राम दास या गुरू राम दास (पंजाबी: ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮ ਦਾਸ ਜੀ), सिखों के गुरु थे और उन्हें गुरु की उपाधि 9 सितंबर 1574 ( इस में एकमत नहीं है कहीं एक सितंबर तो कहीं अलग-अलग तारीख बताई जा रही है) को दी गयी थी। उन दिनों जब विदेशी आक्रमणकारी एक शहर के बाद दूसरा शहर तबाह कर रहे थे, तब 'चौथे नानक' गुरू राम दास जी महाराज ने एक पवित्र शहर रामसर, जो कि अब अमृतसर के नाम से जाना जाता है, का निर्माण किया।
राम दास | |
---|---|
उल्लेखनीय कार्य | {{{notable_works}}} |
सिख सतगुरु एवं भक्त |
---|
सतगुरु नानक देव · सतगुरु अंगद देव |
सतगुरु अमर दास · सतगुरु राम दास · |
सतगुरु अर्जन देव ·सतगुरु हरि गोबिंद · |
सतगुरु हरि राय · सतगुरु हरि कृष्ण |
सतगुरु तेग बहादुर · सतगुरु गोबिंद सिंह |
भक्त रैदास जी भक्त कबीर जी · शेख फरीद |
भक्त नामदेव |
धर्म ग्रंथ |
आदि ग्रंथ साहिब · दसम ग्रंथ |
सम्बन्धित विषय |
गुरमत ·विकार ·गुरू |
गुरद्वारा · चंडी ·अमृत |
नितनेम · शब्दकोष |
लंगर · खंडे बाटे की पाहुल |
गुरू राम दास (जेठा जी) का जन्म चूना मण्डी, लाहौर (अब पाकिस्तान में) में कार्तिक वदी २, (२५वां आसू) सम्वत १५९१ (२४ सितम्बर १५३४) को हुआ था। माता दया कौर जी (अनूप कौर जी) एवं बाबा हरी दास जी सोढी खत्री का यह पुत्र बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक था। राम दास जी का परिवार बहुत गरीब था। उन्हें उबले हुए चने बेच कर अपनी रोजी रोटी कमानी पड़ती थी। जब वे मात्र ७ वर्ष के थे, उनके माता पिता की मृत्यु हो गयी। उनकी नानी उन्हें अपने साथ बसर्के गाँव ले आयी। उन्होंने बसर्के में ५ वर्षों तक उबले हुए चने बेच कर अपना जीवन यापन किया। एक बार गुरू अमर दास साहिब जी, रामदास साहिब जी की नानी के साथ उनके दादा की मृत्यु पर बसर्के आये और उन्हें राम दास साहिब से एक गहरा लगाव सा हो गया। रामदास जी अपनी नानी के साथ गोइन्दवाल आ गये एवं वहीं बस गये। यहाँ भी वे अपनी रोजी रोटी के लिए उबले चने बेचने लगे एवं साथ ही साथ गुरू अमरदास साहिब जी द्वारा धार्मिक संगतों में भी भाग लेने लगे। उन्होंने गोइन्दवाल साहिब के निर्माण की सेवा की।
रामदास साहिब जी का विवाह गुरू अमरदास साहिब जी की पुत्री बीबी भानी जी के साथ हो गया। उनके यहाँ तीन पुत्रों -१. पृथी चन्द जी, २. महादेव जी एवं ३. अरजन साहिब जी ने जन्म लिया। शादी के पश्चात रामदास जी गुरु अमरदास जी के पास रहते हुए गुरु घर की सेवा करने लगे। वे गुरू अमरदास साहिब जी के अति प्रिय व विश्वासपात्र सिक्ख थे। वे भारत के विभिन्न भागों में लम्बे धार्मिक प्रवासों के दौरान गुरु अमरदास जी के साथ ही रहते।
गुरू रामदास जी एक बहुत ही उच्च वरीयता वाले व्यक्ति थे। वो अपनी भक्ति एवं सेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गये थे। गुरू अमरदास साहिब जी ने उन्हें हर पहलू में गुरू बनने के योग्य पाया एवं 10 सितम्बर १५७४ को उन्हें ÷चतुर्थ नानक' के रूप में स्थापित किया। गुरू रामदास जी ने ही ÷चक रामदास' या ÷रामदासपुर' की नींव रखी जो कि बाद में अमृतसर कहलाया। इस उद्देश्य के लिए गुरू साहिब ने तुंग, गिलवाली एवं गुमताला गांवों के जमींदारों से संतोखसर सरोवर खुदवाने के लिए जमीनें खरीदी। बाद में उन्होने संतोखसर का काम बन्द कर अपना पूरा ध्यान अमृतसर सरोवर खुदवाने में लगा दिया। इस कार्य की देख रेख करने के लिए भाई सहलो जी एवं बाबा बूढा जी को नियुक्त किया गया।
जल्द ही नया शहर (चक रामदासपुर) अन्तराष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र होने की वजह से चमकने लगा। यह शहर व्यापारिक दृष्टि से लाहौर की ही तरह महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया। गुरू रामदास साहिब जी ने स्वयं विभिन्न व्यापारों से सम्बन्धित व्यापारियों को इस शहर में आमंत्रित किया। यह कदम सामरिक दृष्टि से बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। यहाँ सिक्खों के लिए भजन-बन्दगी का स्थान बनाया गया। इस प्रकार एक विलक्षण सिक्ख पंथ के लिए नवीन मार्ग तैयार हुआ। गुरू रामदास साहिब जी ने ÷मंजी पद्धति' का संवर्द्धन करते हुए ÷मसंद पद्धति' का शुभारम्भ किया। यह कदम सिक्ख धर्म की प्रगति में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
गुरू रामदास साहिब जी ने सिख धर्म को ÷आनन्द कारज' के लिए ÷चार लावों' (फेरों) की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को समाज के सामने रखा। इस प्रकार उन्होने सिक्ख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी। इस प्रकार इस भिन्न वैवाहिक पद्धति ने समाज को रूढिवादी परम्पराओं से दूर किया। बाबा श्रीचंद जी के उदासी संतों व अन्य मतावलम्बियों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये। गुरू साहिब जी ने अपने गुरूओं द्वारा प्रदत्त गुरू का लंगर प्रथा को आगे बढाया। अन्धविश्वास, वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया गया।
उन्होंने ३० रागों में ६३८ शबद् लिखे जिनमें २४६ पौउड़ी, १३८ श्लोक, ३१ अष्टपदी और ८ वारां हैं और इन सब को गुरू ग्रन्थ साहिब जी में अंकित किया गया है। उन्होंने अपने सबसे छोटे पुत्र अरजन साहिब को ÷पंचम् नानक' के रूप में स्थापित किया। इसके पश्चात वे अमृतसर छोड़कर गोइन्दवाल चले गये। भादौं सुदी ३ (२ आसू) सम्वत १६३८ (१ सितम्बर १५८१) को ज्योति जोत समा गए।
पूर्वाधिकारी: गुरु अमर दास (५ अप्रैल १४७९ - १ सितंबर १५७४) | गुरु राम दास | उत्तराधिकारी: गुरु अर्जन देव (१५ अप्रैल १५६३ - ३० मई १६०६) |
सिख धर्म के ग्यारह गुरु | ||
गुरु नानक देव · गुरु अंगद देव · गुरु अमर दास · गुरु राम दास · गुरु अर्जुन देव · गुरु हरगोबिन्द · गुरु हर राय · गुरु हर किशन · गुरु तेग बहादुर · गुरु गोबिंद सिंह (तत्पश्चात् गुरु ग्रंथ साहिब, चिरस्थायी गुरु हैं।) |
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article गुरु राम दास, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.