रामायण: आदि धर्मग्रन्थ, संस्कृत महाकाव्य

रामायण (संस्कृत : रामायणम् = राम + आयणम् ; शाब्दिक अर्थ : 'राम की जीवन-यात्रा'), वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है जिसमें श्रीराम की गाथा है। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। संस्कृत साहित्य परम्परा में रामायण और महाभारत को इतिहास कहा गया है और दोनों सनातन संस्कृति के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रन्थ हैं। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। इसमें कुल लगभग २४,००० श्लोक हैं। सातवां उत्तरकांड प्रक्षिप्त है, तत्वमार्तंड में भी उत्तरकांड को प्रक्षिप्त माना गया है । उसके बाद की संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य पर इस महाकाव्य का बहुत अधिक प्रभाव है तथा रामकथा को लेकर अनेकों 'रामायण' रचे गये।

रामायण
रामायण
राम द्वारा रावण का वध, एक शाही मेवाड़ पांडुलिपि से, 17वीं शताब्दी
जानकारी
धर्महिन्दू धर्म
लेखकवाल्मीकि
भाषासंस्कृत
इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

Om
इतिहास · देवता
सम्प्रदाय · पूजा ·
आस्थादर्शन
पुनर्जन्म · मोक्ष
कर्म · माया
दर्शन · धर्म
वेदान्त ·योग
शाकाहार शाकम्भरी  · आयुर्वेद
युग · संस्कार
भक्ति {{हिन्दू दर्शन}}
ग्रन्थशास्त्र
वेदसंहिता · वेदांग
ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक
उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता
रामायण · महाभारत
सूत्र · पुराण
विश्व में हिन्दू धर्म
गुरु · मन्दिर देवस्थान
यज्ञ · मन्त्र
हिन्दू पौराणिक कथाएँ  · हिन्दू पर्व
विग्रह
प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म

रामायण: रचनाकाल, संक्षेप में रामायण-कथा, आदर्श पुरुष के गुण

हिन्दू मापन प्रणाली

रचनाकाल

मान्यतानुसार रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती प्रभृति संतों के अनुसार श्रीराम अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था जिसके अनुसार श्रीरामचंद्र जी का काल लगभग पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का है। इसके सन्दर्भ में विचार पीयूष, भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, संजीवनी रामायण एवं पुराणों से प्रमाण दिया जाता है।

इस महाकाव्य के ऐतिहासिक विकास और संरचनागत परतों को जानने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। आधुनिक विद्वान इसका रचनाकाल ७ वीं से ४ वीं शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं। कुछ विद्वान तो इसे तीसरी शताब्दी ई तक की रचना मानते हैं। कुछ भारतीय कहते हैं कि यह ६०० ईपू से पहले लिखा गया। उसके पीछे तर्क यह है कि महाभारत, बौद्ध धर्म के बारे में मौन है जबकि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। महाभारत, रामायण के पश्चात रचित है, अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा-शैली के अनुसार भी रामायण, पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये।

रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवतः बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु[ग] के अवतार थे। कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य सन्दर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादास्पद है। ६०० ईपू से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है।

संक्षेप में रामायण-कथा

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, विष्णु के मानव अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीराम ने राक्षसों [च] के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।

रामायण में सात काण्ड हैं - बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड और उत्तरकाण्ड।

बालकाण्ड

अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया जिसे कि ऋंगी ऋषि ने सम्पन्न किया।

रामायण: रचनाकाल, संक्षेप में रामायण-कथा, आदर्श पुरुष के गुण 
देवदूत द्वारा दशरथ को खीर देना , चित्रकार हुसैन नक्काश और बासवान , अकबर की जयपुर रामायण से

भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (खीर, पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

रामायण: रचनाकाल, संक्षेप में रामायण-कथा, आदर्श पुरुष के गुण 
सीता स्वंयवर (चित्रकार: रवि वर्मा)

राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमन्त्रण मिलने पर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहल्या का उद्धार किया। मिथिला में आकर जब राम शिवधनुष को देखकर उठाने का प्रयत्न करने लगे तब वह बीच से टूट गया और जनकप्रतिज्ञा के अनुसार राम ने सीता से विवाह किया। राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से करवा दिया।

अयोध्याकाण्ड

राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा।तब मंथरा,जो कैकेयी की दासी थी,उसने कैकेयी की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये।

राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा। प्रयाग पहुंच कर राम ने भारद्वाज मुनि से भेंट की। वहां से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुंचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे।

अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यन्त पश्चाताप हुआ। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया।

भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे।

अरण्यकाण्ड

कुछ काल के पश्चात राम ने चित्रकूट से प्रयाण किया तथा वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहाँ से फिर राम ने आगे प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल राम के दर्शन की कामना से वहाँ निवास कर रहे थे अतः राम के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया। और आगे बढ़ने पर राम को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने राम को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस पर राम ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया।

रामायण: रचनाकाल, संक्षेप में रामायण-कथा, आदर्श पुरुष के गुण 
सीता हरण (चित्रकार: रवि वर्मा)

पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन-किया। राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला। शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच राम के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने तलवार के प्रहार से उसे अधमरा कर दिया।

सीता को न पा कर राम अत्यन्त दुःखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अन्तिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये जूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया। इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।

किष्किन्धाकाण्ड

राम ऋष्यमूक पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने मन्त्रियों सहित सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में कि कहीं बालि ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों को न भेजा हो, हनुमान को राम और लक्ष्मण के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बालि ने नहीं भेजा है हनुमान ने राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बालि के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय में बताया। राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज का पद दे दिया।

राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। राम की नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुंचा दिया जहां पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया।

सुन्दरकाण्ड

हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान किया। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली और उसे योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया। उनकी विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवाटिका में पहुँचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को सान्तवना दी। एकान्त होने पर हनुमान जी ने सीता माता से भेंट करके उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोकवाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूँछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांध कर आग लगा दिया इस पर हनुमान ने लंका का दहन कर दिया।

हनुमान सीता के पास पहुँचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गये। हनुमान के कार्य से राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुँचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की। विनती न मानने पर राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत होकर समुद्र ने स्वयं आकर राम की विनती करने के पश्चात् नल और नील के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया।

लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड)

जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ मेरु पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।

शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।

रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।

उत्तरकाण्ड

उत्तरकाण्ड राम कथा का उपसंहार है। सीता, लक्ष्मण और समस्त वानरसेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुँचे। राम का भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ राम का राज्याभिषेक हुआ। अभ्यागतों की विदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये। रामराज्य एक आदर्श बन गया।

उपरोक्त बातों के साथ ही साथ गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में श्री राम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी का अयोध्या आकर रामचन्द्र जी की स्तुति करना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह तथा गरुड़ जी का काकभुशुण्डि जी से रामकथा एवं राम-महिमा सुनना, काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा, ज्ञान-भक्‍ति निरूपण, ज्ञानदीपक और भक्‍ति की महान महिमा, गरुड़ के सात प्रश्‍न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन किया है।

जहाँ तुलसीदास जी ने उपरोक्त वर्णन लिखकर रामचरितमानस को समाप्त कर दिया है वहीं आदिकवि वाल्मीकि अपने रामायण में उत्तरकाण्ड में रावण तथा हनुमान के जन्म की कथा, सीता का निर्वासन, राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति तथा रामराज्य में कुत्ते का न्याय की उपकथायें, लवकुश का जन्म, राम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान तथा उस यज्ञ में उनके पुत्रों लव तथा कुश के द्वारा महाकवि वाल्मीकि रचित रामायण गायन, सीता का रसातल प्रवेश, लक्ष्मण का परित्याग, ५१५ ५१८ का भी वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड का समापन राम के महाप्रयाण के बाद ही हुआ है। उत्तरकांड को लेकर कई तरह के विवाद भी है। ऐसा माना जाता हैं की उत्तरकांड मूल वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं हैं। और इसमें कई कहानियां बाद में जोड़ी गई जो अलग अलग लेखकों द्वारा लिखी गई कहानियों को जोड़ कर तैयार किया गया हैं। उत्तरकांड मूल रामायण का हिस्सा नहीं हैं इसको लेकर कई विद्वान एकमत हैं।

आदर्श पुरुष के गुण

वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के सत्रह गुण बताए गए हैं, जो लोगों में नेतृत्व क्षमता बढ़ाने व किसी भी क्षेत्र में अगुवाई करने के अहम सूत्र हैं। वाल्मीकि जी ने नारद जी से प्रश्न किया कि सम्प्रति इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है जो गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ साथ सदाचार से युक्त हो। जो सब प्राणियों का हितकारक हो, साथ ही विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन हो।

    कोऽन्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान्।
    धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः॥१-१-२
    चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः।
    विद्वान् कः कस्समर्थश्च कैश्चैकप्रियदर्शनः॥१-१-३
    आत्मवान् को जितक्रोधो द्युतिमान् कोऽनसूयकः।
    कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे॥१-१-४

उत्तर में नारद जी कहते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्री राम में ये सभी गुण हैं।

    श्रीराम के सोलह गुण, जो आदर्श पुरुष में होने चाहिए-
  1. गुणवान्
  2. वीर्यवान् ( वीर )
  3. धर्मज्ञ ( धर्म को जानने वाला)
  4. कृतज्ञ ( दूसरों द्वारा किये हुए अच्छे कार्य को न भूलने वाला)
  5. सत्यवाक्य ( सत्य बोलने वाला)
  6. दृढव्रत ( दृढ व्रती )
  7. चरित्रवान्
  8. सर्वभूतहितः ( सभी प्राणियों के हित करने वाला)
  9. विद्वान्
  10. समर्थ
  11. सदैक प्रियदर्शन ( सदा प्रियदर्शी )
  12. आत्मवान् ( धैर्यवान )
  13. जितक्रोध (जिसने क्रोध को जीत लिया हो)
  14. द्युतिमान् (कान्तियुक्त )
  15. अनसूयक (ईर्ष्या को दूर रखने वाला)
  16. बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे ( जिसके रुष्ट होने पर युद्ध में देवता भी भयभीत हो जाते हैं)

रामायण की टीकाएँ

वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ प्राप्त होते हैः-

  • (१) दाक्षिणात्य पाठ
  • (२) गौडीय पाठ
  • (३) पश्चिमोत्तरीय पाठ या काश्मीरिक संस्करण (अमृत कतक टीका)

इन तीन पाठों में केवल पाठभेद ही नहीं प्राप्त होते अपितु कहीं-कहीं इसके सर्ग भी भिन्न-भिन्न हैं। रमायण की ३० टीकाएँ प्राप्त होती है। प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं-

टीका का नाम टीकाकार
रामानुजीयम्
सर्वार्थसार
रामायणदीपिका
बृहदविवरण
लघुविवरण
रामायणतत्वदीपिका (महेश्वरतीर्थी) महेश तीर्थ
भूषण (गोविन्दराजीय ) गोविन्दराज
वाल्मीकिहृदय अहोबल
अमृतकतक माधवयोगी
रामायणतिलक
रामायणशिरोमणि
मनोहर
धर्माकूतम् त्र्यम्बक मखिन्
तनिश्लोकी पेरियर वाचाम्बिल्लै
विषमपदविवृति
रामायणभूषण प्रबल मुकुन्दसूरि

रामायण की सीख

रामायण के सारे चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं।

  • राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि है। पति के रूप में राम ने सदैव एकपत्नीव्रत का पालन किया। राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं। विलक्षण व्यक्तित्व है उनका। वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं।
  • सीता का पातिव्रत महान है। सारे वैभव और ऐश्वर्य को ठुकरा कर वे पति के साथ वन चली गईं।
  • रामायण भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राज गद्दी पर, बड़े भाई का अधिकार होने के कारण, स्वयं न बैठ कर राम की पादुका को प्रतिष्ठित कर देते हैं।
  • कौशल्या एक आदर्श माता हैं। अपने पुत्र राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भूला कर वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती हैं जितनी कि अपने पुत्र राम पर।
  • रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार नाश का कारण होता है।

रामायण द्वारा प्रेरित अन्य साहित्यिक महाकाव्य

वाल्मीकि रामायण से प्रेरित होकर सन्त तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की जो कि वाल्मीकि के द्वारा संस्कृत में लिखे गये रामायण का हिंदी संस्करण है। रामचरितमानस में हिंदू आदर्शों का उत्कृष्ट वर्णन है इसीलिये इसे हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ होने का श्रेय मिला हुआ है और प्रत्येक हिंदू परिवार में भक्तिभाव के साथ इसका पठन पाठन किया जाता है।

रामायण से ही प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने पंचवटी तथा साकेत नामक खंडकाव्यों की रचना की। रामायण में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के उल्लेखनीय त्याग को शायद भूलवश अनदेखा कर दिया गया है और इस भूल को साकेत खंडकाव्य रचकर मैथिलीशरण गुप्त जी ने सुधारा है।

राम सम्बन्धी कथानक से प्रेरित होकर श्रीभागवतानंद गुरु ने संस्कृत महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् की रचना की जो अद्भुत एवं गुप्त कथाप्रसंग से भरा हुआ है। इस ग्रंथ में 20 से अधिक प्रकार के रामायणों की कथा का समावेश है।

नेपाल के राजदरबार से सम्मानित कविवर श्री राधेश्याम जी की राधेश्याम रामायण, प्रेमभूषण जी की प्रेम रामायण, महर्षि कम्बन की कम्ब रामायण के अलावा और भी अनेक साहित्यकारों ने रामायण से प्रेरणा ले कर अनेक कृतियों की रचना की है।

इन्हें भी देखें

टीका-टिप्पणी

संदर्भ

ग्रन्थसूची

  • रामचरितमानस, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर
  • श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण (प्रथम एवं द्वितीय खंड), सचित्र, हिंदी अनुवाद सहित, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर
  • कवितावली, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर
  • रामायण के कुछ आदर्श पात्र, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर
  • वाल्मीकीय रामायण, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली

बाहरी कड़ियाँ

Tags:

रामायण रचनाकालरामायण संक्षेप में -कथारामायण आदर्श पुरुष के गुणरामायण की टीकाएँरामायण की सीखरामायण द्वारा प्रेरित अन्य साहित्यिक महाकाव्यरामायण इन्हें भी देखेंरामायण टीका-टिप्पणीरामायण संदर्भरामायण बाहरी कड़ियाँरामायणआदिकाव्यइतिहासकाण्डमहाकाव्यमहाभारतवाल्मीकिश्रीरामश्लोकसंस्कृत

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

हिंदी साहित्यसंज्ञाहरणभारतीय संसदनेहरू–गांधी परिवारब्रह्मारॉयल चैलेंजर्स बैंगलौरमहावीरड्रीम11राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियमविनायक दामोदर सावरकरसातवाहनभारतीय आम चुनाव, 2024केन्द्र-शासित प्रदेशभारतीय संविधान सभाअरविंद केजरीवालचित्रकूट धामरूसबृहस्पति (ग्रह)धर्मउषा मेहतासुहाग रातगुप्त राजवंशबिहार विधान सभामैहरकालिदासझारखण्डजॉनी सिन्सगरुड़ पुराणहिन्दू धर्मग्रन्थमेंहदीपुर बालाजीबाबा मोहन रामशिव की आरतीपर्यायवाचीकीक्षेत्रफल के अनुसार देशों की सूचीपश्चिम बंगालविष्णुशिवलिंगशिवम दुबेईसाई धर्मपारिभाषिक शब्दावलीश्रीरामरक्षास्तोत्रम्प्रवर्तन निदेशालयबौद्ध धर्मप्यारकारकआँगनवाडीआत्महत्या के तरीकेमध्य प्रदेश के ज़िलेभारत का उच्चतम न्यायालयउत्तराखण्ड में लोकसभा क्षेत्रभारतीय स्टेट बैंकहिजड़ामदारदीपावलीभांग का पौधामिथुन चक्रवर्तीगलसुआस्वातंत्र्य वीर सावरकर (फिल्म)उत्तर प्रदेश के मंडलविशेषणजौनपुरहसन इब्न अलीनॉटी अमेरिकागोगाजीदशरथहनुमान बेनीवालआकाशगंगाअक्षरधाम मंदिर, दिल्लीचन्द्रमामीरा बाईगुरु नानकभारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेशमहात्मा गांधीउत्तराखण्डगाँजे का पौधागर्भाशयभारत रत्‍नराम नवमी🡆 More