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मई की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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भक्तभावन ग्वाल कवि द्वारा रचित २८ काव्यों का संग्रह है। बनारस के विश्वविद्यालय प्रकाशन द्वारा इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन १९९१ ई. में किया गया था।


"श्री वृषभान कुमारिका। त्रिभुवन तारन नाम।
शीश नवावत ग्वाल कवि सिद्धि कीजिये काम॥१॥
वासी[१] वृंदा विपिन के। श्री मथुरा सुखवास।
श्री जगदंबा दई हमें। कविता विमल विकास॥२॥
विदित[२] विप्र वंदी विशद। बरने व्यास पुरान।
ताकुल सेवाराम को। सुत कवि ग्वाल सुजान॥३॥

शोभा के सदम लखि होत है अदमसम। पदम पदम पर परम लता के इद।
देखें नख दामिनी घने दुरी अकामिनी है। जामिनी जुन्हया की जरै जलसता के मद।
ग्वालकवि ललित छलानतें कलित कल। वलित सुगंधन ते वेस मुदता के नद।
वंदन अखंड भुज दंड जुग जोरै करौं। बरद उमंड मारतंड तनया के वद।।१॥"

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पूर्ण पुस्तक
पूर्ण पुस्तकें

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शैवसर्वस्व प्रताप नारायण मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक है। इसका प्रकाशन पटना--“खड्गंविलास” प्रेस बांकीपुर ।' द्वारा १८९० ई. में किया गया था।


"आजकल श्रावण का महीना है, वर्षारितु के कारण भू मण्डल एवं गगन मण्डल एक अपूर्व शोभा धारण कर रहे हैं ; जिसे देख के पशु पक्षी नर नारी सभी आनन्दित होतेहैं । काम धन्धा बहुत अल्प होने के कारण सब ढंग के लोग अपनी २ रुचि के अनुसार मन बहलाने में लगे हैं, कोई बागौ में झूला डाले मित्रों सहित चन्द्रमुखियों के मद माती आखों से हरियाली देखने में मग्न है ! कोई लंगोट कसे भंग खाने व्यायाम में संलग्न है ! कोई भोर मांझ नगर के बाहर की वायु सेवन ही को सुख जानता है ! कोई स्वयं तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान भूतनाथ की दर्शन पूजनादि में लौकिक और पारलौकिक कल्याण मानता है ! संसार में भांति २ के लोग हैं उनकी रुची भी न्यारी है भक्त भी एक प्रकार के नहीं होते कोई बकुला भक्त हैं अर्थात् दिखाने मात्र के भक्त पर मन जैसे का तैसा ! कोई पेटहुन्त भक्त हैं अर्थात् यजमान से दक्षिणा मिलनी चाहिए और काम न किया पूजाही सही !..."(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

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  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई 1806 — 8 मई 1873) प्रसिद्ध सामाजिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक चिंतक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. स्त्रियों की पराधीनता (1917), THE SUBJECTION OF WOMEN का हिंदी अनुवाद।
  2. उपयोगितावाद — (1924), Utilitarianism का हिंदी अनुवाद
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:

  1. स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
  2. राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
  3. विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
  4. दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।

आज का पाठ

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मजदूरी और प्रेम सरदार पूर्णसिंह द्वारा रचित निबंध है जो प्रभात शास्त्री द्वारा संपादित पुस्तक सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध में संकलित है। इसका प्रकाशन इलाहाबाद के कौशाम्बी-प्रकाशन द्वारा संवत् २०१५ वि॰ में किया गया था।

"गाढ़े की एक कमीज को एक अनाथ विधवा सारी रात बैठकर सीती है; साथ ही साथ वह अपने दुख पर रोती भी है—दिन को खाना न मिला। रात को भी कुछ मयस्सर न हुआ। अब वह एक एक टाँके पर आशा करती है कि कमीज कल तैयार हो जायगी; तब कुछ तो खाने को मिलेगा। जब वह थक जाती है तब ठहर जाती है। सुई हाथ में लिये हुए है, कमीज घुटने पर बिछी हुई है, उसकी आँखों की दशा उस आकाश की जैसी है जिसमें बादल बरसकर अभी अभी बिखर गये हैं। खुली आँखें ईश्वर के ध्यान में लीन हो रही हैं। कुछ काल के उपरान्त "हे राम" कहकर उसने फिर सीना शुरू कर दिया। इस माता और इस बहन की सिली हुई कमीज मेरे लिये मेरे शरीर का नहीं—मेरी आत्मा का वस्त्र है। इसका पहनना मेरी तीर्थ यात्रा है। इस कमीज में उस विधवा के सुख-दुःख, प्रेम और पवित्रता के मिश्रण से मिली हुई जीवन रूपिणी गङ्गा की बाढ़ चली जा रही है। ऐसी मजदूरी और ऐसा काम—प्रार्थना, सन्ध्या और नमाज से क्या कम है? शब्दों से तो प्रार्थना हुआ नहीं करती। ईश्वर तो कुछ ऐसी ही मूक प्रार्थनाएँ सुनता है और तत्काल सुनता है।..."(पूरा पढ़ें)

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