नौटंकी: लोक कला

नौटंकी (

नौटंकी: इतिहास और विकास, कविता, इन्हें भी देखें
'सुल्ताना डाकू' नामक मशहूर नौटंकी के एक प्रदर्शन में देवेन्द्र शर्मा और पलक जोशी
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एक और नौटंकी का नज़ारा

इतिहास और विकास

अधिकतर समीक्षकों का मानना है कि 'नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है'। नौटंकी कि कथाएँ अक्सर किसी व्यक्ति पर या महत्वपूर्ण विषय आधारित होती हैं, मसलन आल्हा-ऊदल की नौटंकी। इसी तरह, 'सुल्ताना डाकू' की नौटंकी इसी नाम के उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में हुए एक डाकू की कहानी बताती है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उस विषय पर बहुत सी नौटंकियां हुईं थी जिन्होनें जन-साधारण को इस संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा दी। आजकल दहेज़-कुप्रथा, आतंकवाद और साम्प्रदायिक लड़ाई-झगड़ों के विरुद्ध नौटंकियाँ देखी जा सकती हैं। दर्शकों की रूचि बनाए रखने के लिए नौटंकियों में अक्सर प्रेम-सम्बन्ध के भी कुछ तत्त्व होते हैं जिनका प्रयोग अश्लीलता के लिए भी किया जा सकता है। इसलिए बहुत सी अश्लील नौटंकियाँ भी डेढ़-सौ साल से चलती आ रहीं हैं, जिससे अक्सर नौटंकी की शैली बदनाम भी होती आई है। पारम्परिक रूप से नौटंकियों में पैसा बनाने के लिए यह ज़रूरी था कि दर्शकों को कभी भी ऊबने न दिया जाए, इसलिए अधिकतर नौटंकियों में १० मिनट या उस से कम अवधि की घटनाओं को एक सिलसिले में जोड़कर बनाया जाता है जिसमें हर भाग में दर्शकों की रूचि बनाए रखने की कोशिश की जाती है। कहानी दिलचस्प रखने के लिए वीरता, प्रेम, मज़ाक़, गाने-नाचने और धर्म को मिलाया जाता है और कथाकार प्रयास करता है की दर्शकों की भावनाएँ लगातार ऊपर-नीचे होती रहें।

कविता

नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से रही है। पात्र आपस में बातें करते हैं लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता है। गाने में सारंगी, तबले, हारमोनियम और नगाड़े जैसे वाद्य इस्तेमाल होते हैं। मिसाल के लिए 'सुल्ताना डाकू' के एक रूप में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसीलिए अमीरों को लूटता है। उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है (इसमें रूहेलखंड की कुछ खड़ी-बोली है):

    सुल्ताना
    प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
    कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
    जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
    क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
    नील कँवल
    आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
    जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
    मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
    जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
    सुल्ताना
    पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
    उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
    जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
    उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं
    सुल्ताना
    प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
    कोई मुझ-सा दबंग नहीं
    जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
    क्योंकि अमीरों की दौलत पर मेरा ही हक़ है
    नील कँवल
    वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
    जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
    मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
    जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
    सुल्ताना
    पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
    ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
    जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
    उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ

उच्चारण

कृपया ध्यान दीजिये कि नौटंकी में अक्सर हिंदी-उर्दू के पारम्परिक शब्दों का प्रयोग होता है। 'ख़ैरात' और 'ख़ुदा' जैसे शब्दों में बिंदु-वाले 'ख़' का उच्चारण बिंदु-रहित 'ख' से ज़रा अलग है और 'ख़राब' और 'ख़रीद' जैसे शब्दों से मिलता-जुलता है। इसी तरह 'ग़रीब' और 'ग़म' जैसे शब्दों में बिंदु-वाले 'ग़' का उच्चारण बिंदु-रहित 'ग' से थोड़ा अलग है और 'ग़लत' और 'ग़ायब' जैसे शब्दों से मिलता है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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