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि एक जमाने में यहां 3500 लोगों को खाना बनाया जाता था।
इस महल का निर्माण कार्य महाराजा नरेन्द्र सिंह के काल में शुरू हुआ था जो बीसवीं शताब्दी में जाकर महाराजा भूपेन्द्रर सिंह के शासनकाल में पूरा हुआ। ओल्ड मोती बाग महल को अब राष्ट्रीय खेल संस्थान बना दिया गया है। महल के राजस्थानी शैली के झरोखे और छतरी बहुत सुंदर हैं। साथ्ा ही महल में एक एक सुंदर बगीचा, बरामदा, पानी की नहरें और शीशमहल बना हुआ है।
नवाब सैफ खान गुरु तेग बहादुर के बहुत बड़े अनुयायी थे। गुरुजी की यहां की यात्रा की याद में उन्होंने दो गुरुद्वारों का निर्माण करवाया। एक किले के अंदर बनाया और दूसरा सड़क के दूसरी ओर जिसे आज पंच बली गुरुद्वारा कहा जाता है।
सिक्खों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर अपनी यात्रा के दौरान सैफाबाद में ठहरे थे। महाराजा अमर सिंह ने इस जगह का पुनर्निमाण करवाया और इस स्थान का नाम बहादुरगढ़ रख दिया। बहादुरगढ़ के वर्तमान किले का निर्माण महाराजा विक्रम सिंह ने करवाया था। उन्होंने पटियाला-राजपुरा रोड पर एक खूबसूरत गुरुद्वारे का भी निर्माण कराया।
जब महाराजा भुपिंदर सिंह ने मंदिर बनाने का निश्चय किया तो उन्होंने मां काली की प्रतिमा बंगाल सेे पटियाला मंगवाई। यह विशाल परिसर हिदु तथा सिक्ख श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। दूर-दूर से भक्तजन यहां काली मां के दर्शन करने आते हैं। इस परिसर के बीच में काली मंदिर से भी पुराना राज राजेश्वरी मंदिर भी स्थित है।
लेहल के गांववासियों ने यह जमीन गुरुद्वारा बनाने के लिए दान की थी। माना जाता है कि गुरु तेग बहादुर इस जगह आए थे। जनश्रुति के अनुसार जो व्यक्ति गुरुद्वारे में प्रार्थना करता है, उसे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए गुरुद्वारे का नाम दुःखनिवारण पड़ा। आजकल नई बड़ी इमारत का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
इस इमारत का निर्माण रियासत के प्रशासनिम सचिवालय के रूप में किया गया था। आज यहां पंजाब स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड के कार्यालय हैं।
पुराने पटियाला शहर के बारादरी महल के आसपास फैला यह उद्यान शेरांवाला गेट के बिल्कुल बाहर है। इस उद्यान का निर्माण महाराजा राजेंद्र सिंह के शासनकाल में किया गया था। उद्यान दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे देखे जा सकते हैं। इसके अलावा उद्यान में बनी औपनिवेशिक इमारतें, फेम हाउस और महाराजा राजेंद्र सिंह की संगमरमर प्रतिमा इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
राजेंद्र कोठी बारादरी उद्यान के बीच स्थित है। 19वीं शताब्दी में निर्मित इस इमारत का निर्माण महाराजा राजेंद्र सिंह ने करवाया था। इसे देखकर औपनिवेशिक वास्तुशिल्प की याद ताजा हो आती है। कुछ समय पहले तक यहां पंजाब राज्य का पुराअभिलेखागार था। पंजाब अर्बन प्लैनिंग एंड डेवेलपमेंट अथॅरिटी इसे एक हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बना रही है।
शीश महल के सामने बहती एक छोटी सी झील के साथ ही लक्ष्मण झूला बना हुआ है। इस झूले का निर्माण ऋषिकेष के लक्ष्मण झूले की तर्ज पर किया गया है।
दिल्ली से अमृतसर और दिल्ली से चंडीगढ़ के लिए सीधी उड़ानें हैं। वहां से टैक्सी और बसें पटियाला के लिए जाती हैं।
दिल्ली-भटिंडा इंटर सिटी एक्सप्रेस या शताब्दी एक्सप्रेस से अंबाला, वहां से किराए पर टैक्सी लेकर पटियाला तक पहुंचा जा सकता है। रेल सुविधाएं पटियाला को उत्तर भारत के प्रमुख पर्यटक स्थलों से जोड़ती हैं।
पटियाला राष्ट्रीय राजमार्ग-1 के पास ही है। दिल्ली से केवल 250 किलोमीटर दूर होने के कारण यहां आने में ज्यादा समय नहीं लगता। चंडीगढ़ से जीरकपुर (रा.रा.22) और राजपुरा होते हुए भी पटियाला पहुंचा जा सकता है।
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