पानीपत (Panipat) भारत के हरियाणा राज्य के पानीपत ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।
पानीपत Panipat | |
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निर्देसांक: 29°23′N 76°58′E / 29.39°N 76.97°E 76°58′E / 29.39°N 76.97°E | |
प्रांत अव देश | पानीपत ज़िला हरियाणा भारत |
जनसंख्या | |
• कुल | २,९५,९७० |
भाषा | |
• सरकारी भाषा | हिन्दी |
• चलतू भाषा | हिन्दी, हरियाणवी अव पंजाबी |
पानीपत एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। यह दिल्ली-चंडीगढ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-१ पर स्थित है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के अन्तर्गत आता है और दिल्ली से ९० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत के इतिहास को एक नया मोड़ देने वाली तीन प्रमुख लड़ाईयां यहां लड़ी गयी थी।
प्राचीन काल में पांडवों एवं कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध इसी के पास कुरुक्षेत्र में हुआ था, अत: इसका धार्मिक महत्व भी बढ़ गया है। महाभारत युद्ध के समय में युधिष्ठिर ने दुर्योधन से जो पाँच स्थान माँगे थे उनमें से यह भी एक था। आधुनिक युग में यहाँ पर तीन इतिहासप्रसिद्ध युद्ध भी हुए हैं। प्रथम युद्ध में, सन् 1526 में बाबर ने भारत की तत्कालीन शाही सेना को हराया था। द्वितीय युद्ध में, सन् 1556 में अकबर ने उसी स्थल पर अफगान आदिलशाह के जनरल हेमू को परास्त किया था। तीसरे युद्ध में, सन् 1761 में, अहमदशाह दुर्रानी ने मराठों को हराया था। यहाँ अलाउद्दीन द्वारा बनवाया एक मकबरा भी है।
नगर में पीतल के बरतन, छुरी, काँटे, चाकू बनाने तथा कपास ओटने का काम होता है। यहाँ शिक्षा एवं अस्पताल का भी उत्तम प्रबंध है।
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देवी मंदिर पानीपत शहर, हरियाणा में स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गो को समर्पित है। यहां मंदिर पानीपत शहर का मुख्य मंदिर है तथा पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जोकि अब सुख गया है और इस सुखे हुए तालाब में एक पार्क का निर्माण किया गया है जहां बच्चे व बुर्जग सुबह शाम टहलने आते है। इस पार्क में नवरात्रों के दौरान रामलीला का आयोजन भी किया जाता है जोकि लगभग 100 वर्षो से किया जाता रहा है।
देवी के मंदिर में सभी देवी-देवताओं कि मूर्ति है तथा मंदिर में एक यज्ञशाला भी है। मंदिर का पुनः निर्माण किया गया है जो कि बहुत ही सुन्दर तरीके से जोकि भारतीयें वास्तुकला की एक सुन्दर छवि को दर्शाता है। इस मंदिर में भक्त दर्शनों के लिए लगभग पुरे भारत से आते है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है इस मंदिर का निर्माण 18वीं शाताब्दी में किया गया था।
18वीं शताब्दी के दौरान, मराठा इस क्षेत्र में सत्तारूढ़ थे, मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए यहां आये थे। सदाशिवराव भाऊ अफगान से आया अहमदशाह अब्दाली जोकि आक्रमणकारी था के खिलाफ युद्ध के लिए यहा लगभग दो महीने रूके थे।
ऐसा माना जाता है कि सदाशिवराव को लिए देवी की मूर्ति तालाब के किनारे मिली थी, तब सदाशिवराय ने यहां मंदिर बनाने का फैसला किया।
ऐसा माना जाता है कि जब मंदिर को निर्माण किया जा रहा था तो देवी की मूर्ति को रात को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखा गया था परन्तु सुबह मूर्ति उसी स्थान मिली थी जहां से उसे पाया गया था तब यहां निर्णय लिया गया कि मंदिर उसी स्थान पर बनाया जाये जहां देवी की मूर्ति मिली है।
देवी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा व नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
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