चिलिका झील (Chilika Lake), जिसे चिल्का झील (Chilka Lake) भी कहा जाता है, भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी, खोर्धा और गंजाम ज़िलों में स्थित एक अर्ध-खारे जल की अनूपझील (लगून) है। इसमें कई धाराओं से जल आता है और पूर्व में बंगाल की खाड़ी में बहता है। इसका क्षेत्रफल 1,100 वर्ग किमी से अधिक है और यह भारत की सबसे बड़ी तटीय अनूपझील और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्धखारी अनूपझील है।
चिल्का झील | |
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Chilika Lake ଚିଲିକା ହ୍ରଦ चिल्का झील | |
स्थान | ओड़िशा |
निर्देशांक | 19°43′N 85°19′E / 19.717°N 85.317°E 85°19′E / 19.717°N 85.317°E |
झील प्रकार | अर्ध-खारा जल |
मुख्य अन्तर्वाह | 52 धाराएँ, जैसे कि भारगवी नदी, दया नदी, माकरा नदी, मलागुणी नदी और लूना नदी |
मुख्य बहिर्वाह | बंगाल की खाड़ी में प्रवाह, पुराना मुख अराखाकुडा में, नया मुख सातपाड़ा में |
जलसम्भर | 3,560 कि॰मी2 (1,370 वर्ग मील) |
द्रोणी देश | भारत |
अधिकतम लम्बाई | 64.3 कि॰मी॰ (40.0 मील) |
सतही क्षेत्रफल | न्यूनतम: 900 कि॰मी2 (347 वर्ग मील) अधिकतम: 1,165 कि॰मी2 (450 वर्ग मील) |
अधिकतम गहराई | 4.2 मी॰ (13.8 फीट) |
जल आयतन | 4 कि॰मी3 (3,200,000 acre⋅ft) |
सतही ऊँचाई | 0 – 2 मी॰ (6.6 फीट) |
द्वीप | 223 कि॰मी2 (86 वर्ग मील): बड़ाकुदा, हनीमून, कालीजय पर्वत, कंतपंथ, कृष्णप्रसादरह (पूर्व:पारिकुद), नलबाण, नुवापाड़ा तथा सानकुद |
बस्तियाँ | पुरी और सातपाड़ा |
सन्दर्भ | |
अवैध दर्जा | |
अभिहीत: | 1 अक्तूबर 1981 |
सन्दर्भ क्रमांक | 229 |
चिल्का भारत की सबसे बड़ी तटीय झील है जो उड़ीसा में स्थित है यहां खारे पानी की एक लैगून झील है! चिल्का झील Archived 2021-08-17 at the वेबैक मशीन की लंबाई 65KM चौड़ाई 9 से 20KM.और गहराई लगभग 2 मी.है! इसे दया और भार्गवी नदी से जल प्राप्त होता है यहां पर नौसेना का प्रशिक्षण केंद्र अवस्थित है
चिलिका झील 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है।
इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग १२००० किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं।
1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में चुना गया। यह इस मह्त्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 155 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है।
उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है। लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं।
भूवैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करता है कि चिल्का झील अत्यंतनूतन युग (18 लाख साल से पूर्व 10,000 साल तक) के बाद के चरणों के दौरान बंगाल की खाड़ी का हिस्सा था। चिल्का झील के ठीक उत्तर में खुर्दा जिले के गोग्लाबाई सासन गांव (20°1′7″N 85°32′54″E / 20.01861°N 85.54833°E) में खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा आयोजित की गई। गोलाबाई गांव तीन चरणों में चिल्का क्षेत्र संस्कृति के एक दृश्य का सबूत प्रदान करता है: नवपाषाण युग (नियोलिथिक) (c. 1600 ईसा पूर्व), ताम्रपाषाण युग (c. 1400 ईसा पूर्व से c. 900 ईसा पूर्व) और लौह युग (c. 900 ईसा पूर्व से c. 800 ईसा पूर्व।
यह झील बदलते माहौल वाले वातावरण में एक ज्वारनदमुखी डेल्टा प्रकार की अल्पकालिक झील है। भूवैज्ञानिक अध्धयनों के अनुसार की झील की पश्चिमी तटरेखा का विस्तार अत्यंतनूतन युग (Pleistocene Era) में हुआ था जब इसके उत्तरपूर्वी क्षेत्र समुद्र के अंदर ही थे। इसकी तटरेखा कालांतर में पूर्व की तरफ़ सरकने के प्रमाण इस बात से मिल जाते हैं कि कोर्णाक सूर्य मंदिर जिसका निर्माण कुछ साल पहले समुद्र तट पर हुआ था अब तट से लगभग 3 कि॰मी॰ (2 मील) दूर आ गया है।
चिल्का झील का जल निकासी कुण्ड पत्थर, चट्टान, बालू और कीचण के मिश्रण के आधार से निर्मित है। इसमें व्हिन्न प्रकार के अवसादी कण जैसे चिकनी मिट्टी, कीचड़, बालू, बजरी और शैलों के किनारे है लेकिन बड़ा हिस्सा कीचण का ही है। हर वर्ष लगभग १६ लाख मीट्रिक टन अवसाद चिल्का झील के किनारों पर दया नदी और अन्य धाराओं द्वारा जमा की जाती हैं।
एक निराधार कल्पना के अनुसार पिछले 6,000–8,000 वर्षों के दौरान विश्वव्यापी समुद्री स्तर में बढोत्तरी हुई। 7,000 साल पहले इस प्रक्रिया में आई कमी की वजह से झील के दक्षिणी क्षेत्रों में पर रेतीले तटों का निर्माण हुआ। समुद्र स्तर में बढोत्तरी के साथ साथ तट का विस्तार होता रहा और इसने पूर्वोतर में समुद्र की तरफ बढते हुए चिल्का की समुद्री भूमि का निर्माण किया। (spit of Chilika) इस समुद्री भूमि के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर मिले एक जीवाश्म बताता है कि झील का निर्माण 3,500–4,000 वर्ष पूर्व हुआ होगा। झील के उत्तर में तट की दिशा में तीखे बदलाव, तट पर बालू को बहाती तेज हवाएँ, लंबा त्टीय मोड़ (समुद्रतटवर्ती बहाव), विभिन्न उपक्षेत्रों में मजबूत ज्वार व नदी तरंगों की उपस्थिति और अनुपस्थिति इस समुद्री भूमि (spit) के विकास का कारण हैं।
दक्षिणी क्षेत्र में वर्तमान समुद्री स्तर से 8 मी॰ (26 फीट) की उंचाई पर स्थित कोरल की सफ़ेद पट्टीयाँ यह दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र कभी समुद्र के अंदर था और वर्तमान गहराई से कहीं ज्यादा गहरा था। बाहरी घेरेदार रेतीली भूमि पट्टी के क्रमविकास का घटनाक्रम यहाँ पाए जाने वाले खनिज पदार्थों के अध्धयन से पता किया गया है। यह अध्धयन झील की सतह के १६ नमूनों पर किया गया। नमूनों की मात्रा उपरी सतह के 40 और निचली सतह के 300 वर्ष तक पुराने होने के क्रम में 153 ± 3 mग्रे और 2.23 ± 0.07 ग्रे के बीच थी।
चिल्का झील विशाल क्षेत्रों वाली कीचड़दार भूमि व छिछले पानी की खाड़ी है। पश्चिमी व दक्षिणी छोर पूर्वी घाट की पहाड़ियों के आंचल में स्थित हैं।
तमाम नदियाँ जो झील में मिट्टी व कीचड़ ले आती है झील के उत्तरी छोर को नियंत्रित करती हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वाली उत्तरी तरंगो से एक 60 कि॰मी॰ (37 मील) लंबा घेरेदार बालू-तट जिसे रेजहंस, कहा जाता है, बना और इसके परिणाम स्वरूप इस छिछली झील और इसके पूर्वी हिस्से का निर्माण हुआ। एक अल्पकालिक झील की वजह से इसका जलीय क्षेत्र गर्मियों में 1,165 कि॰मी2 (449.8 वर्ग मील) से लेकर बारिश के मौसम में 906 कि॰मी2 (349.8 वर्ग मील) तक बदलता रहता है।
इस झील में बहुत सारे द्वीप हैं। संकरी नहरों से अलग हुए बड़े द्वीप मुख्य झील और रेतीली घेरेदार भूमि के मध्य स्थित हैं। कुल 42 कि॰मी2 (16 वर्ग मील) क्षेत्रफल वाली नहरें झील को बंगाल की खाड़ी से जोड़ती हैं। इसमें छ: विशाल द्वीप हैं परीकुड़, फुलबाड़ी, बेराहपुरा, नुआपारा, नलबाणा, और तम्पारा। ये द्वीप मलुद के प्रायद्वीप के साथ मिलकर पुरी जिला के कृष्णाप्रसाद राजस्व क्षेत्र का हिस्सा हैं।
झील का उत्तरी तट खोर्धा जिला का हिस्सा है व पश्चिमी तट गंजाम जिला का हिस्सा है। तलछटीकरण के कारण रेतीले तटबंध की चौड़ाई बदलती रहती है और समुद्र की तरफ़ मुख कुछ समय के लिये बंद हो जाता है। झील के समुद्री-मुख की स्थिति भी तेजी से उत्तर-पूर्व की तरफ खिसकती रहती है। नदी मुख जो 1780 में 1.5 कि॰मी॰ (0.9 मील) चौड़ा था चालीस साल बद सिर्फ़ .75 कि॰मी॰ (0.5 मील) जितना रह गया। क्षेत्रीय मछुआरों को अपना रोजगार क्षेत्र बचाने व समुद्र में जाने के लिये झील के मुख को खोद कर चौड़ा करते रहना पड़ता है।
पानी की गहराई सूखे मौसम में 0.9 फीट (0.3 मी॰) से 2.6 फीट (0.8 मी॰) और वर्षा ऋतु में 1.8 मी॰ (5.9 फीट) से 4.2 मी॰ (13.8 फीट) तक बदलती रहती है। समुद्र को जाने वाली पुरानी नहर की चौड़ाई जिसे मगरमुख के नाम से जाना जाता है अब 100 मी॰ (328.1 फीट) है। झील मुख्यत: चार क्षेत्रों में बंटी हुई है, उत्तरी, दक्षिणी, मध्य व बाहरी नहर का इलाका। एक 32 कि॰मी॰ (19.9 मील) लंबी बाहरी नहर झील को बंगाल की खाड़ी से अराखुड़ा गाँव में जोड़ती है। झील का आकर किसी नाशपाती की तरह है और इसकी अधिकतम लंबाई 64.3 कि॰मी॰ (40.0 मील) और औसत चौड़ाई 20.1 कि॰मी॰ (12.5 मील) बनी रहती है।
चिल्का विकास प्राधिकरण (सीडीए) पानी की गुणवत्ता माप का एक संगठित प्रणाली की स्थापना की और लिमनोलॉजी (अंतर्देशीय जल का अध्ययन करने वाले) की तहकीकात, झील के पानी की निम्नलिखित भौतिक-रासायनिक विशेषताओं को बतलाते है।
तटपर तटीय खिसकाव की वजह से आने वाले प्रतिकूल ज्वारीय लेनदेन की वजह से पानी के बहाव में कमी और झील के मुहाने की अवस्थिति में हर वर्ष लगातार बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से तलछटी में जमा होने वाली गाद की अनुमानित मात्रा 100,000 मीट्रिक टन है। इन प्रतिकूल प्रभावों की वजह से व्यापक सुधारक कार्वाइयों की आवश्यकता है।
झील के विभिन्न भागों में अवसाद की विभिन्न मात्राएँ पायी गयीं। उत्तरी भाग में 7.6 मिलीमीटर (0.30 इंच)/वर्ष, मध्य भाग में 8.0 मिलीमीटर (0.31 इंच)/वर्ष और दक्षिणी भाग में 2.8 मिलीमीटर (0.11 इंच)/वर्ष के माप मिले। अवसाद के जमा होने की मात्रा दक्षिणी भाग की तुलना में उत्तरी व मध्य भाग में ज्यादा पाई गयी।
इसकी समृद्ध जैव विविधता की वजह से, 1981 में चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया, जैसा कि तथ्यों के रूप में दिखाया है कि:
इन वर्षों में, झील के पारिस्थितिकी तंत्र को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और इनमे से कुछ खतरे निम्नलिखित है:
सारांश में, नदी के ऊपर से गाद के नेतृत्व में वन्य जीवन और मत्स्य संसाधनों के निवास स्थान पर एक गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ा जो सभी के लिए पानी की सतह क्षेत्र की सिकुड़न, लवणता और आक्रामक ताजा पानी जलीय खरपतवार की विपुल विकास की कमी।
Chilika Lake से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
विकियात्रा पर Chilka_Lake के लिए यात्रा गाइड |
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